अपने शपथ ग्रहण के बाद से ही लगातार सुर्ख़ियों में रहने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन दिनों भारी असमंजस में पड़े हुए हैं। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बने हुए उन्हें तकरीबन 5 महीने होने को हैं और अभी तक उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान मंडल के किसी सदन की सदस्यता नहीं ली है। उनके अलावा सूबे के दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा भी अभी तक विधान मंडल के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। योगी मन्त्रिमण्डल में 2 मंत्री ऐसे हैं जिनके पास भी किसी सदन की सदस्यता नहीं हैं। प्रदेश में भाजपा के बड़े दलित चेहरे स्वतंत्र देव और योगी सरकार के एक मात्र मुस्लिम मंत्री मोहसिन रजा इसमें शामिल हैं। इन पाँचों को 19 सितम्बर से पहले किसी भी सूरत में विधान मंडल के किसी भी सदन का सदस्य बनना जरूरी है और यही योगी के धर्मसंकट में फँसने की वजह है।
एक मात्र मुस्लिम चेहरे हैं मोहसिन रजा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी खड़े नहीं किए थे और इसके बावजूद भी उसे बहुमत से जीत मिली थी। पार्टी संगठन के इस निर्णय की सभी विपक्षी दलों ने आलोचना की थी और भाजपा को साम्प्रदायिक दल कहा था। उत्तर प्रदेश में टिकट बँटवारे को भाजपा की साम्प्रदायिक सोच से प्रभावित कदम कहा गया था। हालाँकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मोहसिन रजा को विधान मंडल के किसी भी सदन का सदस्य ना होने के बावजूद अपने मन्त्रिमण्डल में शामिल किया। योगी की छवि भी मुस्लिम विरोधी नेता की रही है। मोहसिन रजा मौजूद असर्कार के एकमात्र मुस्लिम चेहरे हैं। ऐसे में योगी कैबिनेट से मोहसिन रजा की विदाई योगी आदित्यनाथ को फिर से सवालों के घेरे में खड़ा कर सकती है।
बसपा को आधार देगी स्वतंत्र देव की विदाई
बसपा सुप्रीमो मायावती ने जुलाई की शुरुआत में मानसून सत्र के दूसरे ही दिन राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने दलितों पर हो रहे अत्याचार को अपने इस्तीफे का आधार बनाया था। बसपा पूर्णतः जातीय राजनीती करने वाला दल है और पिछड़े, दबे-कुचले और दलित मतदाताओं का बड़ा जनाधार अब तक उसके साथ रहा है। हालिया विधानसभा चुनावों में हालाँकि पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था और वह 80 से 19 सीटों पर सिमट गई थी। बसपा सुप्रीमो मायावती फिलहाल पार्टी संगठन को मजबूत करने का काम कर रही हैं और वापस अपने जनाधार से जुड़ने का प्रयास कर रही हैं। उनकी कोशिशों को रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी ने बड़ा झटका दिया था पर स्वतंत्र देव की योगी मन्त्रिमण्डल से विदाई उनके लिए संजीवनी का काम कर सकती है।
रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिन्दी भाषी राज्यों के साथ-साथ दलित मतदाताओं को भी साध लिया है। उनके राष्ट्रपति बनने का सबसे बड़ा नुकसान बसपा को हुआ है और उसके जनाधार का बड़ा हिस्सा अब भाजपा की तरफ खिसक गया है। पूरे देश में दलित वर्ग में भाजपा के पक्ष में महल बन रहा है और इसे स्पष्ट तौर पर महसूस किया जा सकता है। अभी तक भाजपा को सवर्ण हिन्दुओं की पार्टी कहा जाता था पर अब यह चोला उतर चुका है। हर वर्ग के मतदाता भाजपा के साथ जुड़ रहे हैं और पार्टी के भविष्य के लिए यह अच्छी बात है। केंद्र की सत्ता पाने के लिए उत्तर प्रदेश को जीतना जरूरी है और मोदी सरकार यह बात अच्छे से जानती है। इसीलिए वह हर कदम बहुत सोच-समझ कर उठा रही है और उम्मीद है कि इस मुद्दे पर भी वह कमजोर चाल नहीं चलेगी।
उपमुख्यमंत्रियों को लेकर फँसा पेंच
मुख्यमंत्री चुने जाने पर योगी आदित्यनाथ ने भाजपा आलाकमान से 2 उपमुख़्यमंत्रियों की मांग की थी। दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री बनाकर भाजपा आलाकमान ने उनकी मांग भी पूरी कर दी और सरकार में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व भी तय कर दिया। दिनेश शर्मा सवर्णों का प्रतिनिधित्व करते हैं वहीं केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा की बहुमत से जीत का मुख्य आधार ओबीसी वर्ग का भाजपा की तरफ झुकाव भी था। नीतीश कुमार की जेडीयू एनडीए में शामिल हो चुकी है और भाजपा को राष्ट्रीय पहचान का ओबीसी नेता मिल चुका है। रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद दलितों में अपने पक्ष में बन रहे माहौल को भुनाने के लिए भाजपा स्वतंत्र देव को पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का पद दे सकती है।
वर्तमान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को प्रमोट कर मोदी कैबिनेट में भेजा जा सकता है। ऐसा करने से फूलपुर की महत्वपूर्ण सीट भाजपा के कब्जे में रहेगी और बसपा सुप्रीमो मायावती की प्रदेश की राजनीती में वापसी की संभावनाएं धूमिल हो जायेंगी। स्वतंत्र देव के माध्यम से भाजपा प्रदेश के कुर्मी वोटरों को भी अपनी तरफ लुभाने में सफल रहेगी। इस वर्ग का प्रदेश में बड़ा जनाधार है और अभी तक भाजपा इन वोटरों को लुभाने के लिए अपने सहयोगी अपना दल का सहारा लेती आई है। अमूमन ये कम ही देखा गया है कि किसी राज्य में 2 उपमुख्यमंत्री हो।
उत्तर प्रदेश विधान परिषद में इस समय 4 सीटें रिक्त हैं और इसके सम्बन्ध में अधिसूचना जारी की जा चुकी है। अधिसूचना जारी होने के बाद रिक्त हुई किसी भी सीट पर चुनाव नहीं हो सकता है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस धर्मसंकट से निकलने के लिए कौन सा रास्ता अपनाते हैं। माना जा रहा है कि मोदी कैबिनेट का प्रस्तावित विस्तार ही योगी कैबिनेट का भविष्य तय करेगा और इसके बाद ही योगी सरकार अपनी आगे की रणनीति स्पष्ट करेगी।