Fri. Nov 22nd, 2024
    आनंदपाल

    नागौर जिले के लाडनूं इलाके के सांवराद गांव का लॉ ग्रेजुएट आनंदपाल जो एक मफरुर गैंगस्टर के रूप में जाना जाता है ,उसका एक 15 दिन पहले पहले किया गया एनकाउंटर राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार की गले की फांस बन गया है। न सरकार से उगलते बन रहा है और ना ही निगलते। कुख्यात गैंगस्टर को मुठभेड़ में मार गिराने का वीरतापूर्ण दावा करके अपनी ही पीठ ठौकने में लगी पुलिस भी फंसती दिखलाई पड़ रही है।

    24 जून 2017 की रात 11 बजे बाद मुख्यमंत्री राजे ने गृहमंत्री गुलाबचंद को नींद से जगा कर बधाई दी कि उनकी होनहार पुलिस ने आनंदपाल सिंह को एनकाउंटर में मार गिराया है ,मुख्यमंत्री की ख़ुशी का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने इस पर ट्वीट भी करके राजस्थान सहित पूरे देश की जनता को अपनी सरकार की इस उपलब्धि की जानकारी दे दी

    आखिर जो जानकारी पुलिस महानिदेशक और गृहमंत्री को मुख्यमंत्री को देनी चाहिए थी ,उसकी जानकारी इनको मुख्यमंत्री से मिली ,इससे यह भी साबित हो गया है कि गृह विभाग आखिर संभाल कौन रहा है और राजस्थान का पुलिस महकमा किसके इशारों पर बड़े फैसले ले रहा है ?

    आनंदपाल की जिस तरह की छवि ब्राह्मणवादी मीडिया ने और राजस्थान की नाकारा पुलिस ने गढ़ रखी है ,उसको मद्देनज़र रखते हुये राज्य की आम रियाया ने उसकी मौत पर संतोष ही जताया ,आम लोगों को लगा कि प्रदेश को एक बड़ी समस्या से निजात मिल गई है और इससे शांति व्यवस्था बनेगी ,मगर जल्द ही इस मुठभेड़ को लेकर कई सवाल उठने लग गये ।

    आनंदपाल का जिस रावणा राजपूत समुदाय है ,वह राजस्थान की जातियों की सूचि के मुताबिक अन्य पिछड़े वर्ग में आता है ,हालाँकि व्यवहारिक और सामाजिक हैसियत की बात करें तो उनका वर्ण भी क्षत्रिय ही है और वो स्वयं को भी राजपूत ही मानते और लिखते आये है ।

    आनंदपाल सिंह की मुठभेड़ में मौत हो जाने पर सबसे पहला सवाल रावणा राजपूत समाज के जातीय संगठनों ने उठाया ,जिसमें करणी सेना और अन्य क्षत्रिय संगठनों ने अपना स्वर मिला कर इसे एक बड़ी आवाज़ बनाने का काम किया है ,आनंदपाल की माँ ,पत्नी और बेटी सहित अन्य परिजनो ने भी खुल कर अपनी बात सामने रखी और इस एनकाउंटर को ही फर्जी बता डाला है ।

    लोगों के लिए यह महान आश्चर्य का विषय बन गया कि आखिर जब आनंदपाल सिंह मारा जा चुका है तो फिर एनकाउंटर फर्जी कैसे हुआ ? लेकिन जैसे जैसे इस मुठभेड़ का दूसरा पहलू सामने आ रहा है लोगों को यकीन करने में कठिनाई आ रही है कि क्या कोई चुनी हुयी सरकार जिसमे दर्जनों राजपूत विधायक हो ,मंत्री हो ,वह इस तरह राजनीतिक हत्या को अंजाम दे कर उसे मुठभेड़ बता सकती है ! सवाल यह नहीं है कि आनंदपाल कुख्यात अपराधी था या नहीं ? जनता या उसके समर्थक एवम् उसका समाज उसे मसीहा मान सकता है मगर कानून की नज़र में वह मुजरिम था ,लेकिन क्या किसी अपराधी नागरिक की भी राज्य इस तरह निर्मम हत्या कर सकता है ? क्या पुलिस को यह निर्बाध अधिकार प्राप्त है कि वह फरार मुजरिमों को पकड़ने के बजाय इस तरह से उनका क़त्ल कर डाले और उसे आमने सामने की मुठभेड़ का फर्जी रूप दे दे और फिर अपने आपको ही बधाइयां और गैलेंट्री अवार्ड बांटने लगे ?

