बृहस्पति यानी जुपिटर ग्रह (jupiter planet) सौर मंडल (solar system) का सबसे बड़ा ग्रह है। बृहस्पति का अंग्रेजी नाम जुपिटर रोमन भगवन के नाम पर रखा गया था। हिंदी नाम बृहस्पति भारतीय मान्यता के आधार पर रखा गया है।
बृहस्पति ग्रह की जानकारी 16वी शताब्दी तक बहुत कम थी। इसे सिर्फ एक बड़े ग्रह के रूप में देखा जाता था। इसी दौरान गैलीलियो नामक एक वैज्ञानिक नें बृहस्पति ग्रह के चार चंद्रमा की खोज की थी। इसी दौरान यह बात भी साफ़ की गयी कि सभी ग्रह पृथ्वी का चक्कर नहीं लगाते हैं, बल्कि सूर्य का चक्कर लगाते हैं।
विषय-सूचि
बृहस्पति की भौतिक जानकारी (Physical Features of Jupiter in Hindi)
जुपिटर सभी ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। यह इतना बड़ा है कि यदि हम बाकी बचे हुए सभी ग्रहों को जोड़ लें, फिर भी ये जुपिटर के मुकाबले आधे ही होंगें। बृहस्पति ग्रह इतना बड़ा है कि यदि यह सिर्फ 80 गुना और बड़ा बन जाए, तो इसे एक तारा कहा जा सकता है।
बृहस्पति ग्रह का वातावरण सूरज के सामान है और यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम जैसी गैसों से मिलकर बना है। बृहस्पति ग्रह के चार चंद्रमा हैं और अन्य कई छोटे चंद्रमा भी हैं, जो ग्रह का चक्कर लगाते हैं।
जुपिटर के मंडल को एक छोटा सौर मंडल भी कहा जा सकता है।
यदि बृहस्पति की तुलना पृथ्वी से करते हैं, तो बृहस्पति ग्रह में 1300 पृथ्वी समायी जा सकती हैं।
ज्यादातर समय बृहस्पति ग्रह पर तेज हवाएं चलती रहती हैं, जिनकी गति करीबन 640 किमी प्रति घंटा से भी तेज होती है।
गृह पर अमोनिया जमा हुआ है, जो बादलों का रूप ले लेता है। इसी कारण से जुपिटर की सतह पर सफेद बादल दिखाई देते हैं। यह भी कहा जाता है कि बृहस्पति ग्रह के भीतरी वातावरण में हीरों की बारिश होती है।
बृहस्पति ग्रह के बार एमें सबसे रोचक जानकारी यह है कि करीबन 300 सालों तक यहाँ एक बड़े लाल रंग का धब्बा दिखाई दिया था। इसे बाद में एक बवंडर का नाम दिया गया था। यह धरती से तीन गुना ज्यादा बड़ा था। वर्तमान के समय में यह धब्बा धीरे-धीरे छोटा होता जा रहा है।
बृहस्पति ग्रह का चुम्बकीय बल सभी ग्रहों में सबसे ज्यादा है। यह धरती के चुम्बकीय बल का 20,000 गुना ज्यादा है। यह बल इतना ज्यादा है कि ग्रह के चंद्रमा के आस-पास मौजूद भी किसी पदार्थ को यह एक बड़े बल के साथ अपनी ओर खींच लेता है।
बृहस्पति ग्रह अपनी धुरी पर बाकी ग्रहों के मुकाबले सबसे तेजी से घूमता है। यह ग्रह अपनी धुरी पर एक परिक्रमा सिर्फ 10 घंटे में पूरी कर लेता है। इतनी तेजी से घुमने की वजह से ग्रह बीच में से मोटा हो गया है और उपरी और नीचले भाग से छोटा हो गया है।
जुपिटर ग्रह इतनी मजबूत रेडियो तरंग छोड़ता है कि उन्हें धरती पर भी पकड़ा जा सकता है। इन्हीं तरंगों की मदद से वैज्ञानिक जुपिटर पर महासागर होने पर जांच कर रहे हैं।
बृहस्पति ग्रह की बनावट (Structure information of Jupiter in Hindi)
