पिछले तीस वर्षों से भारत के बिहार राज्य में पद्मश्री पुरस्कार सम्मानित सुधा वर्गीज दलितो के लिए काम कर रही है। सुधा की कहानी काफी प्रेरणादायक है, जिन्होनें पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए अपनी पूरी जिन्दगी समर्पित कर दी। बच्चे इन्हें प्यार से ‘साइकिल दीदी’ कहते हैं।
बिहार मे एक दलित समुदाय है जिसका नाम मुसहार है। यह समुदाय चूहे पकड़ने की क्रिया के लिए मशहूर है। सुधा वर्गीस वह महिला हैं जो पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित हैं। सुधा एक नारी गुंजन नामक एनजीओ की अध्यक्ष भी हैं। यह एनजीओ बिहार में सक्रिय रूप से मुसहार, दलित समुदाय की महिलाआें को शिक्षा प्रदान कर रहा है। यह संस्थान विभिन्न समुदाय को उनके अधिकारों के बारे में भी अवगत करा रहा है। नारी गुंजन द्वारा छात्राओं को शिक्षित करने के लिए कई विद्यालय भी खोले गए हैं।
सुधा का जीवन परिचय
सुधा केरल में जन्मी थी और बिहार राज्य में आकर उन्होनें काम करना शुरू किया। पिछले तीन दशकों से सुधा इस राज्य मे दलितो के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने बिहार का रूख अपनी युवा अवस्था में किया था। सुधा शुरूआत से ही मुसहार दलित समुदाय की सेवा कर रही हैं। सुधा का मुख्य लक्ष्य है इस समुदाय की जीवनी सुधारना और भेदभाव से इन्हें बचाना।
यह समुदाय गांव के बाहरी हिस्से में रहता है और उच्च जातियों द्वारा भेदभाव का शिकार है। सुधा का कहना है कि जब वह बिहार में आई थी तब उन्हें भेदभाव और जातिवाद का अर्थ नही पता था। उनका मानना है कि सभी को एक समान दर्जा मिलना चाहिए और किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। उन्होंने फैसला लिया कि वह दलितों और मसुहारों के साथ उनके गांव मे रहेंगी, मिट्टी के घर मे रहेंगी और उनके हको के लिए लड़ेंगी।
जब सुधा युवा अवस्था में यहां आई थी तब उन्हें अंग्रेजी भाषा की कम समझ थी परंतु दूसरो की मदद करने के लिए उन्होनें अंग्रेजी व हिंदी भाषा का ज्ञान अर्जित किया। आगे चलकर सुधा ने वकालत की पढ़ाई की और स्नातक की डिग्री भी प्राप्त की। सन् 1987 मे सुधा ने नारी गुंजन एनजीओ की शुरूआत बिहार से की।
यह शुरूआत उन्होनें दलितो को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए की। 2005 मे एनजीओ ने एक विद्यालय की स्थापना की जिसमे छात्रावास की सुविधा उपलब्ध थी। इस विद्यालय का नाम प्रेरणा है और यह विद्यालय दानापुर, पटना में स्थित है। इस विद्यालय का मकसद था कि छात्राआें को खेतो और मजदूरी से निकाल कर विद्या प्रदान कराई जाये। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कहने के पश्चात् प्रेरणा 2 के नाम से एक और विद्यालय गया क्षेत्र मे बनाया गया।
आज के समय मे नारी गुंजन एनजीओ प्रेरणा नाम के सभी स्कूलों का निर्वाचन करता है। करीब करीब तीन हजार छात्राएं इन विद्यालयो में पढती हैं। सुधा बताती हैं कुछ छात्राएं बारहवीं कक्षा तक पढाई करती हैं और एनजीओ उन्हें विभिन्न प्रकार के कोर्स भी कराता हैं। विद्यालय के साथ साथ छात्रों की मदद के लिए एक कोचिंग सेंटर भी खोला गया है, क्योंकि छात्राआें के लिए घर मे पढने का माहौल नहीं होता और उनका वहां पर पढ़ना संभव नही है।