    वैश्विक मानवाधिकार घोषणाओं पर हस्ताक्षर करने वाला देश होने के नाते भारत एक ज़िम्मेदार राष्ट्र है ,मुल्क में ह्यूमन राइट्स का एक मेकेनिज्म बना हुआ है ,मानव अधिकार आयोग है ,कानून है और मानवाधिकार के लिए कार्यरत दर्जनों राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं कार्यरत है ।पुलिस द्वारा किये जाने वाले एनकाउंटर्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया की बकायदा एक गाइडलाइन है ,उसी के मुताबिक एनकाउंटर के सही या फर्जी होने के फैसले संभव है ।

    आनंदपाल एनकाउंटर के मामले में उसके परिजनों का आरोप है कि राजस्थान पुलिस की कहानी विश्वसनीय नहीं है ,पुलिस जो कह रही है ,वह एकतरफा सच्चाई है ,सच के दूसरे पक्ष को राजस्थान की सरकार दबाने में लगी हुयी है ,आनंदपाल के परिवार के लोगों और उसके समर्थकों एवम् उसके वकील का तो यहाँ तक कहना है कि आनंदपाल तो विगत काफी समय से सरेंडर करने को तैयार था ,इस हेतु उसने अपनी सुरक्षा को लेकर कुछ शर्ते रखी थी ,वह उदयपुर जेल में रहने को भी राजी था मगर सरकार की तरफ से कोई पॉजिटिव रेस्पॉन्स नही दिया गया ,जिस दिन उसे मौलासर में श्रवण सिंह के फार्म हाउस पर घेरा गया ,वहां भी उसने आत्मसमर्पण कर दिया था ,ऐसा दावा किया जा रहा है कि पुलिस के आला अफसरान ने आनंदपाल की बात राजस्थान सरकार के एक कैबिनेट मिनिस्टर से भी करवाई ,जिन्होंने उसे आश्वस्त किया कि उसे मारा नही जायेगा,लेकिन इसके कुछ ही मिनट बाद जयपुर से मिले उच्च स्तरीय दिशा निर्देश के चलते उसको नज़दीक से 4 गोली मार कर मार डाला गया।

    आनंदपाल के परिजन इसे राजनीतिक साज़िश रच कर धोखे में की गयी हत्या कह रहे है ,वहीँ सूबे की सरकार और पुलिस महकमा इसे एनकाउंटर साबित करने के लिए दिन रात एक किये हुए है ।

    सुप्रीम कोर्ट की मुठभेड़ मामलों की गाईड लाइन को दरकिनार कर आनंदपाल के शव का पोस्टमार्टम पुलिस ने बेहद जल्दबाज़ी और हड़बड़ी में करवा डाला ,उसकी योजना थी कि जितना जल्दी हो सके आनंदपाल का दाह संस्कार करवा डाला जाये, इसमें उन्हें आंशिक सफलता भी मिल गई मगर बाद में पूरे समुदाय के जुड़ जाने से पुलिस को अपना प्लान बदलना पड़ा,जब परिजनों ने शव लेने से इंकार कर दिया तो स्थिति विकट होने लगी और मुठभेड़ को फर्जी बताते हुये सीबीआई जाँच की मांग होने लगी तो पुलिस ही नहीं बल्कि राजस्थान सरकार को लेने के देने पड़ गये।

    लोग आवाज नहीं उठा पाएं ,इकट्ठे ना हो ,अपनी बात सब तरफ नहीं फैला पाये ,इसे ले कर पुलिस ने काफी सख्त एहतियाती कदम उठाना शुरू किया ,आईजी अजमेर रेंज ने लगभग धमकी भरे अंदाज में यह चेतावनी दे डाली कि आनंदपाल का समर्थन करती पोस्टों पर सरकार की नज़र है ,ऐसे लोग बख्शे नहीं जायेंगे ,इतना ही नहीं बल्कि सांवरोद जाने वाले सारे रास्तों को सील कर दिया गया ,कड़ी पूंछताछ के बाद ही लोगों को जाने दिया गया ,बाद में गिरफ्तारियां की जाने लगी और प्रदर्शनकारियों को जेलों में ठूंसा जाने लगा।आनंदपाल अपराधी था ,लेकिन उसकी मौत को लेकर सवाल उठानेवाला हर व्यक्ति ही राज्य की नज़र में अपराधी बनने लगा और सरकार अपने चरित्र के मुताबिक दमन पर उतर आई । अंततः सीबीआई जाँच और एम्स में डॉक्टर्स के दल से रिपोस्टमॉर्टम कराने की मांग तो नही मानी गयी मगर मौत के सातवें दिन रतनगढ़ ,चुरू के हॉस्पिटल में बोर्ड ले ज़रिये पुनः शव परीक्षण करवाया गया,सूत्रों के मुताबिक पहले और बाद में हुए पोस्टमार्टम में काफी अन्तर आया है और यह पता चला है कि आनंदपाल को बहुत ही नज़दीक से गोली मारी गई ,संभवतया उसे गोली मारने से पहले मूर्छा हेतु कैफीन जैसा कोई ड्रग दिया गया और बाद में गोली मार दी गई।