वातावरण: 89 फीसदी हाइड्रोजन, 10 फीसदी हीलियम, कम मात्रा में मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड, एथेन, पानी आदि तत्व
चुम्बकीय बल: धरती के मुकाबले 20,000 गुना ज्यादा
रासायनिक: जुपिटर की बाहरी सतह मुख्य रूप से हीलियम और हाइड्रोजन से मिलकर बनी है। इसका वातावरण हाइड्रोजन के कणों से बना है।
आंतरिक: बृहस्पति की आंतरिक सतह पृथ्वी की सतह से 10 गुना पतली है। इसके भीतर लगभग 80 से 90 फीसदी हाइड्रोजन भरी है।
सूर्य की परिक्रमा और जानकारी (Rotation around The Sun Information in Hindi)
सूर्य से बृहस्पति ग्रह की दूरी: 778,412,020 किमी (धरती से 5 गुना ज्यादा)
सूर्य से सबसे कम दूरी: 740,276,600 किमी
सूर्य से सबसे ज्यादा दूरी: 816,081, 400 किमी
बृहस्पति ग्रह (जुपिटर) के चंद्रमा (Moons of Jupiter in Hindi)
जुपिटर के कम से कम 63 चाँद हैं। इनमें से ज्यादातर के नाम रोमन भगवानों के नाम पर दिए गए हैं। जुपिटर के चार सबसे बड़े चंद्रमा की खोज खुद गैलीलियो नें की थी।
जुपिटर का एक चंद्रमा, गेनीमेड, सौर मंडल का सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह बुध और शुक्र ग्रह से भी बड़ा है। यह एकमात्र चंद्रमा है जिसका खुद का चुम्बकीय बल है। यह कहा जाता है कि इस चंद्रमा की सतह बर्फ से ढकी हुई है, जिसके भीतर महासागर होने की संभावनाएं हैं।
साल 2022 में पृथ्वी से एक मिशन छोड़ा जाएगा जो जुपिटर के इस चंद्रमा की जानकारी हासिल करेगा।
बृहस्पति ग्रह की रिंग्स (Rings of Jupiter in Hindi)
साल 1979 में नासा (nasa) नें जुपिटर के चारों और मौजूद रिंग की खोज की थी। इसके चारों और तीन रिंग हैं जो गोल हैं।
मुख्य रिंग चपटी है और लगभग 30 किमी मोती और 6400 किमी चोड़ी है।
इन रिंग्स को बृहस्पति ग्रह का सुरक्षा कवच कहा जाता है और यह शनि ग्रह की रिंग्स की तरह ही हैं।
खोज एवं जाँच पड़ताल (Research & Observation on Jupiter in Hindi)
नासा द्वारा बृहस्पति ग्रह पर अब तक 7 मिशन भेजे जा चुके हैं – पायनियर 10, पायनियर 11, वोयेज़र 1, वोयेज़र 2, युलाईसेस, कैस्सीनी और न्यू होराइजन। नासा के दो मिशन – गैयलिलियो एवं जूनो मिशन ने इस ग्रह की परिक्रमा भी की है।
ज्यूपिटर के चंद्रमाओं का अध्ययन करने के लिए दो मिशनों की योजना की जा रही है – नासा का यूरोपियन क्लिपर मिशन ( जो 2020 के दशक में प्रक्षेपण होगा) और दूसरा है युरोपियन स्पेस मिशन का ज्यूपिटर Icy Moon Explorer (JUICE) जो 2022 में लांच होगा एवं साल 2030 तक ज्यूपिटर के सतह तक Ganymede, Callisto and Europa का अध्ययन करने के लिए पहुँच जायगा।
मिशन पायनियर 10 के द्वारा यह पता चला कि जुपिटर का विकिरण बेल्ट बहुत ही खतरनाक है। पायनियर 11 के कारण गहरे लाल धब्बों और इस ग्रह के ध्रुवीय क्षेत्रों के बारे में पता चला। वोईजर 1 एवं 2 की मदद से वैज्ञानिकों ने गैलिलियन उपराग्रहों का पहला विस्तृत मानचित्र तैयार किया, ज्यूपिटर के रिंगों की खोज हुई, सल्फर ज्वालामुखियों की खोज हुई और वहां के बादलों में बिजली कड़कने के दृश्यों को भी रिकॉर्ड किये गए। युलाईसेस मिशन के द्वारा यह पता चला कि सौर हवाओं का ज्यूपिटर के चुम्बकीय वायुमंडल पर बहुत गहरा असर पड़ता है। न्यू होराइजन मिशन के द्वारा ज्यूपिटर के सतहों का एवं इसके चंद्रमाओं का काफी करीबी से फोटो लिया गया।
