Fri. Nov 22nd, 2024
    गुवाहाटी: नागरिकता विधेयक के खिलाफ आज भाजपा के पूर्वोत्तर सहयोगियों की बैठक, दी गठबंधन तोड़ने की धमकी

    उत्तर पूर्वी राज्यों में भाजपा के लिए टिक पाना बेहद मुश्किल हो रहा है और इसका मुख्य कारण है-नागरिकता संसोधन विधेयक (सीएबी)। राज्यों में लगातार विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन बढ़ता जा रहा है और जबसे असोम गन परिषद (एजीपी) ने भगवा पार्टी का दामन छोड़ दिया है, तबसे मुसीबत और बढ़ गयी है।

    मेघालय में भाजपा के गठबंधन पार्टनर नेशनल डार्क पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और क्षेत्रीय पार्टी एजीपी ने मंगलवार को गुवाहाटी में विधेयक के खिलाफ हाथ मिलाने के लिए क्षेत्र के सभी प्रमुख गैर-बीजेपी दलों की बैठक बुलाई है।

    एजीपी और एनपीपी दोनों नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का हिस्सा हैं जो इस क्षेत्र को “कांग्रेस-मुक्त” बनाने के उद्देश्य से भाजपा द्वारा गठित गैर-कांग्रेस दलों का एक मंच है।

    एजीपी अध्यक्ष और पूर्व कृषि मंत्री अतुल बोरा जिन्होंने हाल ही में, सर्बनंदा सोनोवाल मंत्रिमंडल से इस्तीफा लिया है, उन्होंने मीडिया को बताया-“क्षेत्र की हर राजनीतिक पार्टी को ये एहसास हो गया है कि कैसे सत्तारूढ़ पार्टी लोगों कि मर्ज़ी के बिना उन पर विधेयक थोपने की कोशिश कर रही है। यह बैठक निश्चित रूप से इस क्षेत्र में चल रहे सीएबी-विरोधी आंदोलन को एक बड़ी गति प्रदान करेगी।”

    लोक सभा में हाल ही में विधेयक पारित होने के कारण, भाजपा के सहयोगियों में और गुस्सा भर भर गया है। मेघालय के मुख्यमंत्री संगमा को लगता है कि विधेयक को आगे बढ़ाने के कारण, सत्तारूढ़ पार्टी अब एक अजीबो-गरीब स्थिति में पहुँच गयी है।

    उनके मुताबिक, “हमारी सरकार ने केंद्र के समक्ष अपना रुख साफ कर दिया है कि हम विधेयक के खिलाफ हैं। अब, भाजपा के साथ हमारी साझेदारी पर ध्यान देने का समय आ गया है क्योंकि वे विधेयक के साथ आगे बढ़ गए हैं।”

    इस क्षेत्र के एक अन्य बैठक में, मणिपुर सरकार द्वारा सोमवार को बुलाई गई एक सभी राजनीतिक पार्टी की बैठक में सीएबी को वापस लेने और क़ानून पर चर्चा करने के लिए एक विशेष राज्य विधानसभा सत्र बुलाने का निर्णय लेने में विफल रही।

    लेकिन असम के वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जो एनईडीए के संयोजक हैं, उनके अनुसार बढ़ते असंतोष का असर आगामी लोकसभा चुनावों में पार्टी के भाग्य पर नहीं पड़ेगा।

    सरमा ने कहा-“मिजोरम सरकार हमेशा चकमा समुदाय के लोगों को नागरिकता देने के खिलाफ रही है जो बौद्ध हैं। चूंकि विधेयक बौद्धों को नागरिकता देने जा रहा है, इसलिए उनकी नाराजगी कोई नई बात नहीं है। इसी तरह, मेघालय जो खुद को ईसाई बहुल राज्य मानता है, विधेयक के खिलाफ है। मुझे यकीन है कि यह भविष्य में क्षेत्र में किसी भी राजनीतिक गणना पर प्रभाव नहीं डालने वाला है।”

    इस बीच, असम में विपक्ष के नेता, कांग्रेस नेता देवव्रत सैकिया ने विधेयक के खिलाफ हाथ मिलाने के लिए राज्यसभा के सभी सांसदों को पत्र लिखा है।

    चिट्ठी में सैकिया ने कहा-“खतरा अभी टला नहीं है क्योंकि एनडीए सरकार अगले सत्र में विधेयक को राज्यसभा में पारित कराने की कोशिश कर रही है, जो आम चुनाव से पहले अंतिम बैठक होगी। चूंकि पूर्वोत्तर के स्वदेशी लोगों का भविष्य दांव पर है, हमें दलगत राजनीति से ऊपर उठना चाहिए और सीएबी के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। इसलिए, मैं व्यक्तिगत रूप से आप सभी से हाथ मिलाने का अनुरोध करना चाहता हूँ और विधेयक को हाउस ऑफ एल्डर्स के अगले सत्र के दौरान एक अधिनियम बनने से रोकना चाहिए।”

    8 जनवरी को लोकसभा में पारित, सीएबी को राज्यसभा में पेश किया जाना बाकी है।

    हालांकि, एजीपी और जदयू के लिए, सीएबी पर कांग्रेस की स्थिति अभी भी संदेहपूर्ण है। अतुल बोरा और केसी त्यागी ने कहा-“जैसे कांग्रेस लोकसभा से बाहर चली गई और विधेयक को पारित करने में मदद की, हम कांग्रेस से राज्यसभा में विधेयक के खिलाफ अपना पक्ष साबित करने और मत देने के लिए कहना चाहते हैं, ना कि सदन से वॉक आउट करने के लिए। अगर वे (कांग्रेस सांसद) बाहर चलना जारी रखते हैं, तो क्षेत्र के लोगों को इसमें कोई संदेह नहीं होगा कि यह विधेयक का समर्थन करता है।”

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *