चीन की महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना नेपाल में आर्थिक, ढांचागत और पर्यावरणीय चिंताओं के कारण कार्य नही कर पायेगी। यह जानकारी एम्स्टर्डम में स्थित यूरोपीय फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज ने दी है। उन्होंने इसका अध्यन्न काफी गहराई से किया है।
मई 2017 में चीन ने नेपाल के बीआरआई परियोजना के तहत एक एमओयू पर हस्ताक्षर किये थे। इसका मकसद सड़क, रेलवे, बंदरगाह और विमानन का निर्माण करना है। साथ ही कम्युनिकेशन तकनीक, हाइड्रोपावर, वित्तीय, पर्यटन और ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करना है।
इस डील के मुताबिक चीन के नियंत्रण वाले तिब्बत को काठमांडू के साथ रेलवे लाइन से जोड़ा जायेगा। ईएफएसएएस के अध्यन्न के मुताबिक, नेपाली विभाग के बयान में कहा करीब 98.5 फीसदी रेलवे लाइन और ब्रिज हैं और इस प्रोजेक्ट के अनुमानित लागत 7-8 अरब डॉलर है, जिसका भुगतान बीजिंग करता है। चीन बीआरआई के तहत देशो पर निवेश कर कर्ज के जाल में फंसाता हैं।”
ईएफएसएएस के रिसर्च विशेषज्ञ योआना बरकोवा ने कहा कि “आधिकारिक तौर पर वित्तीय व्यवस्था नहीं किया गया है, यह देखना होगा कि नेपाल अपने पडोसी मुल्कों श्रीलंका और पाकिस्तान की तरह कर्ज के जाल में फंसने के बाबत विचार करता है,यहइन्ही देशो की तरह वही रास्ता अपनाता है। यह देश चीन के कर्ज के दलदल में बुरी तरह फंस चुके हैं।”
शिगास्ते-काठमांडू रेल प्रोजेक्ट पारिस्थितिकी भूमि नाजुक है। नेपाली सरकार को मालूम है कि चीनी रेलवे और ढांचागत निर्माण के लिए भारी संसाधन की जरुरत है। शिगास्ते-काठमांडू रेल प्रोजेक्ट के लिए नेपाल की सरकार के समक्ष फंड नहीं है।
वरिष्ठ यूरोपीय जानकार ने कहा कि “बीआरआई के प्रोजेक्ट के लिए चीन वित्तीय सहायता मुहैया नहीं करेगा और उच्च दर पर दिए कर्ज को नेपाल बर्दास्त नहीं कर पायेगा। अगर यह प्रोजेक्ट मुमकिन भी हो जाता है तो भी नेपाल के जरिये भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों की पंहुच की कोई गारंटी नहीं है।
नेपाल में कई परियोजनाओं के लिए चीन प्रतिबद्ध है। इसमें बहिरागवा में गौतम बुद्धा प्रोजेक्ट, त्रिभुवन इंटरनेशनल प्रोजेक्ट, धेलकेबर सबस्टेशन का निर्माण और दार्चुला में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट शामिल है। हालंकि प्रोजेक्ट की शुरुआत में देरी के कारण चीन अपनी प्रतिबद्धताओं से मुकर सकता है।