बिहार में पिछले दिनों हुई राजनीतिक उठापटक के बाद नीतीश कुमार ने अंततः भाजपा के समर्थन से स्थायी सरकार का गठन कर लिया है। हाल ही में नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमण्डल विस्तार की घोषणा की। नीतीश की नई कैबिनेट में जेडीयू के 16 और भाजपा के 12 विधायकों समेत कुल 29 मंत्री शामिल हुए। नीतीश कैबिनेट के 29 मंत्रियों में से 76 फ़ीसदी मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज है। मौजूदा कैबिनेट के 22 मंत्री आपराधिक मामलों में आरोपी हैं। दिलचस्प बात यह है कि लालू यादव की आरजेडी के साथ बनी गठबंधन सरकार में 18 मंत्री ही दागी थे जो कि कुल मंत्रिमण्डल का 68 फ़ीसदी था। ऐसे में अब यह कहना मुश्किल है कि नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव से इस्तीफे की मांग अपने सुशासन बाबू की छवि को बरकरार रखने के लिए की थी या उन्होंने अपना इस्तीफ़ा लालू यादव से पीछा छुड़ाने के लिए दिया था।
इन 22 दागी मंत्रियों में से 9 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं और अपने विवरण में इन्होंने इसका खुलासा भी किया है। 2 मंत्रियों पर हत्या की कोशिश में धारा 307 के तहत मुक़दमा दर्ज है। कई मंत्री ऐसे हैं जिनपर डकैती, चोरी, धोखाधड़ी और महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं। नीतीश की कैबिनेट में शामिल 29 में से 21 मंत्री करोड़पति है। इसका मतलब यह है कि नीतीश सरकार के 72 फ़ीसदी मंत्री करोड़पति है। तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद ही नीतीश कुमार ने उनसे इस्तीफे की मांग कर दी थी। नीतीश कुमार ने कहा था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ है और वह भ्रष्टाचार रोकने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाने को तैयार हैं। पर मंत्रिमण्डल विस्तार के बाद लग रहा है कि नीतीश कुमार ने पाला बदलने के साथ ही अपने सिद्धांत भी बदल दिए हैं। उनकी सरकार अपराधियों के साथ हो गई है । मुमकिन है कि नीतीश कुमार के लिए भ्रष्टाचार का मतलब लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और कांग्रेस का साथ हो।