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    तिब्बत के अध्यात्मिक गुरु

    दलाई लामा ने गुरूवार को दोहराया कि वह तिब्बत की चीन से आज़ादी की मांग नहीं करते हैं बल्कि सर्वसम्मति से स्वीकृत शर्तों के साथ चीन में तिब्बत का पुनर्मिलन चाहते हैं। तिब्बत के धार्मिक गुरु दलाई लामा ने नई दिल्ली में छात्रों और शिक्षकों से कहा कि “मैं तिब्बत का चीन के क्षेत्र में ही बना रहना पसंद करूँगा। किसी तरीके का पुनर्मिलन।”

    टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक उन्होंने कहा कि “चीन और तिब्बत के लोग अलग-अलग रह सकते थे। मसलन चीन तिब्बत नागरिकों की आर्थिक रूप से मदद करता और तिब्बत की जानकारी से चीन फायदा उठाता।”

    दलाई लामा ने कहा कि “साल 1979 में मैंने चीनी नेतृत्व से सीधे बातचीत की कोशिश की थी लेकिन इसके बाद थोड़ी ही प्रगति हो पाई क्योंकि चीन अभी भी यही सोचता है कि मैं तिब्बत की आज़ादी की मांग करता हूँ।”

    83 वर्षीय दलाई लामा साल 1959 से तिब्बत से निर्वासित होकर भारत में रह रहे हैं। चीन का दावा है कि सात शताब्दियों से अधिक समय से तिब्बत चीन का अभिन्न अंग है।

    सिन्हुआ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि, वन, पशुपालन, मछली पालन और सुविधा उद्योग के अतिरिक्त मूल्य में साल 1959 में 128 मिलियन युआन से बढ़कर आज साल 2018 में 13.41 अरब युआन हो गयी है। तिब्बत का आधुनिक उद्योग में वृद्धि का ग्राफ निरंतर बढ़ता जा रहा है। तिब्बत के उद्योग का मूल्य साल 1959 में 15 मिलियन युआन था और अब 11.45 अरब युआन हो गया है।

    दलाई लामा नें हाल ही में यह साफ़ किया था कि उनकी मौत के बाद अगला दलाई लामा भारत से हो सकता है। तिब्बत वासियों को अपने परम्पराओं को जीवित रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। तिब्बत के नागरिक पुलिस के राज में रह रहे हैं। अगर वह पाबंदियों को चुनौती देते हैं तो परिणाम बेहद बुरे मिलते हैं।

    प्रत्येक वर्ष तिब्बत की यात्रा करने वाले फ्रांकोइस रोबिन ने कहा कि “चीन हमेशा तिब्बत में आर्थिक वृद्धि का हवाला देकर स्वतंत्रता की बात को प्रभावी तौर पर दरकिनार कर देता है।”

    दलाई लामा से क्यों चिढ़ता है चीन?

    दलाई लामा का होना ही विश्व को यह दिखाता है कि वे चीन से तिब्बत भागकर अब निर्वासन में रह रहे हैं और तिब्बत पर चीन नें कब्ज़ा कर लिया था। दलाई लामा का निर्वासन यह जाहिर करता है कि तिब्बत के लोगों नें चीन का अधिकार स्वीकार नहीं किया है।

    दलाई लामा नें हालाँकि कई बार यह साफ़ किया है कि वे तिब्बत को चीन से आजादी नहीं दिलाना चाहते हैं, लेकिन चीन इसके बावजूद भी दलाई लामा से बेहद घ्रणा करता है।

    इसके अलावा दलाई लामा विश्व में कहीं भी जाते हैं, तो उनका बहुत स्वागत होता है। यह साफ़ दिखाता है कि वे एक इज्जतदार नेता हैं और विश्व उन्हें ही तिब्बत का असली उत्तराधिकारी मानता है।

    18 अप्रैल 1959 को भारत पहुंचे दलाई लामा
    18 अप्रैल 1959 को भारत पहुंचे दलाई लामा

    जब दलाई लामा भारत आये थे, तब उनकी वजह से भारत और चीन के बीच रिश्ते नाजुक हो गए थे और दोनों देश युद्ध में भी चले गए थे। युद्ध के बावजूद दलाई लामा नें भारत में रहना जारी रखा था और इससे दोनों देशों के बीच इस विषय पर आजतक रजामंदी नहीं हुई है।

    इसी दौरान यह भी कहा जाता है कि अमेरिका नें दलाई लामा की मदद लेकर चीन में घुसपैठ करने की कोशिश की थी।

    इसी दौरान 80 के दशक में दलाई लामा अमेरिका और भारत का सहारा लेकर तिब्बत की आजादी की मांग करते थे। यह मांग हालाँकि अब कम हो गयी है, लेकिन दलाई लामा का तिब्बत से नाता कभी भी टूट नहीं सकता है।

    हाल के समय में भारत सरकार नें दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश जाने की अनुमति भी दी थी, जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत कहता है। ऐसे में चीन नें उस समय काफी विरोध प्रदर्शन किया था।

    दलाई लामा नें हाल ही में यह साफ़ किया था कि उनकी मौत के बाद अगला दलाई लामा भारत से हो सकता है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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