गाँधी परिवार के विश्वसनीय और कांग्रेस के संकटमोचक रहे प्रणब मुखर्जी सक्रिय राजनीतिक जीवन से विदा ले रहे हैं। देश के तेरहवें राष्ट्रपति के तौर पर उनका कार्यकाल 24 जुलाई, 2017 को समाप्त हो रहा है। पश्चिम बंगाल की क्षेत्रीय राजनीति से राज्यसभा और फिर देश के सबसे गरिमामयी पद तक पहुँचने का उनका सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। आइये डालते हैं एक नजर :
प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद चेहरे रहे हैं। इंदिरा गाँधी ने उन्हें 1969 में बंगाल की राजनीति से चुना और कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा सदस्यता दिलाई। वो इंदिरा गाँधी के सबसे भरोसेमंद माने जाते थे। यह तस्वीर 1983 में हुए कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की है।
ये तस्वीर कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की है। इंदिरा गाँधी के शासनकाल में पार्टी के बेहद करीबी रहे प्रणब मुखर्जी के साथ पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलापति त्रिपाठी दिखाई दे रहे है। उन्होंने पार्टी में हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और कठिन मौकों पर संकटमोचक बनकर उभरे।
इस तस्वीर में प्रणब मुखर्जी उत्तर प्रदेश के दो कद्दावर कांग्रेसी नेताओं विश्वनाथ प्रताप सिंह और कल्पनाथ राय के साथ दिखाई दे रहे हैं। राष्ट्रपति भवन की यह तस्वीर इंदिरा गाँधी के शासनकाल की हैं और उस समय उपराष्ट्रपति आर. वेंकटरमन का सपथ ग्रहण समारोह चल रहा था। यह दौर उन 15 सालों का था जब प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के सबसे विश्वसनीय नेता थे।
यह तस्वीर इंदिरा गाँधी की आखिरी सरकार की है। उस वक़्त प्रणब मुखर्जी का सरकार के साथ-साथ पार्टी में भी बहुत रसूख था और वो सरकार के सबसे बड़े मंत्री थे। उन्हें इंदिरा गाँधी का दायाँ हाथ भी कहा जाता था। उनकी राजनीतिक समझ, योग्यता और अनुभव तत्कालीन किसी भी कांग्रेस नेता से अधिक था और इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद अगर कोई प्रधानमंत्री बनने के लिए सबसे योग्य था तो वह प्रणब मुखर्जी थे।
अपने राजनीतिक सफर में प्रणब दा प्रधानमंत्री पद के सबसे करीब तब पहुँचे जब 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गाँधी की प्रधानमंत्री आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस वक़्त वो राजीव गाँधी के साथ बंगाल दौरे पर गए थे।
इंदिरा गाँधी पर हमले की सूचना मिलने पर प्रणब मुखर्जी अपना बंगाल दौरा बीच में छोड़ राजीव गाँधी के साथ दिल्ली पहुँचे थे। राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए उन्होंने ही प्रस्ताव आगे किया और इसे पारित कराने का जिम्मा भी खुद लिया।उस वक़्त वो कांग्रेस के सबसे अनुभवी नेता थे और प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति थे। इस तस्वीर में प्रणब दा एक सम्बोधन में राजीव गाँधी के साथ दिखाई दे रहे हैं।
इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 1984 में राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने और प्रणब मुखर्जी उनके सबसे करीबी मंत्री थे। उन्होंने राजीव गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया और खुद पार्टी संगठन को मजबूत करने में लगे रहे। उन्होंने मंत्रिमंडल और पार्टी में अपनी जिम्मेदारियाँ बखूबी निभाई और कांग्रेस के संकटमोचक बने रहे। 1984 में हुए मध्यावधि चुनावों के बाद राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने और उनके मंत्रिमण्डल में प्रणब मुखर्जी का नाम शामिल नहीं था। 1985 में राजीव गाँधी ने प्रणब दा को पश्चिम बंगाल कांग्रेस की बागडोर सौंपी। 6 महीने बाद ही यह जिम्मेदारी उनसे छीनकर प्रियरंजन दास मुंशी को सौंप दी गई।
प्रणब मुखर्जी गाँधी परिवार के लिए सबसे बड़े संकटमोचक तब बने जब राजीव गाँधी की हत्या हुई। नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री चुना गया और सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष बने। प्रणब मुखर्जी उस वक़्त खुद पार्टी अध्यक्ष बनना चाहते थे पर उनकी गाँधी परिवार से नजदीकियाँ इस राह में रोड़ा बन गई। नरसिम्हा राव ने उनकी जगह सीताराम केसरी पर विश्वास जताया और उन्हें अध्यक्ष नियुक्त किया।
सोनिया गाँधी चाहती थी कि कांग्रेस की कमान उनके हाथों में आ जाये। यह तभी मुमकिन था जब कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक हो। कार्यकारिणी की बैठक बुलाने का अधिकार सिर्फ तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी के पास था। ऐसे में प्रणब मुखर्जी ने उन्हें बैठक के लिए मनाया और बैठक में सोनिया गाँधी को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव आगे किया। सर्वसम्मति से सोनिया गाँधी को अध्यक्ष चुना गया और प्रणब दा को कांग्रेस में फिर वही मुकाम मिल गया जो उन्हें इंदिरा गाँधी के शासनकाल में मिला था। सोनिया गाँधी ने राजीव गाँधी की गलतियां नहीं दोहराईं और प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के साथ-साथ गाँधी परिवार के भी करीबी हो गए।
2004 के लोकसभा चुनावों के परिणाम के बाद फिर से वह वक़्त आया था जब प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनने के करीब थे। वो कांग्रेस के सबसे योग्य नेता थे और पहली पसंद भी। पर इस बार उनकी जगह पार्टी में उनके कनिष्ठ रहे मनमोहन सिंह को तरजीह दी गई। अबतक प्रणब दा भी समझ चुके थे कि उनके हाथ देश की सत्ता नहीं है। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को सहेजना जारी रखा।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति पद के लिए प्रणब मुखर्जी के नाम को मनोनीत किया। प्रणब दा ने मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार में देश के तेरहवें राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण किया था। उन्होंने कई कुख्यात आतंकियों की फांसी को मंजूरी दी जिसमे अजमल कसाब और अफ़ज़ल गुरु प्रमुख है। उनका कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है और उनकी राजनीतिक जीवन की पारी यहीं पर समाप्त हो जाय्रेगी।