    आनंदपाल का शव कई दिनों से पड़ा हुआ है ,पहले तो वह डिफ्रिज में था ,बाद में उसे बर्फ की सिल्लियों में रखा गया मगर शव को घर पर ला कर छोड़ जाने के बाद पुलिस ने बर्फ के आने पर भी पाबन्दी लगा दी और घर वालों को मज़बूर करने के लिए बिजली पानी की आपूर्ति भी बाधित कर दी है ताकि परेशान हो कर परिजन शव की अंतिम रीति कर दें और सरकार का सिरदर्द समाप्त हो जाये ।

    हालाँकि पुलिस और प्रशासन तथा राजनितिक जमात के लोग समवेत स्वर में आनंदपाल के कुख्यात और दुर्दांत अपराधी होने और अथाह संपत्ति उगाहने और कई सारे क़त्ल करने के सबूत पेश करते हुए सवाल उठा रहे है कि किसी अपराधी के पक्ष में कोई समाज और उनके संगठन कैसे खड़े हो जाते है ? आनंदपाल सर्वसमाज के लिए एक नासूर बन चुका था ,उसके हक़ में कतिपय असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ रहे है ,जबकि अपनी जान जोखिम में डाल कर एक अपराधी का ख़ात्मा करनेवाले पुलिस के जवानों के लिए दो शब्द तक लोगों के पास नहीं है ?राजस्थान पुलिस का यह दुःख जायज हो सकता है ,मगर यह सिर्फ लॉ एन्ड ऑर्डर का मसला नहीं है ,इसमें बहुत गहरे में राजनीती धंसी हुई है ,हर कोई जानता है कि आनंदपाल कैसे शेखावाटी की स्थापित जाट राजनीति के लिए एक बड़ा खतरा था ,सब यह भी भली भांति जानते है कि आनंदपाल ने वसुंधरा राजे सरकार के शेखावाटी क्षेत्र से आने वाले कुछ विधायकों और मंत्रियों को चुनाव जिताने में कितना सहयोग दिया था । आनंदपाल के वकील का तो यहाँ तक दावा है कि उनके पास राजस्थान सरकार के 4 केबिनेट मंत्रियों के खिलाफ पुख्ता सबूत है जो साबित करते है कि आनंदपाल से उनके बेहद करीबी रिश्ते थे,वकील का कहना है कि वे शीघ्र ही अदालत में रिकॉर्डिंग ,वीडियो ,सीडी और टेलीफोन की कॉल डिटेल सौंपेंगे जिसमे वसुंधरा सरकार के मंत्रियों की कारगुजारियों का काला चिठ्ठा होगा।

