तनाव यानि स्ट्रेस (Tension or Stress) आज हमारे दौर की एक सच्चाई है। किसी को भी हो सकती है पर इसके बारे मे हम एक दूसरे से बात नहीं करते।
कोई तनाव में है तो एक झिझक होती है कि- लोगो को कैसे बताए कि वो तनाव में है; दुनिया फिर किस नजरिए से उसको एक्सेप्ट करेगी; क्या उसके चारों तरफ़ के लोग ये समझ पाएंगे खुद से या फिर उस तनावग्रस्त व्यक्ति को एक अलग तरह का तनाव लेना पड़ेगा यह समझाने के लिए कि वो तनाव यानी स्ट्रेस में है?
किसी को शरीर के किसी अंग में दर्द है तो उसे तरह-तरह की थेरपी/मेडिसिन देते हैं। उसको देखने भी लोग जाते हैं, हाल चाल भी पूछ लेते हैं। पर जब कोई तनाव में हो तो क्या हम उसे वैसे ही लेते हैं जैसे शरीर के किसी और अंग के तकलीफ को लेते हैं? क्या हम उसका हाल-चाल जानने की कोशिश करते हैं?
आखिर तनाव है क्या – “शरीर के ही सबसे महत्वपूर्ण अंग दिमाग यानि सम्पूर्ण शरीर के कंट्रोल रूम में उत्पन्न एक अलग तरह की मनो-स्थिति।” फिर हम इतने महत्वपूर्ण अंग की कार्यशैली को प्रभावित होते देखते रहते हैं, हम इसे समझते क्यों नहीं? क्यों इसे तब तक नहीं नोटिस करते जब तक इसे पागलपन या कुछ और दृष्टिकोण से नहीं देखा जाने लगे?
तनाव और आत्महत्या : एक दूसरे के पूरक
NCRB के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में भारत मे हर दिन लगभग 381 मामले आत्महत्या के रिपोर्ट किये गए हैं। जो रिपोर्ट नहीं किये गए उनकी संख्या रिपोर्टेड संख्या से 3 गुनी या 4 गुनी हो सकती है।
कोविड-19 महामारी और फिर आर्थिक मंदी के कारण 2020-2021 जिस तरह गुजरा, उसके हिसाब-किताब अब आ रहे हैं। आत्महत्या करने वालों की तादाद में जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज हुई है (NCRB 2020-21 डेटा) और उसमें सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर हैं। इसमें वैसे मामले जो रजिस्टर नही हुए हैं, को जोड़ा जाए तो ये संख्या ज्यादा ही होगी।
एक सुशांत सिंह राजपूत के लिए मीडिया और सोशल मीडिया से लेकर राजनीति तक हम बवाल करते हैं। पर कभी इस पर भी ध्यान दीजिए कि साधारण परिवार या घरों में जाने कितने सुशांत हमेशा के लिए शांत हो गए होंगे। इसलिये, अगर आप तनाव में हैं तो खुलकर बात करिये; झिझक मत रखिये।
अगर आपके चारो तरफ़ भी कोई तनाव में है तो उसके साथ खड़े होइए; उसको एहसास दिलाइए कि वो अकेला नही है। उस पर आरोप प्रत्यारोप, सही गलत आदि के बारे में फ्री का ज्ञान वाला खेल बाद में खेल लीजिएगा। याद रखिये, आपके ईगो, आत्म-सम्मान आदि (Ego, Self-Respect Etc) सब से ज्यादा जरूरी है आपके करीबी का सही सलामत होना।
तनाव-ग्रस्त व्यक्ति के लिए कुछ भी ऐसा हो सकता है जो उसे तनावमुक्त कर सकता है; जैसे म्यूजिक, कोई किताब, कोई फ़िल्म, कोई छोटा ट्रिप, कुछ भी।
जैसे मेरे लिए पहाड़ो के बीच बैठकर किताब पढ़ना और चाय पीना, कुछ 2-4 दिन वहाँ बिताना। मैं साल में 2-3 बार बिना दुनिया को बताए ऋषिकेश या उत्तराखंड/हिमाचल के पहाड़ो में घूम आता हूँ। ऐसे ही किसी और के लिए तनाव से मुक्ति का मार्ग कुछ और भी हो सकता है।
अवसाद से बचने की सबसे जरूरी थेरेपी – “नींद”
हाँ, तनाव या अवसाद आदि से बचने की सबसे जरूरी थेरेपी है- “नींद”। इंसान ने अपने प्रादुर्भाव से लेकर अब तक अपने तमाम क्रिया कलापों पर नियंत्रण पाया है। जैसे हाँथ पैर आदि पर नियंत्रण हासिल कर के इंसान बंदर या चिम्पांजी से आज का मानव बनने तक का सफर तय कर चुका है।
ऐसे और भी तमाम नियंत्रण हासिल हो गया; पर कभी भूख और नींद पर नियंत्रण क्यों नही हासिल हुआ? कभी सोचिए! क्योंकि इन दो चीजों के बिना शरीर चल ही नहीं सकती।इसलिये नींद सबसे जरूरी है। जागने से भी ज्यादा जरूरी है नींद।
“ज्यादा सोना” उतना बुरा नहीं है जितना कि “कम सोना’। मेरे पिताजी इसके सबसे बड़े उदाहरण है। वो स्वस्थ रहते हैं और इसकी वजह है उनका 6-8 घंटे की पूरी नींद। अगर हम ज्यादा सोते हैं तो कोई शर्म की बात नही है क्योंकि इस से तनाव-ग्रस्त होने की संभावनाएं कम हो जाती है।
अतः हमें समझना होगा कि तनाव किसी को भी हो सकता है। हमे अब इसे (तनाव) अपने दौर का, अपने जीवन का एक हिस्सा मानकर इसे सकारात्मक तौर पर समझना होगा। एक व्यक्ति के तौर पर भी और एक समाज के तौर पर भी।
अपने आप से भी और अपने लोगों से भी, अपने अपेक्षाओं का बोझ हल्का रखिये। यह तनाव किसी को भी हो सकता है- हमें, आपको, किसी को भी। इसलिए, एक दूसरे के साथ खड़े होने की आवश्यकता है; एक दूसरे से बेझिझक बात करने की आवश्यकता है।
यह जरूरी है कि आप दूसरों के प्रति अच्छा इंसान बने। परंतु यह ही जरूरी है कि आप अपने प्रति भी उतना ही Nice & Fine बने रहें। अपने जीवन मे खुद को भी थोड़ा वक्त दे।
Love yourself; Pamper yourself ! Don’t feel guilty of your mistakes!
#विश्व मानसिक स्वास्थ दिवस विशेष #WorldMentalHealthDay Special
( विशेष साभार: इस निबंध में लिखी गई बातें आंशिक तौर पर डॉ दयाशंकर मिश्रा जी के “जीवन-संवाद से उद्धृत/आधारित है)