साल 1995 में गैलिलियो मिशन के द्वारा वहां के वायुमंडल का सीधा मापीकरण किया गया और वहाँ उपस्थित पानी एवं दूसरे केमिकलों का भी माप लिया गया। जब गैलिलियो यान का ईंधन ख़त्म हो गया तो इसे ज्यूपिटर के वायुमंडल में ही दुर्घटित कर दिया गया।
जूनो मिशन अकेला एक ऐसा मिशन है जो अभी भी ज्यूपिटर पर मौजूद है। इसके द्वारा ग्रह के ध्रुवीय सतह का अध्ययन चालू है जिससे यह पता चल सकेगा कि सौर मंडल कैसे बना और यह भी पता चला कि ज्यूपिटर का कोर वैज्ञानिकों के अनुमान से बहुत बड़ा है।
सौर मंडल पर ज्यूपिटर के गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव (Effect of Jupiter’s Graviation on Solar System In Hindi)
क्योंकि ज्यूपिटर सौर मंडल का सबसे बड़ा और भारी ग्रह है, अतः इसके खिचाव का सौर मंडल पर गहरा प्रभाव पड़ता है। नेचर पत्रिका में प्रकाशित लेख के हिसाब से कई गणनाओं के आधार पर यह माना गया है कि ज्यूपिटर के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण यूरेनस एवं नेप्चून ग्रह हिंसात्मक रूप से बाहर की ओर धकेल दिए गए।
इस बात का भी अनुमान लगाया गया है कि शनि ग्रह के साथ मिलकर ज्यूपिटर ग्रह ने अंतरिक्ष में पाए जाने वाले बहते हुए मलबों को सौर मंडल के बनने के शुरुआती दिनों में अंदर की तरफ खींच लिया होगा जिसके कारण हर ग्रह के इधर उधर क्षुदग्रह पाए जाते हैं। कई शोध यह भी बताते हैं कि इस ग्रह से धूमकेतु टकराते रहते हैं। आखिरी बार शूमेकर-9 नामक धूमकेतु इस ग्रह से टकराया था।
ज्यूपिटर कि तेज गुरुत्वाकर्षण बल एवं खिंचाव के कारण कई क्षुदग्रह आके ज्यूपिटर की परिक्रमा करने लग गए हैं। इनको ट्रोजन क्षुदग्रह कहा जाता है। तीन ऐसे क्षुदग्रहों के उदहारण हैं – अगमेम्नोन ,अचिल्लेस एवं हेक्टर।
ज्यूपिटर ग्रह पर जीवन की सम्भावना (Possibility of Life on Jupiter in Hindi)
अगर इस ग्रह के वायुमंडल का ध्यान से अवलोकन किया जाये तो यह पाया जाता है कि जितना नीचे की ओर जायेंगे, तापमान गर्म होता जाएगा। इसके सतह का तापमान 21॰ C है और वायुमंडल का दबाव पृथ्वी के गुना 10 गुना ज्यादा है। वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि अगर इस ग्रह पर जीवन की सम्भावना हुई तो वह हवा के माध्यम से संभव हो सकेगा। अभी तक के खोजों के हिसाब से इस ग्रह पर जीवन के कोई संकेत नहीं मिले हैं।
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Jupiter planet ka climate kaisa hai? Kya vaha paani hai or Kya is planet par earth ki tarah atmosphere or life sambhav hai?
जुपिटर वाकई में इतना खतरनाक ग्रह है
bahot hi achha post hai pura padha maine
guys maine bhi jupiter planet par english main post likhi hai puri detail main so agar koi padhna chahe to aa skta hai.