चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की मुल्क में आयोजित सालाना राजनीतिक सत्र में जमकर आलोचना हुई है। चीन के एकदलीय प्रणाली में ऐसा विरोध दुर्लभ ही दिखता है। चीनी पीपल्स पोलिटिकल कंसल्टेटिव कांफ्रेंस और नेशनल पीपल कांफ्रेंस का सालाना सत्र 3 मार्च को शुरू हुआ था और इसका अंत 15 मार्च को होगा।
बीआरआई का विरोध
सीपीपीसीसी एक राष्ट्रीय सलाहकार संस्था है जिसमें 2000 नुमाइंदे हैं। इन्हे विभिन्न क्षेत्रों से चयनित किया जाता है। चीन में मतभेद या असहमति दुर्लभ ही दिखती है। शी जिनपिंग की बीआरआई परियोजना में निवेश एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक है।
अमेरिका के साथ जारी व्यापार जंग और चीनी अर्थव्यवस्था की धीमी रफ़्तार पर बढ़ती आशंकाओं के कारण दो सत्रों का आयोजन किया गया था। पूर्व चीनी राजनीतिज्ञ या डाबो ने सवाल पूछा कि “प्रधानमंत्री द्वारा 5 मार्च को पेश की गयी रिपोर्ट सटीक है, जिसमे कहा गया है कि बीआरआई ने बीते वर्ष महत्वपूर्ण प्रगति की है। मेरे ख्याल से इसका अभी अधिक आंकलन किया जाना चाहिए था।” इस चर्चा के द्वार विदेशी पत्रकारों के लिए भी खुले थे।
महत्वकांक्षी परियोजना
बीआरआई शी जिनपिंग की महत्वकांक्षी परियोजना है और इस माध्यम से चीन एशिया और अन्य क्षेत्रों में अपना आर्थिक प्रभुत्व बढ़ाना चाहता है। इस परियोजना में साल 2018 में काफी परेशानियां आयी। अमेरिका ने खुले तौर पर अन्य देशों को चेतावनी दी कि इस प्रोजेक्ट में शामिल न हो।
जिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार कुआला लुम्पार से लेकर इस्लामाबाद तक की सरकार ने अत्यधिक कर्ज के कारण अपनी प्रतिबद्धताओं से मुंह मोड़ लिया था। भारत ने भी पडोसी देशों को कर्ज के जाल में फंसने की चेतावनी दी थी। चीन ने श्रीलंका को अत्यधिक कर्ज दिया जो कोलोंबो से चुकता न हो सका। मजबूरन श्रीलंका को हबनटोटा बंदरगाह 99 वर्ष के लिए चीन के सुपुर्द करना पड़ा।
चीन की महत्वकांक्षी परियोजना बीआरआई के तहत सीपीईसी परियोजना भी है जिसका भारत विरोध करता है, क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरती है।
बीआरआई का आगामी सम्मेलन
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि “वह आगामी माह बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की दूसरी वैश्विक बैठक की मेज़बानी करेगा। जो पहले सम्मलेन के मुकाबले अधिक भव्य होगा।”
बीआरआई का बचाव करते हुए चीनी मंत्री ने भारत, अमेरिका और अन्य देशों के दावे को ख़ारिज कर दिया और कहा कि इस परियोजना से विकासशील देश कर्ज के जाल में फंसते हैं। उन्होंने कहा कि “बीआरआई कोई कर्ज का मकड़जाल नहीं है किकोई उसमे फंसेगा बल्कि एक आर्थिक फायदा है जिससे स्थानीय आवाम को फायदा होगा।”
चीनी राजनीति के जानकार ज़हाँग बाओहि ने कहा कि “परंपरा के मुताबिक बीजिंग स्थानीय राजनीति की तुलना में विदेशी नीति पर अधिक भिन्न विचार रखने का इच्छुक होता है।”