फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैंक्रो इस समय वाशिंगटन दौरे पर हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मंगलवार को उनकी वार्ता ने नई चर्चाओं को जन्म दिया है।
इमैनुएल मैक्रों के अमरीकी दौरे का उद्देश्य था अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को 2016 के पैरिस पर्यावरण सन्धि को छोड़ने से रोकना। डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही अमेरिका पर्यावरण संधि से बाजत होने की धमकियां देता रहा है। राष्ट्रपति ट्रम्प का कहना है कि पैरिस सन्धि से पर्यावरण रक्षा का सारा भार सिर्फ अमेरिका जैसे विकसित देशों पर ही पड़ेगा।
मैक्रों ने यूरोपियन यूनियन से स्टील आयात ओर 25 प्रतिशत टैरिफ ना लगाने की भी कवायद की। साथ ही वार्ता में सीरिया के हालातों पर व वहां अमेरिकी सेना की मौजूदगी पर चर्चा हुई।
अमेरिका सीरिया से अपनी सेना हटाने पर विचार कर रहा है पर फ्रांस व अन्य यूरोपीय देश चाहते हैं कि अमेरिकी सेना अभी कुछ समय और वहां रहें। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय खास कर यूरोपीय देशों को दर है कि मौजूद आतंकवादी समुदाय विरोध की अनुपस्थिति में कहीं फिर सर ना उठा लें। साथ ही सीरिया में ईरान के वर्चस्व को काबू में रखने के लिए भी अमेरिकी सेना की सीरिया में मौजूदगी जरूरी है।
इन आकलनों को सत्य घोषित करते हुए ट्रम्प ने सम्बोधन में कहा था कि हम (अमेरिकी सेना) घर आना चाहते हैं पर जबतक क्षेत्र में पूर्ण स्थिरता ना बरकरार हो व हम अपने लक्ष्य को पूरा ना कर लें तब तक हमारा परिश्रम साध्य नहीं होगा।
चर्चा का केंद्र
दोनों नेताओं के बीच हुई इस वार्ता में चर्चा का मुख्य केंद्र था ईरान के साथ 2015 में हुई अमेरिका ईरान परमाणु सन्धि।
सन्धि के प्रति ट्रम्प का रवैया संदेहपूर्ण लगता है। उन्होंने ने अपने बयान में कहा, “ ये सन्धि बुरी है, बकवास है। इसकी नींव नष्ट हो चुकी है व यह किसी काम की नहीं।”
क्या है ईरान की परमाणु संधी?
ईरान के साथ हुई यह संधी अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, चीन, रूस, जर्मनी व यूरोपियन यूनियन तथा ईरान के बीच हुई थी।
ईरान मध्यपूर्व के देशों में अग्रणी बनने के लिए व सऊदी अरब, इराक़ व इस्राएल के खिलाफ सैन्य श्रेष्ठता हासिल करने के लिए लम्बे समय से परमाणु रिएक्टर बनाने की जद्दो-जेहद में लगा हुआ था। बाहरी मदद ना मिलने से व इस्राएल व अमेरिका के द्वारा लगातार गतिरोध झेलने की वजह से ईरान लम्बे समय तक कोई सफलता हासिल नहीं कर पाया था। हालांकि पिछले कुछ समय में ईरान ने यूरेनियम को अलग कर छड़ें बनाने में सफलता हासिल कर ली थी। इसकी वजह से पश्चिमी देश काफी परेशांन थे। ईरान अगर परमाणु बम बना लेता तो फिर मध्य-पूर्व में परमाणु रेस शुरू हो जाती जिससे ना सिर्फ शक्ति-सन्तुलन बिगड़ता बल्कि पृथ्वी भी संकट में होती।
तब लम्बी बातचीत व अमेरिकी प्रतिबन्धों के दबाव में ईरान ने सुरक्षा कॉउंसिल व जर्मनी तथा यूरपियन यूनियन के देशों के साथ सन्धि का ढांचा तैयार किया।
इसके तहत ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम बन्द करना होगा व सिर्फ ऊर्जा संबन्धी जरूरतों के लिए परमाणु संयंत्रों का इस्तेमाल किया जायेगा।
इसके बदले में अमेरिका व यूरोपीय देश ईरान पर लगाये सभी आर्थिक प्रतिबन्ध हटा देंगे।
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह संधि अपने पूर्ण स्वरूप में लागू नहीं हुई है। ये महच ढांचा है जिसके तहत आगे संधि सम्बंधित बातों के किये मैदान तैयार किया गया है।
अमेरिका का ताजा रुख
डोनाल्ड ट्रम्प इस सन्धि में बदलाव चाहते हैं। उनके इस रुख का एमानुएल मैंक्रो ने भी समर्थन किया। पर उससे पहले इस सन्धि की समीक्षा इसी साल मई में होनी है, ट्रम्प ने कहा है कि देखते जाइए उस समय क्या होता है!
सम्भव है कि अमेरिका ईरान पर सभी आर्थिक प्रतिबन्ध दुबारा से लगा दे। ऐसे में एक ऐसी स्थिति उतपन्न हो जायगी जिससे वापस लौटना ना अमेरिका, ना ईरान ऐर ना ही पूरी दुनिया के लिए ही इस्तेमाल।
ईरान की तरफ से भी इस मुलाकात के दौरान धमकी आई कि इस सन्धि को लेकर अमेरिका कोई फैसला नहीं कर सकता है व ईरान इस सन्धी से बंधा नहीं है।
देखना ये है कि विश्व शांति के लिए स्थापित यह सन्धि विश्व राजनीति को कैसा मोड़ देती है?