चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट के तहत बुनियादी ढाँचों के निर्माण में अनुमानित 8 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया है।
चीन ने एशिया, अफ्रीका और यूरोप में इस नेटवर्क का जाल बिछाया है। इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट के पीछे छिपी चीन की मंशा किसी की नज़रों से नहीं बची है।
वैश्विक विकास केंद्र के अध्ययन के में बताया है कि इस परियोजना की सबसे बड़ी खामी कर्ज़ है।
अध्ययन में बताया कि इतने विशाल स्तर पर दिया कर्ज़ समस्याओं को न्यौता देगा।
अधिक कर्ज गरीब और छोटे देशों पर कहर बरपा सकता है। बीआरआई के तहत 68 देशों में निवेश किया गया है और लगभग हर देश इससे निवारण के रास्ता खोज रहा है। अध्धयन के मुताबिक 68 में से 23 देश कर्ज के जंजाल में बुरी तरह फंस चुके हैं।
इन 23 देशों पर साल 2016 तक अधिक कर्ज लाद दिया था। अध्ययन में 8 देशों को कर्ज चुकाने में परेशानियां झेलनी पड़ रही है।
इन आठ देशों में पाकिस्तान, तजाकिस्तान, मंगोलिया, मालदीव, लाओस, डिज्बौति, किर्ज़ीस्तन और मॉन्टेंगरो हैं। कर्ज से समझौता करने वाले देशों पर भविष्य में दिक्कतें आ सकती है।
उदाहरण कर्ज़ चुकाने में असमर्थ श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह चीन ने हथिया लिया।
फिलहाल चीन अन्य निवेशकों को तरह नियमो को मानने के लिए बाध्य नहीं है। क्योंकि चीन पेरिस क्लब के सदस्य नहीं है इसलिये कर्ज़दारों से निपटने के लिए अपनी रणनीति अपना सकता है।
इस समस्या का निवारण यह है कि विश्व बैंक और अन्य संस्थाओं को इस प्रोजेक्ट में भागीदारी बढ़ानी चाहिए ताकि चीन के चालचलन पर निगरानी रखी जा सके।
अध्ययन में चीन की नीति पर लगाम लगाने के सुझाव में बताया कि पेरिस क्लब को मिलकर देनदारों का एक समूह बनाना चहिये ताकि चीन की रणनीति को काबू किया जा सके।