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    जनरक्षा यात्रा

    जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी है भाजपा और उसके सहयोगी दलों की चाँदी हो गई है। धीरे-धीरे भाजपा पूरे देश में अपनी जड़ें जमा रही है। 2014 लोकसभा चुनावों के बाद से हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है और आज देश के तकरीबन दो-तिहाई राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकार है। भाजपा अब उन राज्यों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है जहाँ उसे अबतक कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी है। केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उड़ीसा ऐसे राज्य हैं जहाँ भाजपा हमेशा हाशिए पर रही है। भाजपा अब इन राज्यों पर ध्यान केंद्रित किए हुए है और आगामी विधानसभा चुनावों में यहाँ अपनी जबरदस्त उपस्थिति का एहसास कराने को बेताब है। केरल का नाम भाजपा की इस सूची में अग्रणी स्थान पर है।

    केरल में पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनावों में सीपीएम ने बड़ी जीत दर्ज की थी और बहुमत से सत्ता में आई थी। स्थापना के बाद पहली बार भाजपा ने केरल में अपना खाता खोला था। पूर्व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ओ राजगोपाल ने नेमाम सीट से चुनाव जीतकर भाजपा को केरल में नई राह दिखाई थी। भाजपा अब देश के सबसे शिक्षित राज्य और वामपंथियों के गढ़ केरल में अपनी पैठ बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। केरल में लगातार हो रही भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं की हत्या के विरोध में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 3 अक्टूबर को 14 दिनों तक चलने वाली जनरक्षा यात्रा की शुरुआत की। भाजपा के कई दिग्गज अब तक इस यात्रा में शामिल हो चुके हैं। यात्रा को मिल रहे जनसमर्थन से भाजपा यह आस लगाए बैठी है कि 55 फीसदी हिन्दू आबादी वाले केरल को वह भगवा रंग में रंगने में कामयाब रहेगी।

    जातीय समीकरण साधने की कोशिश

    भाजपा केरल में सियासी पैठ बनाने के लिए जातीय समीकरण साधने की कवायद में जुट गई है। अमित शाह द्वारा शुरू की गई जनरक्षा यात्रा के दूसरे दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे योगी आदित्यनाथ ने भी इसमें भाग लिया था। केरल की भूमि से वामपंथियों को ललकारते हुए योगी आदित्यनाथ ने खुले तौर पर कहा था कि आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा केरल की लाल जमीन का रंग भगवा कर देगी। उनकी इस बात में कुछ दम जरूर नजर आता है।

    अगर जातीय आधार पर देखें तो देश के सबसे शिक्षित राज्य केरल की 55 फीसदी आबादी हिन्दू है। 27 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है वहीं 18 फीसदी आबादी ईसाई है। ऐसे में भाजपा अगर हिन्दुओं को अपनी ओर मिलाने में सफल हो जाए तो वह केरल में मजबूत बनकर उभर सकती है। भाजपा अगर केरल की सत्ता में ना भी आ पाए तो अगली बार राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी बन सकती है। हालाँकि यह इतना आसान नहीं होगा क्योंकि केरल के वामपंथी दल भाजपा के खिलाफ लगातार अभियान चला रहे हैं और राज्य में भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं पर लगातार हमले हो रहे हैं।

    विधानसभा चुनावों में हुआ था भाजपा का श्रीगणेश

    2016 में हुए केरल विधानसभा चुनावों में भाजपा ने स्थापना के बाद पहली बार केरल में कोई सीट जीती थी। इस जीत ने भाजपा एके मिशन केरल का श्रीगणेश कर दिया था। भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ओ राजगोपाल ने नेमाम की सीट जीतकर भाजपा को केरल में नई आस दी थी। उनकी जीत से पूर्व भाजपा को केरल में कोई आस नहीं दिख रही थी। बीते कुछ समय में केरल में भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं पर लगातार हमले हो रहे थे। इसे लेकर केरल की राजनीति गरमाई हुई थी और भाजपा ने सही समय पर इसपर हथौड़ा मार दिया है। भाजपा वोटों के ध्रुवीकरण के लिए लव जिहाद और लाल आतंक जैसे मुद्दों को आधार बना रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा की इस रणनीति का केरल की राजनीति पर क्या असर होता है।

