कादर खान के निधन से इंडस्ट्री अभी भी सदमे में हैं। हर अभिनेता, निर्देशक या निर्माता, जिन्होंने भी खान साहब के साथ काम किया है, वे उनके साथ बिताये कीमती पलों के बारे में ही बाते कर रहें है। हाल ही में, निर्माता-निर्देशक डेविड धवन जिन्होंने खान साहब के साथ बहुत सी मशहूर फिल्में बनाई है, उन्होंने मिड-डे में एक कॉलम अपने अजीज़ दोस्त के नाम समर्पित किया है। उनका लेख इस प्रकार है-
“मुझे परसों सुबह के 5 बजे पता चला कि भाईजान गुज़र चुके हैं। मैंने उनके बेटे सरफ़राज़ से बात की। वे रो रहे थे क्योंकि वो जानते हैं कि उनके पिता के साथ मेरा कैसा रिश्ता था। मैं टूट गया था और खुद भी रोने लगा। आप मुझे ऐसे रोते हुए देख ही नहीं पाओगे।
मैंने सबसे पहले उनके साथ फिल्म ‘बोल राधा बोल’ (1992) की थी और आखिरी फिल्म थी ‘मुझसे शादी करोगी’ (2004)। वो ‘बोल राधा बोल’ में मुझे जैसे इंडस्ट्री में नए आने वाले इन्सान के साथ काम करने के लिए बेहद उत्साहित थे और जब मैंने सीन्स उन्हें सुनाये तो उन्होंने बड़े ध्यान से सुने। रोल हिला के रख दिया। उनका काम जबरदस्त था। उन्होंने इतनी आसानी से इतने चुनौतीपूर्ण किरदारों को निभाया। मुझे नहीं लगता हमें फिर कभी उनके जैसा अभिनेता मिलेगा। वो मेरे हीरो नंबर 1 थे; मेरे करियर का एक सहारा। हमने साथ में 15 फिल्में की थी जो सारी हिट हुई। हमारा रिश्ता व्यावसायिक से बढ़कर व्यक्तिगत बन गया- एक गहरी दोस्ती उमड़ पड़ी।
जब मैंने उन्हें पहली बार प्रदर्शन देते हुए देखा, मैं चौक गया। वो कैमरा के आगे एकदम अलग लग रहे थे और कभी कोई अभ्यास या तैयारी नहीं की थी। आज तो लोग स्क्रिप्ट पढ़ते हैं और फिर शूटिंग शुरू के कई दिनों पहले से ही तैयारी करने लगते हैं। वो एक पल में ही समझ जाते थे कि कोई सीन कैसे करना है। अगर कोई चुनौतीपूर्ण सीक्वेंस होता था तो मुझे उन्हें निर्देश देने की भी जरुरत नहीं पड़ती थी। वो एक रेस ड्राईवर जैसे थे, बहुत तेज़। कभी कभी मैंने उन्हें कह देता था, भाईजान, कुछ करो ना? मज़ा नहीं आ रहा है। वो तुरंत बेहतर प्रदर्शन दे देते थे।
फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें कभी उनके काबिलियत से हिसाब से नहीं दिया। वो राजा था, कलम और अभिनय से क्या कमाल करता था। लोग सोचते हैं कि वे महान हास्य लेख लिखते थे मगर जिस प्रकार के उन्होंने भावुक लेख लिखे हैं, वे अविश्वसनीय है। वो इतनी आसानी से सीन कर देते थे जैसे तीर मार दिया हो। मगर उन्होंने कभी सामने आकर इस बात पर ज़ोर नहीं दिया कि वे कितने अच्छे लेखक या अभिनेता हैं।
वे पद्मश्री पुरुस्कार के हक़दार थे मगर उन्हें नहीं मिला। उन्हें बॉलीवुड से भी सीमित पुरूस्कार मिले हैं। एक वक़्त था जब साउथ फिल्म इंडस्ट्री उनकी जेबों में थी। हर निर्माता उनके साथ काम करना चाहता था। जब वे एअरपोर्ट पर उतरते थे तो चार से पांच गाड़िया, जिसमे कई निर्माता होते थे, सब उनका इंतज़ार कर रहे होते थे।
वे गरिमा से भरे व्यक्ति थे और सेट पर आने पर भी सबको सम्मान देते थे। उनमें स्टार होने की पूरी झलक दिखती थी-पठानी में आते थे, गाड़ी से उतर कर वैन में चले जाते थे और फिर सीन के बारे में पूछते थे। वे यहाँ वहाँ हमारे साथ बैठकर मटरगश्ती नहीं करते थे। जब भी वे सेट पर आ जाते थे तो मेरा आत्मविश्वास और बढ़ जाता था, क्योंकि मुझे पता था कि मेरा सबसे बेहतरीन अभिनेता आ गया है।
जब वे बीमार पड़ गए थे तो मैं उनसे ज्यादा राबता नहीं रख पाया क्योंकि वे बोलने की हालत में नहीं थे। उन्होंने पिछले दस सालों में बहुत कुछ झेला है। उनकी याददाश्त भी खोती जा रही थी। काश वरुण(डेविड के बेटे) को भाईजान के साथ काम करने का मौका मिल पाता। मगर अब वे पूरा नहीं हो पाएगा। मैं भाईजान को सलाम करता हूँ।”