    आनंदपाल के वकील के इस खुलासे और देशव्यापी होते आंदोलन के बीच राज्य सरकार डांवाडोल होती नज़र आ रही है ,राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सीबीआई जाँच की मांग को समर्थन देना भी इस मसले पर राजस्थान सरकार को रक्षात्मक रवैया अपनाने को मजबूर कर रहा है ,हालांकि क्षत्रिय समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधि इस मौके पर समाज से ज्यादा कुर्सी की चिंता में हलकान है ,गजेन्द्र सिंह खींवसर ने तो अपराधी का कोई समाज नहीं होता है ,कह कर अपनी मंशा साफ ही कर दी है ,वही राजेंद्र सिंह राठौड़ से लेकर अन्य बड़े बड़े नेता यहाँ तक कि भारत नामक राष्ट्र का प्रतापी गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी इस वक़्त मुंह में दही जमाये हुए है ,कुछ लोग इसे आनंदपाल सिंह का रावणा राजपूत समाज से होंने से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाना बता रहे है ,मगर करणी सेना जैसे संगठन इसको सिरे से ख़ारिज करते हुए दावा कर रहे है कि इस नाज़ुक मौके पर पूरे देश का क्षत्रिय समाज एक है ।इस बार आप साफ तौर पर राजपूत समाज को न्याय ,मानव अधिकार ,लोकतंत्र और संविधान तथा सुप्रीम कोर्ट की दुहाई देते हुए देख सकते है ,मगर अब भी विरोध के उनके तौर तरीके वही राजशाही वाले है ,आनंदपाल का पूरा मामला कानून की लड़ाई का है ,मानव अधिकारों पर सत्ता के हमले का है ,मगर वे मानवाधिकार संस्थाओं का सहयोग लेने और आम लोगों की सहानुभूति अर्जित कर पाने में अभी भी कामयाब नहीं हो पा रहे है ,वे अपने परम्परागत राठोड़ी तरीकों से यह जंग जितने को आतुर है ,इसलिए कही तहसीलदार की गाड़ी फूँक रहे है तो कही राष्ट्र की संपत्ति को तोड़ रहे है ,एक आध जगह पर पुलिस के साथ हाथापाई के भी वीडियो वायरल हुए है,देश व्यापी प्रदर्शन के बावजूद आनंदपाल की मौत को मानवाधिकार का मुद्दा नहीं बना कर सिर्फ राजपूतों की मूंछ का प्रश्न बना देना और लॉ एन्ड ऑर्डर की समस्या खड़ी कर देना इस आन्दोलन की बड़ी रणनीतिक विफलता कहा जायेगा ,क्योंकि पुलिस यही चाहती है कि यह जातीय संघर्ष एवम् कानून और व्यवस्था का मामला बन जाये ,ताकि इसका सरलता से दमन किया जा सके ।

    स्वयं को उच्च वर्णीय मानने वाले क्षत्रिय समुदाय को आनंदपाल प्रकरण से यह सबक जरूर लेना चाहिए कि राज्य का दमन चक्र किसी भी नागरिक समूह की आवाज़ को खामोश कर सकने में सक्षम हो जाता है और न्याय की लड़ाई सिर्फ एक कौम की लड़ाई नहीं होती है ,इतना ही नहीं बल्कि कमजोर वर्ग पर अन्याय करने के बजाय उनके न्याय के लिए लड़ना इस देश की व्यवस्था में कितना मुश्किल है ,जो इस मुल्क के करोडो लोग बर्षो से लड़ रहे है ।

    मेरा यह मानना है कि आनंदपाल सिंह बेशक अपराधी था ,मगर उसके अपराधों की सजा उसके परिजनों को नही दी जा सकती है और ना ही नागरिकों की सीबीआई जाँच जैसी मांग को ठुकराया जा सकता है ,उसकी मौत किन हालातों में हुई ,यह जानने का अधिकार उसके समुदाय और समर्थकों सहित सबको है ,पुलिस की मुठभेड़ की 90 फीसदी कहानिया झूठी और बुनी हुयी होती है ,क्योंकि पुलिस का मूल चरित्र ही सामंतशाही का है और मानवाधिकारों का हनन करने वाला है ,इसलिए उसे आलोचना और जाँच से परे रखना हमारे लोकतंत्र के लिए खतरनाक है ।न्याय की मांग चाहे वह करणी सेना जैसा सीधी कार्यवाही करने वाला जातीय समूह करें या कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल की फैमिली करें ,उस मांग का औचित्य इससे कम नहीं हो जाता है कि यह प्रकरण एक अपराधी से जुड़ा हुआ है ,आनंदपाल के अपराधी होने से उसके तथा परिजनों के मानव अधिकार कम नही हो जाते है ,उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए ,यही एक परिपक्व लोकतंत्र की निशानी भी है ।

    मुझे लगता है कि राज्य सरकार को अपनी हठधर्मिता छोड़ कर तुरंत आनंदपाल मुठभेड़ की सीबीआई जाँच की अनुशंसा कर देनी चाहिए और अन्य मांगों के प्रति भी मानवीय संवेदना रखते हुए विचार करना चाहिए ताकि एक शव को अंतिम विधि नसीब हो,वरना आनंदपाल तो अपराधी था ही ,एक संदिग्ध मौत और उसके बाद शव की बेकद्री इस राज सत्ता को भी अपराधी की ही श्रेणी में डाल देगी और यह कानून के शासन के लिए सर्वथा शर्म की बात होगी

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।