बेंगलुरु में हुई वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बारे में कई कयास लगाए जा रहे है, कहा जा रहा है कि इस हत्या के पीछे नक्सल का हाथ भी हो सकता है। अतिवादी हिंदुत्व विचारधारा की विरोधी रही गौरी के मामले में अब पुलिस ने केस नए एंगल से देखना शुरू कर दिया है। पुलिस यह पता लगाने में लगी है, कहीं इस हत्या के पीछे नक्सलियों का हाथ तो नहीं।
दरअसल गौरी लंकेश चाहती थी कि नक्सली आत्मसमर्पण कर दे, जिसे लेकर नक्सली गौरी से नाराज़ थे। गौरी लंकेश के भाई इंद्रजीत ने भी कहा था की गौरी को नक्सलियों से धमकियाँ मिल रही थी।
गौरी लंकेश कई बार छत्तीसगढ़ में नक्सलवादियों के गढ़ बस्तर के जंगलो में दाखिल हुई थी। वह नक्सलियों को मुख्य धारा में लाने की कोशिश में लगी हुई थी। इंद्रजीत के मुताबिक गौरी को नक्सली संगठनों से धमकी भरे पत्र और ईमेल आ रहे थे। उनके भाई का कहना था कि इस हमले को दोनों एंगल से देखा जाना चाहिए, हिंदुत्ववादी संघठनो के साथ-साथ नक्सलियों पर भी संदेह है।
छत्तीसगढ़ पुलिस गौरी के नक्सली कनेक्शन को लेकर सारे रिकॉर्ड खंगाल रही है, बताया जा रहा है 2015-2016 के बिच गौरी ने बस्तर के जंगलो में करीब चार बार प्रवेश किया है। हालाँकि वह वहां किससे मिली इसकी कोई पुष्ट जानकारी नहीं है। बताय जाता है कि गौरी आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार और मानवाधिकार उलंघन को लेकर बस्तर गई थी। गौरी आंध्रा और तेलंगाना के सक्रिय नक्सलियों से मिलने बस्तर जाती थी। हर दौरे पर गौरी ने तीन से चार दिन बस्तर के जंगलो में बिताये थे। इस दौरान वे पुलिस और सामजिक कार्यकर्ताओ से दूर रहती थी।
बताया जा रहा है कि गौरी आत्मसमर्पण को लेकर नक्सलियों की कमिटी ने कई बार गौरी से चर्चा की थी। शीर्ष नक्सली नेताओ को शक था कि गौरी न केवल नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए उकसाती है, बल्कि पुलिस और नक्सलियों के बिच आत्मसर्पण को लेकर माहौल भी तैयार करती थी।
छत्तीसगढ़ के पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओ को भी संदेह है की कहीं नक्सलियों कि स्माल एक्शन टीम ने तो उनकी हत्या नहीं की। इस हमले को वैसा ही हमले की तरह देखा जा रहा है, जैसा नक्सली की स्माल एक्शन टीम वारदात को अंजाम देती है।