    रक्तरंजित है मुख्यमंत्री का गढ़

    केरल के जिस हिस्से में सबसे अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है वह है मुख्यमंत्री पी विजयन का गढ़ कहा जाने वाला कन्नूर। शायद इसी वजह से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जनरक्षा यात्रा की शुरुआत के लिए कन्नूर को चुना था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी छवि के नेता योगी आदित्यनाथ ने भी कन्नूर का दौरा किया था और सत्ताधारी सीपीएम सरकार पर निशाना साधा था। योगी आदित्यनाथ ने लव जिहाद को मुद्दा बनाकर राज्य सरकार पर हमला बोला था और राज्य सरकार से लव जिहाद पर कठोर कदम उठाने की मांग की थी। पिछले 4 दशकों से कन्नूर में भाजपा और वामपंथी दलों के बीच संघर्ष चल रहा है। अब सभी को इस बात का इन्तजार है कि क्या मुख्यमंत्री का गढ़ कहे जाने वाले कन्नूर पर भाजपा का भगवा रंग चढ़ पाएगा?

    सियासी पृष्ठभूमि तैयार कर रही है भाजपा

    केरल में अगले विधानसभा चुनाव वर्ष 2021 में होंगे पर भाजपा अभी से इसकी पृष्ठभूमि तैयार करने में जुट गई है। भाजपा और आरएसएस केरल में अपने कार्यकर्ताओं की लगतार हो रही हत्याओं के लिए सत्ताधारी सीपीएम सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। बीते स्वतंत्रता दिवस के दिन संघ प्रमुख मोहन भगवत ने केरल में ध्वजारोहण किया था और जनरक्षा यात्रा में हिंदुत्ववादी राजनीति के कई बड़े चेहरे नजर आ चुके हैं। इससे स्पष्ट है कि भाजपा केरल में हिंदुत्व का सहारा लेकर अपनी सियासी पैठ को मजबूत करने में जुटी है। अमित शाह द्वारा शुरू की गई जनरक्षा यात्रा भी भाजपा के विस्तार अभियान का ही हिस्सा है। भाजपा जनरक्षा यात्रा और हिंदुत्व आधारित मुद्दों के दम पर अगले चुनावों में केरल की प्रमुख विपक्षी पार्टी बनकर उभर सकती है।

    केरल में लगातार बढ़ रहा है आरएसएस का संगठन

    आरएसएस ने पिछले कुछ वक्त में केरल में व्यापक स्तर पर विस्तार किया है। आरएसएस के प्रांत प्रचारक पी गोपालन कुट्टी मास्टर के अनुसार, “हमारे 2,00,000 सक्रिय कार्यकर्ता और 1,93,000 समर्थक हैं। साथ ही आरएसएस की 5,200 दैनिक शाखाएं और 800 सप्ताहिक शाखाएं हैं। महज पांच साल में ही संघ ने यहाँ इतना विस्तार किया है। साथ ही आरएसएस से काफी संख्या में छात्र और अन्य युवा तेजी से जुड़ रहे हैं। खास बात यह है कि केरल में सबसे ज्यादा आरएसएस कार्यकर्ता कन्नूर में हैं। इसके बाद अलाप्पुझा और थ्रिस्सूर का स्थान आता है। इसके अलावा संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने कांग्रेस से जुड़े आइएनटीयूएस को उखाड़ फेंकने में मदद कर रहा है। इससे भाजपा को आगे बढ़ने में मदद मिली है।”

    हिंदुत्व कार्ड से भाजपा को आस

    भाजपा ने केरल में अपना पसंदीदा हिंदुत्व कार्ड खेला है। भाजपा की छवि देशभर में हिंदुत्व आधारित राजनीति करने वाले दल की है। केरल में हिन्दू मतदाताओं की संख्या निर्णायक भूमिका में है। आज भी देश के हिन्दू समाज का एक बड़ा धड़ा भाजपा का समर्थक है और उसे भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। ऐसे में भाजपा अपने परंपरागत वोटरों को मनाने के लिए केरल में हरसंभव दांव खेल सकती है। भाजपा की संगठन इकाई आरएसएस केरल में लगतार अपने पाँव पसार रही है और पिछले कुछ वर्षों में केरल में उसकी लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ है। आरएसएस केरल में खुद को हिंदुत्व के सबसे बड़े रक्षक के तौर पर पेश कर रही है। ऐसे में उम्मीद है कि भाजपा आगामी चुनावों में केरल में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराएगी और लाल रंग में रंगे केरल के सियासी पटल पर भगवा रंग चढ़ाने में सफल रहेगी।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।