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    महाराणा प्रताप

    ‘इतिहास खुद को दोहराता है’ ये तथ्य तो आपने कई बार सुना होगा पर इतिहास को बदलते हुए आप पहली बार देखेंगे। राजस्थान सरकार ने अपने नए आदेश में प्रदेश के दसवीं की इतिहास की किताबों में हल्दीघाटी युद्ध से जुड़े नए पाठ को पढ़ाने का निर्णय लिया है। इस निर्णय की जानकारी देते हुए राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि अबतक किताबों में गलत इतिहास को पढ़ाया जाता था। पर हमने इसे सुधारने की पहल की है। नए इतिहास के मुताबिक़ महाराण प्रताप हल्दीघाटी का युद्ध जीते थे और अकबर की सेना हारकर भाग गई थी।

    हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में अबतक यही पढ़ाया जाता रहा है कि यह युद्ध बेनतीजा रहा था। ना अकबर कि सेना यह युद्ध जीत पाई थी और ना महाराणा प्रताप यह युद्ध हारे थे। लेकिन यह मुद्दा हमेशा ही विवादों में रहा है। इस युद्ध की वास्तविकता का खुलासा उदयपुर के एक प्रोफेसर डॉ. चंद्रशेखर शर्मा ने अपने हालिया शोध में किया है। उनके मुताबिक़ अकबर की सेनाओं को इस युद्ध में शिकस्त झेलनी पड़ी थी और इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं।

    पेश किये साक्ष्य

    अपने शोध को आधार देने के लिए डॉ. शर्मा ने प्रताप की जीत के प्रमाण के रूप में ताम्र पात्र जनार्दनराय नगर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में जमा कराये है। इन पत्रों से सिद्ध होता है कि हल्दीघाटी के युद्ध के 1 साल बाद महाराणा प्रताप ने आस-पास के गाँवों कि जमीनों के पत्ते ताम्र पत्र के रूप में बांटे थे और उनपर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर हैं। उस समय जमीनों के पत्ते जारी करने का अधिकार सिर्फ राजा का होता था।

    हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अकबर कि सेनाओं ने मेवाड़ पर 6 बार और हमला किया था। अगर अकबर की सेनाएं हल्दीघाटी युद्ध में विजयी हुईं होती तो उनके पुनः मेवाड़ पर हमला करने का कोई औचित्य नहीं था। डॉ. शर्मा के मुताबिक़ अकबर कि सेना कभी मेवाड़ को जीत नहीं पाई और इसी प्रयास में उसने मेवाड़ पर बार-बार हमले किये। डॉ. शर्मा के शोध को सही मानते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने अपने पाठ्यक्रम में बदलाव कर ‘स्ट्रगलिंग इंडिया’ (1200 से 1700 ईसवीं) का नाम बदल कर ‘गोल्डन एरा ऑफ़ इंडिया’ रख दिया।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।