उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब से सत्ता संभाली है लगातार चर्चाओं में बने हुए हैं। कभी अपनी नयी घोषणाओं से तो कभी अपने ऐतिहासिक फैसलों से, हर कदम पर उन्होंने सबका ध्यान खींचा है। ‘राम’राग और गौ प्रेम के मुद्दे पर कई बार विरोधी दलों ने उनपर हिंदूवादी होने का आरोप भी लगाया है। पर योगी ने हर बात पर अपना पक्ष रखते हुए अबतक विरोधियों को शांत ही रखा है। 10 साल पुराने ‘नफरत फ़ैलाने वाले’ भाषण के मामले की जांच का आदेश ना देने की याचिका के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को दूसरी याचिका दायर करने का निर्देश दिया है। 2007 में गोरखपुर में हुई एक जनसभा में योगी आदित्यनाथ पर ‘नफरत भरे भाषण’ देने का आरोप लगा था। योगी उस समय गोरखपुर से सांसद थे। हाल ही में राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री पर मुक़दमा चलाने की इजाजत देने से इंकार कर दिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने सरकारी वकील के इस तर्क को सिरे से ख़ारिज कर दिया कि मुख्य आरोपी अब राज्य का मुख्यमंत्री बन चुका है इसलिए उसपर मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता। साथ ही अदालत ने राज्य सरकार के एडवोकेट जनरल को ‘महत्वपूर्ण और गंभीर मामले’ में भी अदालत में अनुपस्थित रहने पर फटकार लगाई। पिछले हफ्ते अदालत ने प्रदेश सरकार से पूछा था कि मुख्यमंत्री के खिलाफ मुक़दमा चलाने की इजाजत देने से इंकार करने के बाद याचिकाकर्ता के पास और क्या विकल्प रह जाता है। विगत अप्रैल में ही राज्य सरकार के एडवोकेट जनरल नियुक्त किये गए वकील राघवेंद्र सिंह ने कहा था कि केंद्र या राज्य सरकार की मनाही के बाद मजिस्ट्रेट के पास यह अधिकार नहीं होता है कि वह मुक़दमा चला सके। जबकि पिछले हफ्ते की जिरह में प्रदेश सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल और एके मिश्रा ने कहा था कि जाँच में संतुष्ट ना होने की स्थिति में याचिकाकर्ताओं के पास मजिस्ट्रेट के सामने ‘प्रतिरोध याचिका’ दायर करने का विकल्प है। हाईकोर्ट ने दोनों ही दलीलों को ख़ारिज करते हुए कहा कि पहले आप दोनों आपस में फैसला कर लें। अगर दोनों की बाते सुनी जाये तो याचिकाकर्ताओं के पास कोई भी दूसरा रास्ता नहीं है।
इस मामले पर अगली सुनवाई के लिए हाईकोर्ट ने 9 अगस्त की तारीख मुक़र्रर की है। याचिकाकर्ता के वकील फरमान नक़वी से हाई कोर्ट ने एक दिन में नई याचिका दायर करने को कहा है। विदित हो कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 3 मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर मुक़दमा चलाने की इजाजत देने से इंकार कर दिया था।