सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सोमवार को सभी टेलीविजन चैनलों को दुर्घटना, मौतों और महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों के खिलाफ होने वाली हिंसा की रिपोर्टिंग के खिलाफ एक परामर्श जारी किया है जो “अरुचिकर और अशोभनीय” होती हैं। मंत्रालय द्वारा यह परामर्श टेलीविजन चैनलों द्वारा विवेकहीनता दर्शाए जाने के कई मामलों के संज्ञान में आने के बाद जारी किया गया है।
मंत्रालय ने कहा है कि टेलीविजन चैनलों ने लोगों के शवों और खून से लथपथ घायल लोगों, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित लोगों को बेरहमी से पीटे जाने, एक शिक्षक द्वारा पिटे जा रहे एक बच्चे के लगातार रोने – चिल्लाने की तस्वीरें या वीडियो धुंधला किए या उन्हें दूर के शॉट्स में दिखाने की सावधानी बरतते बगैर उन हरकतों को घेरकर और भी भयानक बनाते हुए निकट के शॉट्स में कई मिनटों तक बार-बार दिखाए हैं। यह बात भी सामने आई है कि ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग का यह तरीका दर्शकों के लिए अरुचिकर और उन्हें परेशान करने वाला है।
इस परामर्श में विभिन्न दर्शकों पर इस तरह की रिपोर्टिंग से पड़ने वाले असर पर प्रकाश डाला गया है। इसमें कहा गया है कि ऐसी खबरों का बच्चों पर विपरीत मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ सकता है।
परामर्श ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया है कि इसमें निजता के हनन का एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी है जो संभावित रूप से निंदनीय और मानहानि करने वाला हो सकता है। आमतौर पर घरों में परिवार के सभी वर्ग के लोगों- वृद्ध, मध्यम आयु वर्ग, छोटे बच्चे आदि और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों- के साथ देखा जाने वाला एक पटल होने के नाते, टेलीविजन प्रसारकों पर जिम्मेदारी और अनुशासन की एक खास भावना पैदा करते हैं, जिन्हें प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड में संकलित किया गया है।
मंत्रालय ने यह पाया है कि ज्यादातर मामलों में वीडियो सोशल मीडिया से लिए जा रहे हैं और प्रोग्राम कोड के अनुपालन और निरंतरता सुनिश्चित करने के संपादकीय विवेक एवं संशोधनों के बिना प्रसारित किए जा रहे हैं।