विषय-सूचि
गौतम बुद्ध शुरूआती जीवन
गौतम बुद्ध का असली नाम सिद्धार्थ गौतम था। बौद्ध का जन्म 563 ई.पूर्व में हुआ था। गौतम के पिता का नाम नरेश सुद्धोधन व माता का नाम महादेवी था। बुद्ध के बचपन और शुरूआती जीवन के बारे मे ज्यादा कोई जानकारी और तथ्य नही है। उनके जीवन का यह पहलु रहस्मीय है। परंतु बौद्ध स्त्रोतों के अनुसार यह काफी स्पष्ट रूप से बताया गया है कि शुरू से ही बुद्ध को बाहरी विश्व मे कोई रूचि नही थी।
बुद्ध को बचपन से ही सांसारिक गतिविधियों मे कोई रूचि नही थी। बचपन से ही बुद्ध एकान्तप्रिय, मननशील और दयालु भाव के थे। बुद्ध क्षत्रीय जाति से थे इसलिए बुद्ध की शिक्षा भी शास्त्र विद्या के अनुसार कराई गयी। गौतम को शास्त्र विद्या से जुडे कई प्रशिक्षण दिए गए जिनमे हथियारो आदि को चलाना सिखाया गया। घुड सवारी और हाथी सवारी भी बुद्ध को सिखाई गई थी। गौतम कपिलवस्तु मे स्थित एक महल मे अपने पिता के साथ रहते थे। सोलह वर्ष की उम्र मे बुद्ध का विवाह हुआ। गौतम बुद्ध की पत्नी का नाम यशोधरा था।
चार मुख्य चिन्ह
एक दिन घूमते समय बुद्ध ने कुछ बातो पर ध्यान दिया और स्थिति देखकर चार मुख्य बातो का आंकलन किया।
1. जब बुद्ध ने एक बूढा आदमी देखा, जो झुका हुआ था, यह झुकावट उम्र बढने के कारण थी। वृद्ध व्यक्ति के चेहरे पर झुर्री दिखाई पड रही थी। यह दृश्य देख कर बुढापे की उदासीनता और दयनीय उपस्थिति का प्रदर्शन होता है। इस वाक्य से गौतम को यह ज्ञान मिला कि बुढापे के दुख जीवन मे सबको भोगने होते है और यह दुख स्वभाविक है।
2. आगे बढते हुए बुद्ध का ध्यान एक और आदमी की और गया। वह आदमी बिमारी से पीडित था। गौतम के सारथी ने उन्हे बताया कि जीवन और बीमारियां साथ साथ चलती है।
3. थोडा आगे का सफर तय करने के पश्चात् गौतम और उनके सारथी ने एक मृत व्यक्ति की आखिरी यात्रा देखी। गौतम ने यह देखा कि अर्थी के साथ बहुत से रिशतेदार शौक मे चल रहे है। अंतिम यात्रा के दौरान कुछ रिश्तेदार रो भी रहे है। इससे बुद्ध को शिक्षा मिली कि मौत से कोई नही भाग सका, यह जीवन का एक हिस्सा है। जो इस पृथ्वी पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चत है।
4. वृद्ध अवस्था, मृत व्यक्ति और बिमार इंसान को देखने के बाद राजकुमार की भेट एक संयासी से हुई। संयासी के व्यवहार और मुख से ऐसा प्रतीत हुआ कि वह जीवन से संपूर्ण रूप से खुश है। संयासी मोह माया से दूर है और सभी सुखो का आनंद भोग रहा है।
29 वर्ष की आयु मे राजकुमार की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। बुद्ध का मानना था कि यह एक और बंधन है जो उन्हे सांसारिक बंधनो मे बांध रहा है। जीवन के चारो पहलूओ से रूबरू होने के बाद बुद्ध के जीवन मे एक अहम बदलाव आया।
बुद्ध का त्याग
29 वर्ष की आयु मे राजकुमार बुद्ध ने घर और मोह माया के बंधन से निकलने का फैसला लिया। एक दिन सूर्य ढलने के बाद जब गौतम की पत्नी, पुत्र और पिता गहरी नींद मे थे, तब उन्होने अपना महल त्याग दिया। गौतम ने ’घर से बेघर‘ होने का सफर अपने वफादार सारथी के साथ शुरू किया।
राज्य की सीमा पर पहुच कर राजकुमार ने अपने सारथी को कपिलवस्तु लौटने का आदेश दिया और कहा कि मेरे पिता को बता देना कि मैने संयासी जीवन व्यतीत करने का निर्णय लिया है। सारथी ने राजकुमार से आग्रह किया कि उसे उनके साथ रहने की अनुमति दे दी जाए परंतु बुद्ध ने नकार दिया। बुद्ध का मानना था कि इंसान अकेला ही आता है और उससे मरना भी अकेले ही होता है। राजकुमार गौतम ने आगे बताया कि जीवन का रहस्य अकेले रहने मे ही छुपा है।
