Gyanvapi Row: काशी के ज्ञानवापी मस्जिद केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश जारी कर मस्जिद में नमाज़ अदा करने वाले मुस्लिमों की संख्या पर निचली अदालत द्वारा लगाए गए प्रतिबंध (20 की संख्या) को निरस्त कर दिया है तथा उस स्थान पर जहाँ कथित तौर पर शिवलिंग मिला है, उसे सील करने का आदेश दिया है।
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— Bar & Bench (@barandbench) May 17, 2022
यह आदेश ऐसा है जिसमें स्पष्ट है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी पक्ष को निराश न करने की कोशिश की है।फिलहाल इस केस की सुनवाई अभी शुक्रवार तक के लिए रोक दी गयी है।
Supreme Court asks trial court in Varanasi not to proceed with the Gyanvapi Mosque case till Friday, 20th May.
— ANI (@ANI) May 19, 2022
इस पूरे मामले की सुनवाई को लेकर सबसे ज्यादा बहस चल रही है वह उपासना स्थल अधिनियम 1991 के इर्द गिर्द घूम रही है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के सामने भी चुनौती इसी अधिनियम की वैधता को लेकर है जिसे वाराणसी की निचली अदालत ने दरकिनार करते हुए मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया था।
जानिए क्या है यह अधिनियम
उपासना स्थल अधिनियम 1991 की प्रासंगिकता न सिर्फ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में है बल्कि जिस तरह से एक के बाद एक मथुरा,कुतुब मीनार, जमा मस्जिद (कर्नाटक) आदि धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद सामने आ रहे हैं, इस कानून की अहमियत और भी बढ़ जाती है।
पी वी नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा 1991 में पास किये गए इस अधिनियम के अनुसार 15 अगस्त 1947 के दिन देश मे जो भी धार्मिक स्थल और महत्वपूर्ण इमारतें जिस स्थिति में थे, आगे भी उसी स्थिति में रहेंगे। इनका नियंत्रण भी तब जिनके पास था, आज भी उन्हीं के पास रहेगा। उनके धार्मिक स्वरूप और संरचना में किसी तरह का बदलाव नहीं हो सकता।
इस कानून में एक विशेष धारा (धारा 5) का प्रावधान करने अयोध्या के मामले को अलग रखा गया था क्योंकि अयोध्या का मामला आजादी के पहले से अदालत में विचाराधीन था। और यही वजह थी कि हाल में सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर से जुड़े मामले को सुलझाया है।
इस कानून में कुल 07 धाराएं हैं। धारा नम्बर 03 वर्तमान समय के किसी भी धार्मिक स्थल के मौजूदा स्वरूप में ढांचागत बदलाव को रोकता है। अर्थात ये धार्मिक स्थल अपने पुराने रूप में ही संरक्षित रहेंगे।
यहाँ तक कि इस अधिनियम में किये गए प्रावधानों के मुताबिक अगर किसी धार्मिक स्थल में कोई ऐतिहासिक प्रमाण या साक्ष्य भी मिले तब भी इसके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं हो सकता, भले ही यह साबित हो जाये कि इसे पुराने किसी धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया हो।
इसी महत्वपूर्ण बिंदु को लेकर इस अधिनियम का बार-बार उल्लेख अभी जारी ज्ञानवापी मस्जिद केस में किया जा रहा है
ज्ञानवापी मस्जिद केस या मथुरा जैसे मामलों में महत्वपूर्ण है यह कानून
उपरोक्त प्रावधानों के मद्देनजर यह कानून ज्ञानवापी मस्जिद या मथुरा विवाद या भविष्य में उत्पन्न किसी भी ऐसे विवाद के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है। ज़ाहिर है अगर यह कानून इन मामलों में उपयोग किया जाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे वैध करार देती है तो इन धार्मिक स्थलों के ढांचा व स्वरूप में कोई तब्दीली नहीं की जा सकती।
यह जरूर है कि केंद्र सरकार चाहे तो इस कानून में संशोधन कर सकती है। लेकिन उसके लिए संसद में प्रस्ताव लाकर पास कराना होगा और कानून की शक्ल देनी पड़ेगी।
ज्ञानवापी केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला होगा महत्वपूर्ण
जब से राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, हिन्दू धर्म से जुड़ी संस्थाओं द्वारा दूसरे धर्म से जुड़े इमारतों व पूजा स्थलों को लेकर एक से बढ़कर से दावे सामने आ रहे हैं।
अभी हाल के दिनों में ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी, ताजमहल आगरा, ईदगाह मस्जिद केस मथुरा, कुतुब मीनार को विष्णु स्तंभ घोषित करने की मांग आदि लगातार सामने आए हैं।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले के माध्यम से एक नजीर पेश करनी होगी कि एक धर्म दूसरे धर्म की उपासना की आज़ादी को प्रभावित ना करे।