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    तालिबान आतंकवाद

    अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा दिए गए शांति वार्ता के न्योते को ठुकराते हुए, तालिबान ने अपनी वार्षिक युद्ध नीति का एलान किया हैं। अमेरिका के नागरिकों और उनके समर्थकों को कैद करना, जान से मारना, यह तालिबानी युद्ध नीति का प्रमुख उद्देश्य हैं।

    तालिबान द्वारा इस नीति को ‘अल-खंदक मुहीम’ का नाम दिया गया है। यह नाम इस्लाम के शुरुवाती दिनों में मुहम्मद द्वारा लड़ी गयी लड़ाई के नाम पर दिया गया है।

    आपको बतादे, अफगानिस्तान के उत्तरी इलाके पर तालिबान का पूरा नियंत्रण है। तालिबान और अफ़गान सरकार के बीच चल रहे इस लड़ाई में अब तक 10,000 से ज्यादा आम नागरिक अपनी जान गवा चुकें हैं।

    देश के उत्तरी हिस्से में शांति के बहाली के लिए, बिना किसी शर्त के तालिबान को राजनीतिक संघटन का दर्जा देने का एलान सरकार की ओर से किया गया था।

    लेकिन सरकार के इस प्रस्ताव को, तालिबान नेतृत्व ने ठुकरा दिया है। तालिबान अब काबुल स्थित अफगान सरकार के बजाय अमरीका के साथ बातचित करना चाहता हैं। तालिबान और अफगान सरकार के बीच शांति वार्ता हो अमेरिका इसके पक्ष में हैं।

    तालिबान की मांगे

    • तालिबान अमरीका के साथ सीधी वार्ता करने के पक्ष में है। मगर बातचीत से पहले तालिबान चाहता हैं कि अमेरिका अपनी सेना को अफगानिस्तान से वापस बुला ले।
    • अफगानिस्तान में शरिया कानून लागु किया जाए।
    • अक्टूबर में होने वाले चुनाव का अफगान नागरिक बहिष्कार करें।

    अमरीकी रुख

    • अमरीका, अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति की बहाली चाहता हैं।
    • राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अफगान नीति के अंतर्गत, अमरीकी सरकार ने अफगानिस्तान में अतिरिक्त सेना को भेजने के आदेश दिए है।
    • अमरीकी सेना के अनुसार, अफगानिस्तान के 44 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से पर तालिबान का सीधा नियंत्रण हैं।
    • अमरीकी सैन्य नेतृत्व के अनुसार, तालिबान लढाई में दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा हैं। मगर तालिबान अफगान सेना पर घातक हमले कर, अपना नियंत्रण बनाए हुए हैं।

    पाकिस्तान के साथ तनाव

    • अफगानिस्तान में जारी लढाई के लिए, जागतिक मंचो पर अफगानिस्तान और अमरीका ने कई बार पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है।
    • अफगान सरकार के अनुसार तालिबान के काम में पाकिस्तान एक अहम भूमिका अदा करता हैं। पाकिस्तान के इस रवैय्ये के चलते अमरीका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद को रोक दिया था।
    • पाकिस्तान ने इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज किया है। उनके मुताबिक पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी कार्यवाही के चलते, तालिबानी पाकिस्तान से चले गए है।

    पिछले 17 साल से जारी इस लढाई का समाधान तालिबान के साथ शांति वार्ता के बिना निकलना तक़रीबन नामुमकिन है। अमरीका की सहायता प्राप्त अफगान सरकार और तालिबान के बीच इस लढाई का शिकार आम नागरिक बन रहे हैं।

    अफगानिस्तान की इस लढाई के कई पहलु है। एक तरफ अमरीका पड़ रहे आर्थिक बोझे को कम करते हुए, जल्द से जल्द अपनी सेना को वापस बुलाना चाहता है। दूसरी ओर पाकिस्तान जैसे देश अपने निजी फायदों के लिए अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता बहल नहीं होने दे रहे हैं।

    आशा है की आने वाले समय में इस समस्या का समाधान निकालने में दोनों पक्ष यशस्वी होंगे।

    By प्रशांत पंद्री

    प्रशांत, पुणे विश्वविद्यालय में बीबीए(कंप्यूटर एप्लीकेशन्स) के तृतीय वर्ष के छात्र हैं। वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीती, रक्षा और प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज में रूचि रखते हैं।

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