भारत की चीन में ब्लैक टी यानी काली चाय की मांग लगातार बढती जा रही है। भारत चीन में ब्लैक टी का प्रचार करने के लिए एक अभियान चला रहा है। इस अभियान के कारण काली चाय पीने वालों की तादाद बढती जा रही है। ब्लैक टी की मांग बढ़ने से दोनों देशों के मध्य व्यापार में वृद्धि आएगी।
चीन के अधिक जनसंख्या भारतीय काली चाय के मुकाबले ग्रीन टी लेना पसंद करती है। भारतीय दूतावास ने भारतीय चाय विभाग और चीनी टी मार्केटिंग एसोसिएशन के साथ मिलकर 23-25 अक्टूबर तक चाय के प्रचार का अभियान चलाया था।
इकनोमिक टाइम्स के मुताबिक इस आयोजन के दौरान दोनों देशों के वरिष्ठ चाय विक्रेताओं और ग्राहकों ने मुलाकात कर दोनों देशों के मध्य चाय के व्यापार को बढाने के लिए बातचीत की थी।
भारतीय चाय विभाग के उपसचिव अनिल कुमार ने बताया कि भारत ने बीते वर्ष चीन में नौ मिलियन टन काली चाय निर्यात की थी। जो चीन में निर्यातित उत्पादों का 30 फीसदी है। भारत और चीन के विक्रेताओं और ग्राहकों के सम्मेलन में भारतीय राजदूत ने कहा कि चाय का व्यापार दोनों देशों को इतिहास से रूबरू कराएगा। उन्होंने कहा कि भारत के चाय के उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल और असम से चीन का युनान प्रांत जुड़ेगा।
भारतीय राजदूत ने कहा कि चीन ग्रीन टी का 2550 मिलियन किलोग्राम सालाना उत्पादन करता है। जबकि भारत काली चाय का 1278 मिलियन किलोग्राम सालाना उत्पादन करता है। चीन का सबसे बड़ा चाय निर्यातक भारत है। उन्होंने कहा कि चाय की स्वास्थ्य के लिए जरुरत के कारण चीनी नागरिक काली चाय को तरजीह दे रहे हैं। इसी प्रकार भारत के नागरिक ग्रीन और हर्बल टी को तरजीह दे रहे हैं।
सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रतिनिधित्व ने पांच प्रकार की चाय के बाबत जानकारी दी थी। उन्होंने कहा भारत के पास चाय के कई किस्म मौजूद है। भारतीय राजदूत ने कहा कि चीन का पारंपरिक पेय पदार्थ चाय है, वे हजारों सालों से चाय का सेवन कर रहे है।
भारत की चाय नई है लेकिन कई चाय की किस्मे मौजूद है। उन्होंने कहा भारत ने पिछले वर्ष 251 मिलियन किलोग्राम चाय का निर्यात किया था जिसमे 50 मिलियन किलोग्राम रूस को किया था। उन्होंने कहा कि भारत साथ ही ईरान, यूएई, ब्रिटेन, पाकिस्तान, अमेरिका और मिस्र को भी चाय आयत करता है।
सम्मेलन में मौजूद चीन के किन लिंग ने कहा कि भारत की चाय की गुणवत्ता यूरोपीय कंपनियों से बेहतरीन होती है। चीनी कंपनी भी ऐसे उत्पादन गुणवत्ता नहीं रख पाती है।