चीन और अमेरिका के बीच विवादों कि खाईयां गहराती जा रही है। मंगलवार को चीन ने अमेरिका से ताइवान को सैन्य उपकरण मुहैया कराने वाले 330 मिलियन डॉलर के समझौते को रद्द करने कि मांग की है।
चीन ने चेतावनी देते हुए कहा कि इसका खामियाजा द्विपक्षीय संबंधों और आपसी सहयोग को उठाना पड़ सकता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने मीडिया को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह समझौता अंतर्राष्ट्रीय कानून और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का सरासर उल्लंघन है।
प्रवक्ता ने किस अंतर्राष्ट्रीय कानून के विषय में बात की है यह स्पष्ट नहीं हुआ है। चीन ने अमेरिका से अनुरोध किया है कि बीजिंग और वांशिगटन के रिश्तों में खटास नहीं डालना चाहते तो तत्काल ताइवान के साथ की गयी सैन्य उपकरण मुहैया कराने की संधि को निरस्त कर दे।
नहीं तो इसका असर ताइवान में शान्ति, स्थिरता और द्विपक्षीय व्यापार पर होगा। वांशिगटन का ताइवान की सरकार के साथ कोई आधिकारिक समझौता नहीं है।
सोमवार को ट्रम्प प्रशासन ने ताइवान को एफ-16 लड़ाकू विमान और अन्य सैन्य विमानों के लिए अमेरिका में बने उपकरण बेचने की मंज़ूरी दी थी। यूएस ने कहा था कि इन उपकरणों की मदद से ताइवान अपनी रक्षा में सक्षम हो जायेगा।
वांशिगटन और बीजिंग एशिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए लड़ रहे हैं। चीन ताइवान को अमेरिका द्वारा दी जाने वाली हर सैन्य सहांयता का विरोध करता है। साल 1949 में चीन से अलग हुए हिस्से मेनलैंड को बीजिंग अपना प्रभुत्व का भाग मानता है।
अमेरिका ने हाल ही में रूस से सु-35 विमान और एस-400 मिसाइल से सम्बंधित उपरकण खरीदने पर चीन के उपकरण विकास विभाग और उसके प्रमुख का वीजा बैन कर दिया था। साथ ही आर्थिक प्रतिबन्ध भी लगाए थे।
रुसी राष्ट्रपति ने अमेरिकी चुनाव और अन्य गतिविधियों में हस्तक्षेप किया था। चीन के रक्षा मंत्रालय ने कहा की चीन और रूस के सैन्य सहयोग में अमेरिका को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं हैं। साथ ही उन्होंने प्रतिबंधों को वापस लेने की मांग की थी।