जब से नीतीश कुमार ने महागठबंधन का दामन छोड़ भाजपा का हाथ थामा है, बिहार की राजनीति रोज नए-नए रंग बदल रही है। महागठबंधन के टूटने के बाद बिहार में मचा सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक ओर जहाँ आरजेडी और कांग्रेस लगातार नीतीश कुमार पर धोखा देने का आरोप लगा रही हैं वहीं दूसरी ओर सभी पार्टियां अंतर्कलह से परेशान हैं। भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार की जेडीयू में भी बगावत के स्वर उठने लगे थे और वरिष्ठ पार्टी नेता शरद यादव, राज्यसभा सांसद अली अनवर और बिरेन्द्र कुमार ने खुले तौर पर नीतीश कुमार के इस कदम का विरोध किया था।
वहीं आरजेडी के कई नेताओं ने लालू प्रसाद यादव की हठधर्मिता और पुत्रमोह को महागठबंधन टूटने का कारण बताया था। कांग्रेस विधायक पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से खफा नजर आ रहे थे। उनका मानना था कि पार्टी ने वक़्त रहते तेजस्वी यादव पर कोई फैसला नहीं लिया और इसी वजह से कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गई। कांग्रेस कई दशकों बाद बिहार में सत्ता की भागीदार बनी थी और सत्ता से इस तरह विदाई उसके विधायकों को रास नहीं आ रही थी। पटना में कांग्रेस के विधायक दल की बैठक में 7 विधायक नदारद दिखे वहीं जेडीयू ने दावा किया था कि कुछ कांग्रेसी विधायक लगातार उसके संपर्क में हैं।
सक्रिय हुआ कांग्रेस आलाकमान
बिहार कांग्रेस में बगावत को रोकने के लिए कांग्रेस आलाकमान सक्रिय हो गया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपने गुजरात दौरे के तुरंत बाद बिहार कांग्रेस विधायकों को अपने आवास पर बुलाया है और एक-एक कर निजी तौर पर सबसे मिल रहे हैं। आज इस मुलाक़ात का दूसरा दिन है। कल बिहार कांग्रेस के 27 विधायकों में से 10 विधायकों से कांग्रेस उपाध्यक्ष ने मुलाक़ात की थी। आज वह बचे हुए विधायकों से मिल रहे हैं। सभी विधायक कांग्रेस उपाध्यक्ष के आवास पर मौजूद हैं और राहुल गाँधी से मिलने की बारी का इंतजार कर रहे हैं। राहुल गाँधी यह पता लगाने में जुटे हुए हैं कि कांग्रेस विधायक दल में आखिर वह कौन विभीषण है जो पार्टी विधायकों को नीतीश कुमार के साथ जाने के लिए भड़का रहा है।
अपना घर दुरस्त करने में जुटी है कांग्रेस
महागठबंधन से अलग होने के पश्चात कांग्रेस ने नीतीश कुमार पर विश्वासघाती होने का आरोप लगाया था पर आजकल वह आपसी अन्तर्कलह से ही परेशान है। बिहार कांग्रेस में बगावत की खबर से ही पार्टी आलाकमान के हाथ-पाँव फूलने लगे हैं। इस मुद्दे पर पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी और विधायक दल के नेता सदानंद सिंह से मुलाक़ात कर चर्चा की थी। टूट की आशंका को देखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी के 3 वरिष्ठ नेताओं गुलाम नबी आजाद, जेपी अग्रवाल और ज्योतिरादित्य सिंधिया को अलग-अलग दिन बिहार में भेजा था और हालातों का जायजा लिया था।
इसी के मद्देनजर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी गुजरात दौरे से लौटकर बिहार कांग्रेस विधायकों से चर्चा कर रहे हैं। गुलाम नबी आजाद, जेपी अग्रवाल और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने बिहार दौरे के बाद जो रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष को सौंपी थी उसी आधार पर राहुल गाँधी बिहार कांग्रेस के विधायकों से निजी तौर पर मिलकर उनकी शंकाओं-समस्याओं का निवारण करने में लगे हैं। अनुमानतः कांग्रेस के 18 विधायकों के पार्टी से दमन छुड़ाकर नीतीश सरकार में शामिल होने की सम्भावना जताई गई थी। राहुल गाँधी इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि आखिर कौन बिहार कांग्रेस के लिए “विभीषण” बन नीतीश कुमार के साथ जाने के लिए पार्टी विधायकों को भड़का रहा है।
टिकट बँटवारे में था नीतीश कुमार का हस्तक्षेप
2015 के बिहार विधानसभा चुनावों पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई थी। नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस ने मोदी लहर को रोकने के लिए भाजपा के खिलाफ महागठबंधन किया था। इस महागठबंधन ने संयुक्त रूप से बिहार की 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से 101 सीटों पर जेडीयू, 101 सीटों पर आरजेडी और 41 सीटों पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार खड़े किये थे। टिकट बँटवारे के वक़्त नीतीश कुमार ने ना सिर्फ जेडीयू उम्मीदवारों के चुनाव में दखल दिया था बल्कि उन्होंने कांग्रेस के टिकट बँटवारों में भी हस्तक्षेप किया था। उन्होंने अपने दर्जनभर चहेतों को कांग्रेस में टिकट दिलवाया था और उनमें से कई जीतने में कामयाब भी रहे थे।
