भारत ने सात रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने से अन्य शरणार्थियों में भय का माहौल बना हुआ है। इनमे से 25 रोहिंग्या शरणार्थी कालिंदी कुंज के कैम्प में रह रहे हैं।
इनमे से अधिकतर शरणार्थी रोजाना मज़दूरी या रिक्शा चलाकर गुज़ारा करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि विदेशी पंजीकरण दफ्तर उनके वीजा की तिथि को आगे बढ़ाने के लिए मना कर रहा है। उनका वीजा की तिथि साल 2017 में समाप्त हो चुकी है।
एक रोहिंग्या शरणार्थी अब्दुल ने बताया कि हम बहुत दिक्कतों का सामना कर रहे है। ऐसे में सरकार हमे वापस भेजकर मौत के मुँह में धकेल रही है।
उन्होंने कहा हमारे साथ शरणार्थियों की तरह व्यवहार किया जा रहा है न कि इंसानो की तरह। मुझे आज़ादी के मायने नहीं मालूम है। मैं भारत में खुश हूँ और वापस म्यांमार नहीं जाना चाहता। हम अन्य नागरिकों की तरह भारत में रहेंगे।
शरणार्थियों ने बताया कि कैंप में पुलिस ने राष्ट्रीयता सत्यापन के लिए छह पन्नो का फॉर्म दिया था। जिसमे अपनी निजी जानकारियां भरनी थी और फोटो लगानी थी।
उन्होंने बताया एक पुलिसकर्मी फॉर्म को लेने आया था लेकिन अधिकतर लोगो ने फॉर्म भरने से इंकार कर दिया। शरणाथियों ने कहा कि हम तब तक वापस म्यांमार नहीं जायेंगे जब तक भारत सरकार वहां हमारी सुरक्षा और अधिकारों की गारंटी नहीं लेती।
शरणार्थियों ने बताया कि हमारा सब सामान खो गया है यहां तक की उनके पास यूएन का मानवधिकार कार्ड भी नहीं है। उन्होंने बताया की साल 2014 में जारी हुए वीजा की तिथि 2017 में समाप्त हो चुकी है। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें म्यांमार वापस भेजा जायेगा तो आर्मी उन्हें मार डालेगी।
उन्होंने कहा हमारी गुजारिश है कि सरकार म्यांमार में हमारी आज़ादी सुनिश्चित करे अन्यथा हमें यहां शान्ति से रहने दे। हम सरकार के समक्ष कोई मांग नहीं रखेंगे।
म्यांमार के रखाइन प्रान्त से रोहिंग्या अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय भागकर बांग्लादेश और भारत आ गया था। म्यांमार आर्मी ने इस समुदाय पर हिंसक आक्रमण किये थे।