घर से बेघर होने का सफ़र
बेघर होने के बाद राजकुमार गौतम राजगढ़ नामक एक स्थान पर गए। अलारा और उदस नाम के दो संतो के पास बुद्ध शिक्षा ग्रहण करने गए। समय समय पर बुद्ध कई विद्ववानो की शिक्षा पाने के लिए गए, परंतु वे संतुष्ट नही हुए। उसके बाद गौतम ने यह विचार किया कि वो अपने शरीर को पीड़ा देकर जीवन का रहस्य समझने का प्रयास करेंगे।
मन की शांति की प्राप्ति के लिए गौतम घने जंगलो और पहाडो पर ध्यान लगाने गए थे। छह वर्ष तक कठोर तपस्या करके गौतम ने अपने प्रश्नो का उत्तर खोजने का प्रयत्न किया। अंत मे राजकुमार गौतम ने गया के पास कठोर तपस्या के चलते अपने शरीर को केवल हड्डियों का ढांचा बना लिया। पर इससे भी कोई परिणाम नही निकला।
गौतम का ज्ञानोदय
आखिर मे जब राजकुमार गया मे रहते थे तो उन्होने निरंजना नदी मे स्नान किया। स्नान करने के बाद गौतम ने यह विचार लिया कि वो इस स्थान से तब तक प्रस्थान नही करेंगे जब तक उन्हे अपने सभी प्रश्नो का उत्तर नही मिल जाता। यह फैसला लेने के बाद वे पीपल के एक पेड़ के नीचे शरण लेकर बैठ गए। पूर्ण रूप से जब गौतम ध्यान मे लीन थे उन्हे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।
35 वर्ष की आयु मे राजकुमार गौतम को ज्ञान प्राप्त हुआ और वे ज्ञानी बुद्ध के नाम से सामने आए। जिस पीपल के पेड़ के नीचे राजकुमार ने तपस्या की थी, अब उस पेड़ को बुद्धि वृक्ष भी कहते है। उस स्थान का नाम बौद्ध गया रख दिया है।
गौतम बुद्ध के उपदेश और अनमोल वचन (gautam buddha updesh in hindi)
ज्ञान के रूप मे गौतम को पता चला कि जीवन मे पीड़ा और दुख है। जीवन के दुखो का कारण इच्छाएं है। अगर मनुष्य अपनी इंद्रियो पर काबू पर सके तो वह जिंदगी मे कोई कष्ट नही पाएगा। इच्छाए खत्म होने के उपरांत हम जीवन सही ढंग से जी सकेंगे।
बुद्ध द्वारा 7 ऐसे सिद्धांत बताए गए है जिनसे मोक्ष की प्राप्ति होना संभव है।
- सही विश्वास
- सही सोच
- सही कारवाई
- सही प्रयास
- आजीविका का सही साधन
- सही स्मरण
- सही ध्यान
बुद्ध ने अपने अनुयायीयो से कुछ अनमोल आज्ञाओ का पालन करने का अनुरोध किया। यह सभी आज्ञा बुरे कर्मो के खिलाफ है।
धर्म चक्र परिवर्तन
सत्य के ज्ञान की प्राप्ति के बाद राजकुुमार गौतम ने गया से सारनाथ की ओर प्रस्थान किया। पहली बार सारनाथ मे पांच ब्राहमणो को गौतम ने उपदेश दिया। गौतम के जीवन का यह अंग धर्म चक्र परिवर्तन के नाम से मशहूर है। उसी समय से बुद्ध एक संत बन गए और बौद्ध संघो का निर्माण शुरू हुआ। करीबन 45 वर्षाेे तक बुद्ध ने अर्जित किए हुए ज्ञान को लोगो के साथ साझा किया और उपदेश दिए।
गौतम ने कपिलवस्तु मे उपदेश दिया और बुद्ध का पुत्र राहुल भी एक संयासी बन गया। गौतम के साथ ज्ञान का एक भंडार भी एक जगह से दूसरी जगह तक गया। लोग गौतम के उपदेश और विचार से प्रभावित हुए और देश मे एक नए धर्म की लहर ने जन्म लिया।
गौतम बुद्ध की मृत्यु (gautam buddha death in hindi)
80 वर्ष की आयु मे राजकुमार गौतम की मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु गोरखपुर मे हुई जो आज के समय मे उत्तर प्रदेश के राज्य मे स्थित है। बुद्ध के उपदेश और विचार आज भी लोगों के बीच प्रचलित हैं।