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    तालिबान के साथ सुलाह बातचीत

    आतंकी संगठन तालिबान ने जनवरी में सऊदी अरब में अफगानिस्तान सरकार के साथ शांति वार्ता के प्रस्ताव को नामंज़ूर कर दिया है। तालिबान इस पूर्व अमेरिका के साथ किसी समझौते पर पहुंचना चाहता है। तालिबानी नेता ने कहा कि अफगानिस्तान में इस्लामिक कानून को वापस लाने के लिए हम लड़ेंगे, हम शांति प्रक्रिया के प्रयासों के लिए अमेरिका के साथ बातचीत करेंगे।

    तालिबान के सदस्य ने कहा कि हम जनवरी में अमेरिकी प्रतिबिधियों से पहले मुलाकात करेंगे और अबू धाबी में अधूरी रह गयी बातों को दोबारा शुरू करेंगे। बहरहाल, यह स्पष्ट है कि हम अफगान सरकार से कोई बातचीत नहीं करेंगे।

    तालिबान के प्रवक्ता मुजाहिद ने मीडिया पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाया कि हम अफगान सरकार से बातचीत को राज़ी है। उन्होंने कहा तालिबान की स्थिति वही है और इसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा।

    अमेरिका का कहना है कि आखिरी समझौता तो अफगान सरकार के नेतृत्व में ही होना चाहिए। अफगान सरकार ने का कि समझौता तो उनके ही नेतृत्व में होगा, यह तालिबान को समझ लेना चाहिए।

    नवम्बर में नाटो के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अशरफ गनी की सरकार का प्रभाव या नियंत्रण 65 फीसदी जनता पर है लेकिन अफगानिस्तान के 407 जिले ही अफगान सरकार के पास है। तालिबान के दावे के मुताबिक वह देश के 70 फीसदी भाग पर नियंत्रण करता है.

    अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में तालिबान को शामिल करने के लिए अमेरिका इच्छुक हैं और तालिबान को एक सुरक्षा तंत्र का ऑफर दिया है, जिसमे विद्रोहियों के लिए नौकरी के अवसर होंगे। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस, चीन और अन्य विश्व के देश तालिबान को अफगान शांति प्रक्रिया में शामिल करने के प्रयासों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

    हाल ही में यूएई में तालिबान प्रतिनिधियों ने अफगान सरकार के अधिकारीयों, अमेरिकी राजदूत व अन्य लोगों से शांति के बाबत बातचीत की थी। साल 1996-2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार रही थी। केवल सऊदी अरब, यूएई और पाकिस्तान ने तालिबान की सरकार को मान्यता दी थी।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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