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    प्रायद्वीपीय नदी तंत्र peninsular river system in hindi

    विषय-सूचि

    कुछ प्रमुख प्रायद्वीपीय नदियां (Some Major Peninsular Rivers in hindi)

    प्रायद्वीप नदी प्रणाली (Peninsular River System) भारत के पठार हिस्से में बहने वाली नदियां हैं। प्रायद्वीप की ऊपरी हिस्सों में बहने वाली नदियों को छोड़कर यहाँ की ज्यादातर नदियां अनुरूपी (concordant) हैं।

    यहाँ की नदियां गैर बारहमासी (non-parennial) होती हैं जहाँ बारिश के मौसम के दौरान सबसे अधिक बहाव होता है। प्रायद्वीप की नदियां अपने परिपक्व चरण और अपने आधार स्तर में पहुँच चुकी हैं जिनका ऊर्ध्वाधर कटाव नामुमकिन है।

    इस प्रकार की नदियां अपने व्यापक और उथले घाटियों के आधार पर पहचाने जाते हैं। इन नदियों की सौम्य ढलानें होती हैं, हालाँकि कहीं कहीं सौम्य ढलानों की कारण खड़ी ढलानें भी पायी जाती हैं।

    प्रायद्वीपीय नदियों का विभाजन प्रमुख रूप से पश्चिमी घाट के जलधाराओं के आधार पर होता है जो पश्चिमी तट की समीप उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है।

    कम ढाल होने की कारण नदियों के धाराओं द्वारा कुछ उठा पाने की क्षमता और गति कम होती है। प्रायद्वीप की ज्यादातर नदियां जैसे कि महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि पूर्व की तरफ बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती हैं। ये नदियां अपने मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हैं।

    पश्चिमी घाट से निकलने वाली और पश्चिम की तरफ बहने वाली नदियां जैसे नर्मदा, तापी आदि जाकर अरब सागर में मिल जाते हैं और अपने मुहाने पर डेल्टा की बजाय ज्वारनदमुख (estuaries) का निर्माण करते हैं।

    प्रायद्वीप की नदियां कहीं कहीं आपस में मिलती हैं और नए जल स्रोत का निर्माण करती हैं जैसे कि झरने। कुछ प्रमुख झरनों के उदहारण हैं:- शार्वती नदी पर जोग (289 m), महाबलेश्वर का येन्ना (183 m), कावेरी नदी पर शिवसमुंद्रम (101 m), गोकक नदी पर गोकक (55 m), कपिलधारा (23 m), नर्मदा नदी पर धुंआधार (15 m) आदि प्रमुख झरने हैं।

    प्रायद्वीप नदियों का उद्भव (Evolution of Peninsular Rivers in Hindi)

    इन नदियों का उद्भव कैसे हुआ इसके पीछे दो व्याख्याएं हैं:-

    व्याख्या 1:- भूवैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि प्राचीन काल में सह्याद्री-अरावली अक्षांश पानी की विभाजन का एक प्रमुख कारण था। एक परिकल्पना के हिसाब से वर्तमान में स्थित प्रायद्वीप एक बहुत बड़े भूभाग का हिस्सा है। पश्चिमी घाट इस भूभाग के बीच में स्थित था। एक जलनिकास (drainage) पूर्व की ओर बहते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाता था और दूसरा जलनिकास पश्चिम की तरफ बढ़ते हुए अरब सागर में जाकर मिल जाता था।

    तृतीयक अवधि की दौरान जब हिमालय का निर्माण हो रहा था, तब प्रायद्वीप का पश्चिमी भाग भूकंप की कारण अरब सागर में डूब गया। जब Indian plate का टकराव हुआ तो प्रायद्वीप भाग ढह गया जिससे उसके विभिन्न भागों में मुड़ाव आ गया जिसके कारण गड्ढों का निर्माण हुआ। आज इन गड्ढों से होकर नर्मदा, तापी आदि नदियां बहती हैं।

    व्याख्या 2:- ऐसा माना जाता है कि पश्चिम की तरफ बहने वाली नदियां खुद से पहले से बनी घाटियों में नहीं बहती। उसके बजाय उन्होंने विंध्य पर्वत की सामानांतर बहने वाली दो दरारों को अपना लिया। यह दरारें हिमालय के निर्माण के दौरान प्रायद्वीप के पूर्वी भाग में हुए झुकाव की वजह से बने हैं। इसके कारण कई नदियां पूर्व की ओर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती हैं।

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