जापान के सम्राट अकिहितो ने अपने 85 वें जन्मदिन पर पद त्यागने से पूर्व कहा कि “मुझे बेहद तस्सली महसूस हो रही है कि मेरा कार्यकाल देश में बिना किसी युद्ध को देखकर खत्म होने जा रहा है।” उन्होंने कहा कि युवाओं को राष्ट्र के जंगी इतिहास के बाबत बताना जरुरी है। उन्होंने कहा कि यह मुझे बेहद आराम पंहुचता है कि हेइसी का कार्यकाल बिना किसी युद्ध को देखे खत्म होने जा रहा है, उनकी आवाज़ में भावनाएं झलक रही थी।
उन्होंने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि दृतीय विश्व युद्ध के दौरान असंख्य जाने गयी थी और युद्ध के बाद जापान की समृद्धि और शांति जापानी नागरिकों की कुर्बानियों और प्रयासों के कारण है, हमें इस इतिहास को सटीकता से जंग के बाद जन्मी पीढ़ी तक पंहुचाना है।
आधुनिक जापानी काल में अकिहिटो का 30 वर्षों का कार्यकाल एकमात्र शासन बिना युद्ध का रहा है। अपने पिता हिरोहिटो के नाम पर लड़ी इस जंग का में सब शांति की दुआएं कर रहे थे। अकिहिटो को शासन साल 1989 में मिला था। उन्होंने सत्ता को त्यागने का विचार 30 अप्रैल को बनाया था, उनकी जगह उनके बड़े बेटे और क्राउन प्रिंस नारुहिटो ने ली थी।
अपने कार्यकाल के दौरान अकिहिटो ने फिलिपीन व अन्य राष्ट्रों की अभूतपूर्व यात्रायें की, जिस पर जापान ने द्वितीय विश्व के दौरान विजय प्राप्त की थी। वह सीधे ऐसे राष्ट्रों से माफ़ी मांगने से बचे, लेकिन अपनी प्रतिक्रिया से इसका अफ़सोस व्यक्त किया था।
अकिहिटो ने कहा कि अपनी पत्नी के साथ गए उन यात्राओं को नहीं भुला सकता हूँ और उन देशों का कड़वाहट के बावजूद हमारे इतने भव्य स्वागत के लिए धन्यवाद कहना चाहूँगा। उन्होंने कहा कि जिन देशों ने हमारा सत्कार बेहद आदर से किया है, उनका बेहद शुक्रिया।
अकिहिटो 11 वर्ष के थे, जब उनके पिता ने 15 अगस्त, 1945 में दुसरे विश्व युद्ध में समर्पण का ऐलान किया था। उस दौरान जापान पर अमेरिका का कब्ज़ा था, और एलिज़ाबेथ ने अंग्रेजी में उनके पिता को प्रताड़ित किया था। उन्होंने कहा कि सम्राट के कार्यकाल के आखिरी दिनों में मैं उन सभी का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ, जिन्होंने मुझे स्वीकार किया और राष्ट्र के प्रतिक के रूप में समर्थन दिया था।