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    नेपाली प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और चीनी प्रधानमंत्री ली केकिंग

    चीन अपनी विस्तारवादी नीति को संपन्न करने के लिए हर पैंतरे का इस्तेमाल कर रहा है। चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट के तहत एशिया, यूरोप और अफ्रीका के 60 देशों को जोड़ेगा। चीन के मुताबिक भविष्य में विश्व की दो-तिहाई जनता बीआरआई प्रोजेक्ट से जुड़ेगी। कुछ अर्थशास्त्रियों के मुताबिक बीआरआई प्रोजेक्ट वैश्विक व्यापार में 12 फीसदी की वृद्धि करेगा।

    चीन की इस लोकलुभावन परियोजना से कई देशों की माथे पर लकीरे खीच चुकी है। चीन इस परियोजना में 1 ट्रिलियन डॉलर जा निवेश करेगा और उसने अपने साझेदारों को यकीन दिलाया है कि वह इस प्रोजेक्ट के कर्ज को चुका सकते हैं। हालांकि चीन की कर्ज जाल चाल का जीता जागता सबूत श्रीलंका है। श्रीलंका की सरकार चीन से ढांचागत परियोजनाओ के लिए 1.5 बिलियन डॉलर की रकम को चुकता करने में विफल रही तो श्रीलंका ने चीनी दबाव के कारण मजबूरन हबंटोटा बंदरगाह को लिए साल के चीन के सुपुर्द कर दिया था।

    नेपाल इस कर्ज को चुकता करने में असमर्थ साबित होगा। कई छोटे देशों ने आर्थिक समृद्धि के लिए चीन की विस्तारवादी परियोजना को स्वीकार किया है। नेपाल ने बीते साल बीआरआई परियोजना के चक्र में प्रवेश किया था। इसी वर्ष जून में नेपाली प्रधानमन्त्री खडग प्रसाद शर्मा ओली ने चीन की यात्रा पर 2.4 बिलियन डॉलर के समझौते पर दस्तखत किये थे। इन समझौतों में आपदा से जर्जर हुए निर्माण और ऊर्जा क्षेत्र के प्रोजेक्ट थे।

    इन समझौते में हिमालय में रेलवे मार्ग का निर्माण ध्यान आकर्षित करने वाला था, इस रेलवे मार्ग को तिब्बत सीमा के केरुंग गाँव से नेपाल की राजधानी काठमांडू तक जोड़ा जायेगा। इस रेलवे मार्ग से नेपाल में  पर्यटन के लिए हर साल लगभग 2.5 मिलियन चीनी पर्यटक आयेंगे।

    क्या नेपाल कर्ज के दलदल में धंस रहा है ?

    काठमांडू में अभी बहस का मुद्दा है कि क्या यह रेलवे लाइन नेपाल के लिए वित्तीय और तकनीकी तौर पर सही साबित होगी। हालांकि जानकारों के मुताबिक यह रेलवे मार्ग एक सफ़ेद हाथी के सामान होगा, कीमती होगा लेकिन प्रभावी भी सिद्ध होगा। इससे सवाल बभी उठते है कि श्रीलंका चीन के 8 बिलियन डॉलर का कर्ज चुकता करने के लिए संघर्ष करता रहा, क्या दूसरे राष्ट्रों का वहीँ हाल नहीं होगा?

    मालदीव की सरकार का दावा है कि देश आर्थिक संकट की चुनौतियाँ झेल रहा है क्योंकि चीन ने एयरपोर्ट और पुल की परियोजना के लिए अंतरिम बजट का 10 फीसदी दिया था। नेपाल के अर्थशास्त्री और जानकारों के मुताबिक नेपाल में रेल मार्ग देश के विकास के लिए फायदेमंद होगा। नेपाल ईंधन, व्यापार, खाद्य और मीडियल सुविधाओं के लिए भारत पर से अपनी निर्भरता को खत्म करना करना है।

    चीन और नेपाल के मध्य का मुख्य मार्ग साल 2015 में दो माह के लिए बंद रहा था। इसका मकसद नेपाली राजनीतिज्ञों पर देश के व्यापार साझेदारों को बढाना और वैश्विक व्यापार मार्ग से जुड़ने का दबाव बनाना था। नेपाल की पूर्ववर्ती सरकार ने बीते साल चीन के साथ हुए 2.5 बिलियन डॉलर के हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था। लेकिन चीनी समर्थित ओली के सत्ता में आने के बाद इस प्रोजेक्ट को दुबारा शुरू किया गया था।

    भारत के राजनेताओं और मीडिया ने हव्वा बना रखा है कि चीन नेपाल को कर्ज के जाल में फंसकर उसका इस्तेमाल करेगा। लेकिन असलियत यह है कि चीन के नेपाल के करीब आने से भारत का काठमांडू पर प्रभाव कम हो जायेगा या यूँ कहे कि भारत की साख को धक्का लगेगा।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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