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    जर्मन चांसलर

    जर्मनी में सरकार बनाने को लेकर संकट गहरा गया है। जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल ने इसी साल सितंबर में हुए चुनावों में अन्य पार्टियों की तुलना में अधिक वोट हासिल किए थे। लेकिन इसके बावजूद एंगेला की सरकार बनना काफी मुश्किल हो गयी है।

    दरअसल एंगेला मर्केल की सरकार की सहयोगी पार्टी रही एफडीपी के साथ गठबंधन को लेकर वार्ता बेनतीजा रही है। जिससे अब एंगेला के सरकार बनाने पर संकट हो गया है।

    पिछले 70 सालों के सबसे बुरे वोट अबकी बार एंगेला की पार्टी सीडीयू/सीएसयू को मिले है। पिछली बार हुए चुनावों में एंगेला मर्केल को करीब 40 फीसदी वोट मिले थे जो अबकी बार हुए चुनावों में घटकर महज 33 फीसदी रह गए है।

    एफडीपी के साथ वार्ता विफल

    एफडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाने को लेकर हुई वार्ता के बाद एफडीपी के नेता ने कहा कि एंगेला मर्केल की पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला है। वहीं एंगेला ने कहा कि बैठक में वार्ता बेनतीजा होने का उन्हें दुख है।

    अब वो जर्मन प्रेसीडेंट फ्रैंक वाल्टर स्टेनमियर से मुलाक़ात करेंगी। स्टेनमियर को मध्यावधि चुनाव की घोषणा करने का अधिकार है। ऐसे में संभावना लग रही है कि जर्मनी में फिर से चुनाव कराए जा सकते है।

    या फिर हो सकता है कि एंगेला ग्रीन्स पार्टी के साथ गठबंधन कर ले और अल्पमत सरकार बना ले। लेकिन अभी तक इस बारे में ग्रीन्स पार्टी की तरफ से कोई टिप्पणी नहीं की गई है। ग्रीन्स पार्टी के पास 9 फीसदी वोट है।

    चौथी बार जर्मन चांसलर बनना मुश्किल

    पिछली सरकार में एंगेला मर्केल की सहयोगी रही एसडीपी के पास करीब 20 फीसदी वोट है। लेकिन एसडीपी ने पहले ही विपक्ष में बैठना का फैसला कर लिया है।

    ऐसे में जर्मनी में चौथी बार चांसलर बनने का मर्केल का सपना पूरा होना मुशिकल में नजर आ रहा है। हालांकि इस बार हुए चुनावों में एंगेला की पार्टी को सबसे ज्यादा वोट मिले है। लेकिन वो सरकार बनाने के लिए कम है।

    जर्मन संसद में पहुंचने के लिए किसी भी पार्टी को 5 फीसदी वोट की ज़रूरत पड़ती है। पिछली बार एएफडी साढ़े चार फीसदी वोट पर रुक गई थी। लेकिन यहां से उसके 13 फ़ीसदी तक पहुंचने का सफ़र अहम है।

    ये वो वोट हैं जो मर्केल की पार्टी से कटकर आए है। जर्मनी में हमेशा से ही गठबंधन सरकार बनती है। लेकिन अबकी बार ऐसा होना नामुमकिन लग रहा है। अब ज्यादा संभावना तो दोबारा चुनाव करवाने की ही लग रही है।