रूस में वरिष्ठ राजनीतिक हस्तियों की बैठक में तालिबान ने अफगानिस्तान के लिए एक नए संविधान की मांग की है। साथ ही एक समावेशी इस्लामिक प्रणाली को शासन व्यवस्था का वादा किया है। इस बैठक में अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और कई वरिष्ठ नेता शामिल हुए थे।
अल जजीरा के मुताबिक तालिबान के सदस्यो ने मास्को में अफगानिस्तान के कुछ प्रभावी नेताओं के सामने अपना घोषणा पत्र रखा था। दोहा और मास्को में हुई बैठक अलग-अलग है लेकिन इन दोनों ही बैठको से अफगान सरकार को अलग थलग रखा गया था।
तालिबान ने मास्को में हुई बैठक के दौरान कहा कि अफगान सरकार का संविधान अवैध है। यह पश्चिम से लिया गया है और यह शांति वार्ता में बाधा है। यह विवादित है और हम इस्लामिक संविधान चाहते हैं। साथ ही नए संविधान को इस्लामिक बुद्धिजीवियों द्वारा निर्मित किया जाएगा।
इस बैठक में अफगानी सरकार का कोई प्रतिनिधि मौजूद नही था। अफगानिस्तान में आगामी जुलाई में चुनावो का आयोजन होना है। राष्ट्रपति अशरफ गनी के समर्थकों ने आग्रह किया कि अफगान सरकार को शांति प्रक्रिया का नेतृत्व करना चाहिए। कई माह से चल रही अमेरिका और तालिबान की मुलाकात में उन्हें अफगान सरकार से बातचीत के लिए रज़ामंद करने को कोशिश की जा रही है। अमेरिका के साथ तालिबान की अगली बैठक 25 फरवरी को होगी।
ज़लमय खलीलजाद की नियुक्ति बीते माह सितम्बर में हुई थी, इसके बाद उन्होंने अफगान शांति से सम्बंधित सभी पक्षों के मुलाकात की थी। तालिबान का नियंत्रण आधे से अधिक अफगानिस्तान पर है, साल 2001 से अमेरिका के प्रवेश के बाद तालिबान अधिक शक्तिशाली हुआ है। शनिवार को ज़लमय खलीलजाद ने कहा कि दोहा में छह दिनों की बातचीत के बाद मैं अफगानी सरकार के साथ चर्चा के लिए अफगानिस्तान जा रहा हूँ। बीती बैठकों के लिहाज से यह वार्ता काफी फलदायी रही है। हमने कई मसलों पर सार्थक प्रगति हासिल की है।
अमेरिका का कहना है कि आखिरी समझौता तो अफगान सरकार के नेतृत्व में ही होना चाहिए। अफगान सरकार ने का कि समझौता तो उनके ही नेतृत्व में होगा, यह तालिबान को समझ लेना चाहिए।
नवम्बर में नाटो के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अशरफ गनी की सरकार का प्रभाव या नियंत्रण 65 फीसदी जनता पर है लेकिन अफगानिस्तान के 407 जिले ही अफगान सरकार के पास है। तालिबान के दावे के मुताबिक वह देश के 70 फीसदी भाग पर नियंत्रण करता है।