शायद यह नीतीश कुमार के हस्तक्षेप का ही परिणाम हैं कि आज कांग्रेस के कई विधायक पार्टी छोड़ सरकार के साथ आना चाहते हैं। इस टूट से भाजपा और जेडीयू दोनों को ही फायदा मिलना तय है। कांग्रेस के सवर्ण विधायक भाजपा के साथ आना चाहते हैं वहीं अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के विधायक जेडीयू के खेमे में जाना चाहते हैं। दोनों ही स्थितियां मौजूदा बिहार सरकार के लिए फायदेमंद होंगी और उसे बगावत की राह पर नजर आ रही जेडीयू से कुछ विधायकों के खिसकने का मलाल नहीं होगा। अभी तक 7 विधायकों के ही टूटने की खबर आ रही थी पर अब खबर आ रही है कि तकरीबन 15-18 विधायक कांग्रेस का साथ छोड़ सकते हैं। इनमे से 10 विधायकों के जेडीयू में शामिल होने की संभावना है।
बिहार को लेकर स्पष्ट नहीं था केंद्रीय नेतृत्व का रुख
कभी बिहार की राजनीति पर एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस पिछले दो दशकों से राज्य में हाशिए पर जा चुकी थी। 2015 के विधानसभा चुनावों के दौरान हुए महागठबंधन ने बिहार कांग्रेस को संजीवनी देने का काम किया था। कांग्रेस ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटें जीतने में सफल रही थी। पिछले 20 वर्षों में बिहार विधानसभा चुनावों में यह कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन ने मोदी लहर को रोक कर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाई थी। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र और राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के भ्रष्टाचार के आरोपों में फँसने के बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन से दामन छुड़ा भाजपा का हाथ थाम लिया था।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने इस बाबत नीतीश कुमार से दिल्ली में मुलाक़ात भी की थी। लेकिन उनकी मुलाक़ात के 2 दिनों बाद ही नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर भाजपा के समर्थन से सरकार बना ली। राहुल गाँधी ने तब नीतीश कुमार को विश्वासघाती कहा था। कांग्रेसी विधायक पार्टी आलाक़मान के इस निर्णय से बेहद नाराज थे और सत्ता सुख का छिनना उन्हें रास नहीं आ रहा था। कई कांग्रेस विधायकों ने स्पष्ट तौर पर पार्टी आलाकमान के लालू यादव का साथ देने के निर्णय की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि पार्टी को नीतीश कुमार के साथ खड़ा रहना चाहिए था। आलाकमान से बिहार इकाई के आपसी संवाद और तालमेल में कमी के बाद पार्टी में बगावत के सुर फूटने लगे थे।
लालू यादव की रैली से नदारद थे कांग्रेसी दिग्गज
हाल ही में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने पटना के गाँधी मैदान में केंद्र की सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ “भाजपा हटाओ, देश बचाओ” रैली का आयोजन किया था। इस रैली में उन्होंने सभी गैर एनडीए दलों को आमंत्रित किया था लेकिन बिहार में महागठबनधना में उनकी सहयोगी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में से कोई भी इस रैली में शामिल नहीं हुआ था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी जहाँ नॉर्वे सरकार के बुलावे पर विदेश यात्रा पर थे वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर रैली से दूरी बनाई। हालाँकि सोनिया गाँधी का रिकार्डेड भाषण और राहुल गाँधी का लिखित सन्देश रैली में पढ़ा गया पर गाँधी परिवार के किसी सदस्य की मौजूदगी पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने का काम करती और इससे पार्टी विधायकों को भी मजबूत सन्देश मिलता।
कांग्रेस की तरफ से रैली में राज्यसभा के नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद, हनुमंत राव और बिहार प्रभारी सीपी जोशी ने शिरकत की थी। हालाँकि इन तीनों नेताओं की सम्मिलित उपस्थिति से ज्यादा प्रभावशाली गाँधी परिवार के किसी एक सदस्य की मौजूदगी होती। लालू यादव और राहुल गाँधी अब एक साथ मंच साझा नहीं करते हैं पर प्रियंका गाँधी मंच पर आकर पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन कर सकती थी। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह आज भी कांग्रेस का लोकप्रिय चेहरा हैं और उनकी उपस्थिति भी कांग्रेस को बल देती। लेकिन दिग्गजों की उपेक्षा से कांग्रेस बिहार में फिर से हाशिए की तरफ जाने लगी है। यह 2 दशकों बाद बिहार में महागठबंधन की संजीवनी पाए कांग्रेस के लिए घातक हो सकता है।