अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यापार रिआयत को खत्म करने का निर्णय लिया था और भारत इसके बाद व्यापार वार्ता की टेबल पर बातचीत के लिए वापसी की योजना बना रहा है। इस रिआयत से भारत को अमेरिका में 2000 उत्पादों को बगैर के निर्यात करने की अनुमति थी।
इसके आलावा भारत के समक्ष प्रतिकार कर अमेरिका के उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने का भी विकल्प है। कोई भी जवाबी शुल्क कार्रवाई से वैश्विक व्यापार संघठन के मानकों पर आंच आ सकती है। भारत के वाणिज्य मंत्रालय की प्रवक्ता मोनीडीपा मुखर्जी ने इस पर टिप्पणी करने से इंकार दिया था।
6 जून को भारत के नवनिर्वाचित व्यापार मंत्री पियूष गोयल स्थानीय अधिकारीयों से मुलाकात करेंगे और उस दौरान इस मामले पर भी चर्चा करेंगे। अमेरिका द्वारा भारत से निर्यात कुछ पर उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने के प्रतिकार में भारत ने भी बीते वर्ष उच्च अतिरिक्त शुल्क का ऐलान किया था। बहरहाल भारत व्यापार युद्ध से बचने के लिए वार्ता के द्वारो को खुला रखा है।
डोनाल्ड ट्रम्प ने 5.7 अरब डॉलर के उत्पादों पर भारत को मिलने वाली रिआयत को खत्म किया है। भारत अमेरिका में ज्वेलरी, लैदर उत्पाद, फार्मासूटिकल्स, रासनायिक, प्लास्टिक और कुछ डेयरी उत्पादों को भेजता है। बीते महीने वाणिज्य सचिव विल्बर रॉस ने इसे “पक्षपाती रवैया” करार दिया था कि अमेरिकी कंपनियों को भारत में बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता है और यह भारत-अमेरिका व्यापार को असंतुलित करता है।
अमेरिका ने राष्ट्रों का समूह बनाया है ताकि एशिया में चीन के आर्थिक व सैन्य उभार को रोका जा सके। इस नीति में भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल था। आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की कशिश परपानी ने कहा कि “भारत इस मामले में आक्रमक रुख अख्तियार कर सकता है। साल 2017 तक पांच सालो में भारत को अमेरिकी हथियारों के निर्यात में 550 फीसद वृद्धि हुई थी और वह भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक बन गया था।”
भारत के व्यापार मंत्रालय ने कहा कि “भारत ने 21 अरब डॉलर के सरप्लस को कम करने के लिए अमेरिका के निर्यात में काफी वृद्धि की थी और भारत को इस लाभ से वंचित करना अफसोसजनक है। हालाँकि देश अमेरिका के साथ संबंधों को सुधारने के कार्य करना जारी रखेगा। उनके कारोबारी निर्णय का उनकी विकास अनिवार्यताओं और चिंताओं पर आधारित होता है।”