शिक्षा के साथ छात्राआें को कई शारीरिक करतब भी सिखाए जाते है जैसे कि नृत्य, कराटे आदि। सुधा को यह महसूस हुआ कि आज के समय मे महिलाआें को अपनी सुरक्षा करने मे समर्थ होना चाहिए। इसी कारण से उन्होंने एक कराटे सिखाने वाले शिक्षक की नियुक्ति स्कूल में की। छात्राआें ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया और पांच स्वर्ण, पांच रजत और चौदह कांस्य पदक हासिल किए, यह सभी मैडल उन्हें सन 2011 मे गुजरात की एक प्रतियोगिता से मिले हैं। जापान मे शौटोकान कराटे मे जाने का मौका भी प्रेरणा की छात्राआें को मिला था।
युवा लड़कों को गलत काम करने से बचाने के लिए सुधा ने समुदाय के अंदर क्रिकेट किट का वितरण कराया। किट का वितरण करने के लिए एक बैंक ने संस्थान की मदद की थी। आज उस क्षेत्र मे करीबन सौलह क्रिकेट टीम है जिनमें से कई टीमों ने अलग अलग प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त की है। बिहार के पांच जिलो मे एनजीओ नारी गुंजन सक्रिय है और समाज को बदलने की कोशिश कर रहा है। यह गैर सरकारी संस्थान 850 स्व-सहायता वाले समूहो से मिलकर समाज के लिए काम कर रहा है। राज्य सरकार द्वारा भी कई बार संस्थान को मदद मुहैया कराई जाती है। राज्य में स्थित महादलित विकास आयोग ने भी संस्थान को कई बार सहयोग किया है।
एनजीओ की संस्थापक सुधा वर्गीज के अनुसार मसुहार समुदाय मे लोगो की मृत्यु का मुख्य कारण कुपोषण है। समुदाय की मदद करने के लिए संस्थान ने भेड बकरियां को पालने की व्यवस्था की है और यह उनके लिए पैसे कमाने का जरिया भी बना है। कुल 750 ऐसे परिवार है जिनके पास किचन गार्डन है और अगर उत्पादन में वृधि होती है तो परिवार उसको बेच कर घर का खर्च चलाता है। महिलाओ को शिक्षित करने से लेकर उन्हें कमाने का जरिया उपलब्ध कराने तक एनजीओ उनकी मदद करता है।
देवदासी समुदाय के सशक्तिकरण के लिए संस्थान ने वहां की महिलाओ की मदद की है। वहां की महिलाओ को बैंड बजाना सिखाया गया और उनका नारी गुंजन सरगम बैड एनजीओ द्वारा बनाया गया। इस बैंड मे केवल महिलाएं काम करती हैं। सुधा का कहना है कि समाज मे यह विचारधारा थी कि बैंड का गठन केवल पुरूष कर सकते है महिलाएं नही। इस धारणा को तोडने के लिए गुंजन संस्थान और महिलाआें ने काम किया। महिलाओं ने सुधा को बताया था कि वह इस काम को करने के लिए उत्साहित हैं अगर उन्हें सही तालीम मिलेगी तो वो बैंड में करना पसंद करेंगी। सुधा ने यह बताया कि महिलाओं ने उनकी अपेक्षा से कम समय मे बैंड मे बजाने का काम सीखा। यह बैंड मुख्यमंत्री के सामने भी प्रस्तुति दे चुका है और कई बार बीबीसी ने भी इन महिलाओ से बात की है। उन्होने बताया कि एक दूल्हे ने उन्हें अपनी शादी मे बैंड बजाने बुलाया था और वह उनकी पहली प्रोफेशनल प्रस्तुति थी।
एनजीओ नारी गुंजन महिलओं की मासिक धर्म (पीरियड्स) की समस्या के लिए भी काम करता है और कम दाम मे सेनेटरी नैपकिन भी महिलाओ को देता है। पहले महिलाएं पीरियड्स मे राख और कपड़े या बोरे का इस्तेमाल करती थी जो उनकी सेहत के लिए हानिकारक था।
सुधा को प्रेम से साईकल दीदी बुलाया जाता है क्योंकि वह साईकल पर सफर करती है। उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री अवार्ड मिला है, बिहार सरकार द्वारा उन्हें आईकन ऑफ बिहार का सम्मान दिया गया है। मसुहार समुदाय के हक के लडने के लिए सुधा को मालायाल मनोरम ग्रुप की ओर से भी सम्मानित किया गया है।
दलित और मसुहार समुदाय के जीवन के स्तर को सुधारने और उनको उनके अधिकारो के बारे मे अवगत कराने के लिए सुधा देश भर मे मशहूर है।