देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह स्वास्थ्य लाभ के बाद इन दिनों देश भ्रमण कर मौजूदा हालातों का जायजा ले रहे हैं। इसी क्रम में आज वह अपनी 4 दिवसीय यात्रा पर जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में हैं। आज राजनाथ सिंह की कश्मीर यात्रा का तीसरा दिन है। उन्होंने आज कई क्षेत्रों का दौरा किया और स्थानीय लोगों से मुलाकात कर उनकी समस्याएं जानी। श्रीनगर में लोगों से बातचीत के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि वह पिछले 1 साल के दौरान 5 बार कश्मीर आ चुके हैं। आगे अगर जरुरत पड़ी तो वह 50 बार भी आ सकते हैं। अपनी यात्रा के दौरान गृह मंत्री राजनाथ सिंह पूरे राज्य का भ्रमण करेंगे और लोगों से मिलकर उनका मिजाज जाने का प्रयास करेंगे। इसके अतिरिक्त वह सुरक्षाबलों से भी मुलाकात करेंगे।
बातचीत के लिए किया आमंत्रित
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि वह उन सभी को आमंत्रित करते हैं जो कश्मीर की समस्याओं का समाधान बातचीत के जरिए निकालना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वह हर तरह से बातचीत के लिए तैयार हैं। अनुच्छेद 35ए पर सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि हम कश्मीर के लोगों को समझते हैं और उनकी भावनाओं का सम्मान करते हैं। हम लोगों की भावनाओं के खिलाफ नहीं जाएंगे। अब विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं बचा है इसलिए ऐसे मुद्दों को उठाया जा रहा है। श्रीनगर में पत्रकारों से बातचीत में राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कश्मीर को दी जाने वाली मदद की राशि अब 1 लाख करोड़ तक पहुँच गई है। उन्होंने कहा कि राज्य में शांति व्यवस्था को सुचारु रूप से बनाए रखने के लिए हम हर किसी से बात करेंगे। साथ ही उन्होंने देश-विदेश के पर्यटकों से आह्वान किया कि वह बड़ी संख्या में कश्मीर आएं।
अनंतनाग में की थी पुलिस जवानों से मुलाकात
इससे पूर्व कल अपने दौरे के दूसरे दिन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अनंतनाग में पुलिस के जवानों से मुलाकात की थी। उन्होंने जवानों से बात की थी और उनकी समस्याएं भी सुनी थी। इस मौके पर राजनाथ सिंह शहीद एएसआई अब्दुल रशीद की बेटी जोहरा को याद करते हुए भावुक हो गए थे। उन्होंने कहा कि फोटो में उन्होंने जोहरा का आंसुओं से भीगा चेहरा देखा था। जोहरा का दर्द आज भी उनके दिल से निकालता नहीं है। राजनाथ सिंह ने इस दौरान जवानों का हौसला भी बढ़ाया और घाटी में शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए उनकी तारीफ भी की।
अनुच्छेद 35ए पर गरमा रही है कश्मीर की सियासत
पिछले कुछ दिनों से अनुच्छेद 35ए सुर्खियों में है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा को विशेषाधिकार देने वाला यह अनुच्छेद भारतीय संविधान में वर्णित नहीं है। इसे हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका मात्र से बवाल मचा हुआ है। जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दल इस अनुच्छेद को हटाने की मांग को लेकर अपना विरोध जता चुके हैं। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र ने अनुच्छेद 35ए को जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ किया गया एक ‘संवैधानिक धोखा’ करार दिया है। 14 मई, 1954 को देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इसी आदेश को आधार बनाकर देश के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35ए जोड़ दिया गया था।
अनुच्छेद 35ए की वजह से कश्मीर में हाशिए पर जीवन गुजारते हैं दलित हिन्दू
अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देती है कि वह स्थायी निवासी की परिभाषा निर्धारित करे। इसके अनुसार राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह विभाजन के वक्त दूसरी जगहों से आये शरणार्थियों और भारत के अन्य राज्यों के लोगों को कौन सी सहूलियतें दें और कौन सी नहीं। यह अनुच्छेद 370 का ही हिस्सा है। इसके अनुसार जम्मू-कश्मीर में देश के अन्य राज्यों के लोग जमीन नहीं खरीद सकते। इस धारा की वजह से आजादी के 70 सालों बाद भी लाखों लोगों को जम्मू-कश्मीर में स्थायी नागरिकता नहीं मिल सकी है। इन्हें कश्मीर में अल्पसंख्यक कहा जाता है पर इन्हें अल्पसंख्यकों के हिस्से का 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता है।
इन लोगों में 80 फीसदी दलित हिन्दू है जो विभाजन के वक्त पाकिस्तान से भारत आये थे। आज भी वह मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं और हाशिए पर जीवन गुजारने को मजबूर हैं। इन तबकों के बच्चों को जम्मू-कश्मीर के राजकीय संस्थानों में दाखिला नहीं मिलता और ये लोग स्थानीय चुनावों में भी मतदान नहीं कर सकते। इन सब अल्पसंख्यकों में सबसे बुरी स्थिति वाल्मीकि समाज के लोगों की है जिन्हें आज भी राज्य में केवल सफाईकर्मी की नौकरी मिलती है और इनका वेतन भी बहुत कम होता है।