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    नरेन्द्र मोदी और शी जिंगपिंग

    भारत ने चीन को स्थानीय मुद्रा में द्विपक्षीय व्यापार करने का प्रस्ताव दिया था जिसे चीन ने अस्वीकार कर दिया है। जिसका मकसद पडोसी देश के साथ व्यापार घाटे को कम करना था। साल 2017-18 में भारत ने चीन को 13.4 बिलियन डॉलर का निर्यात किया है जबकि 76.4 बिलियन डॉलर का आयात किया था, नतीजतन व्यापार घाटा 63 बिलियन डॉलर का हुआ था।

    यह व्यापार घाटा साल 2016 -17 में 51.11 बिलियन डॉलर का था। अधिकारी ने बताया कि चीन ने इस प्रस्ताव को निरस्त कर दिया है। अक्टूबर में आयोजित मंत्री स्तर की वार्ता में इस मसले पर चर्चा की गयी थी। व्यापार को रूपए और रॅन्मिन्बी में शुरू करने का सुझाव भारतीय रिज़र्व बैंक और आर्थिक मसलों के विभाग ने दिया था।

    भारत ने राष्ट्रीय मुद्रा में रूस, ईरान और वेनेज़ुएला को भी द्विपक्षीय व्यापार करने का प्रस्ताव दिया था क्योंकि इन देशों के साथ भी भारत का व्यापार घाटा चल रहा है। फेडरेशन ऑफ़ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाईजेशन के अध्यक्ष ने कहा कि सरकार को घरेलू मुद्रा में निर्यात करने का प्रचार करना चाहिए।

    उन्होंने कहा कि यह ची जैसे देशों के साथ व्यापार करने में लाभदायक सिद्ध होगा। व्यापार जानकारों के मुताबिक स्थानीय मुद्रा इ व्यापार उन देशों के साथ करने में फायदेमंद होगा जिनके साथ भारत का व्यापार संतुलित है। उन्होंने कहा कि साझेदार देश के पास भारत में रुँप्य में निवेश करने का अवसर होना चाहिए।

    हाल ही में चीन ने भारत से चावल और चीनी के निर्यात को हरी झंडी दिखाई थी। लेकिन भारत कई अन्य उत्पादों का निर्यात करना चाहता है। इसमें फार्मा, इंजीनियरिंग और सुविधाएं शामिल है। भारत की इंडस्ट्री और निर्यातकों को समय लेकर, दोबारा व्यापार घाटे के मसले को उठाना चाहिए।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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