गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में 2 दिन का समय शेष रह गया है। पहले चरण के लिए आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है। गुजरात की सियासत का मिजाज इस बार कुछ अलग ही नजर आ रहा है। कांग्रेस के जातीय कार्ड के दांव के आगे सत्ताधारी दल भाजपा पस्त नजर आ रही है। पाटीदार, ओबीसी और दलित आन्दोलन के चलते बने त्रिशंकु जातीय समीकरण में भाजपा उलझ कर रह गई है। गुजरात में कांग्रेस की स्थिति मजबूत करने में ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर का बड़ा हाथ है।
कांग्रेस के पुराने शागिर्द खोड़ाजी ठाकोर के पुत्र और ओबीसी आन्दोलन के अगुआ अल्पेश ठाकोर बकायदा कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और कांग्रेस के स्टार प्रचारक बन चुके हैं। अल्पेश पाटण जिले की राधनपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। राधनपुर सीट पर दो दशकों से भाजपा का कब्जा है और अल्पेश के सहारे कांग्रेस इसे पाने की जुगत में है। राधनपुर विधानसभा सीट पर ओबीसी मतदाताओं का बड़ा जनाधार है और इस लिहाजन अल्पेश मजबूत उम्मीदवार बनकर उभर रहे हैं।
राधनपुर में 20 सालों से भाजपा का कब्जा
पाटण जिले में स्थित राधनपुर विधानसभा सीट गुजरात में स्थित ओबीसी बाहुल्य सीटों में से एक है। चुनाव आयोग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार राधनपुर विधानसभा क्षेत्र में तकरीबन 2,59,000 मतदाता हैं। राधनपुर के मौजूदा विधायक भाजपा के नागरजी ठाकोर है। भाजपा 1998 से लगातार राधनपुर विधानसभा सीट जीतती आ रही है। उससे पूर्व राधनपुर में कांग्रेस का कब्जा था। बीते 4 विधानसभा चुनावों से भाजपा उम्मीदवार राधनपुर में चुनावी बाजी जीतते आ रहे हैं पर हर बार जीत का अंतर घटता रहा है। 2012 विधानसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवार नागरजी ठाकोर ने कांग्रेस प्रत्याशी भावसिंहजी राठौड़ को 3,834 मतों से शिकस्त दी थी। अल्पेश ठाकोर की उम्मीदवारी से राधनपुर सीट पर कांग्रेस की दावेदारी मजबूत नजर आ रही है। अब यह देखना है कि क्या अल्पेश 20 साल बाद राधनपुर कांग्रेस को लौटा पाते हैं?
ओबीसी बाहुल्य सीट है राधनपुर
पाटण जिले के अंतर्गत आने वाली राधनपुर विधानसभा सीट ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित है। राधनपुर विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की कुल आबादी तकरीबन 2,59,000 है। राधनपुर के मतदाता वर्ग में ओबीसी मतदाताओं की भागीदारी तकरीबन 67 फीसदी है। दो तिहाई आबादी ओबीसी वर्ग की होने के कारण राधनपुर सीट से अल्पेश ठाकोर की दावेदारी मजबूत नजर आ रही है। भाजपा 2 दशकों से राधनपुर में खूँटा गाड़ कर बैठी है पर अल्पेश ठाकोर के मैदान में उतरने के बाद इस सीट को बचा पाना भाजपा के लिए मुश्किल नजर आ रहा है। गुजरात का ओबीसी समाज पहले कांग्रेस का समर्थक था पर 90 के दशक में हिंदुत्व की लहर ने ओबीसी समाज को भाजपा से जोड़ दिया। अल्पेश ठाकोर ओबीसी समाज के लोकप्रिय नेता हैं और उन्हें 146 जातियों का समर्थन प्राप्त है। राधनपुर में अल्पेश की जीत उनकी स्वीकार्यता पर सियासी मुहर लगा देगी।
कांग्रेस को मजबूती दे रहे हैं अल्पेश
जातीय आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे युवा नेताओं की तिकड़ी में से ओबीसी वर्ग के नेता अल्पेश ठाकोर ने सबसे पहले कांग्रेस का दामन थामा था। गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से कई मुलाकातों के बाद अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हुए थे। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अपने वफादारों के लिए 12-15 सीटें मांगी थी। कांग्रेस अल्पेश ठाकोर की शर्तों को मान गई थी और कई जगहों पर उनकी पसंद के उम्मीदवारों को टिकट दिया गया। स्वयं अल्पेश को कांग्रेस ने राधनपुर से अपना उम्मीदवार बनाया जहाँ ओबीसी मतदाताओं का बड़ा जनाधार है। अल्पेश ठाकोर को संगठन में काम करने का लम्बा अनुभव है और उनकी सियासी सूझबूझ शक योग्य नहीं है। गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर ओबीसी वर्ग का स्पष्ट प्रभाव है।
कभी शराबबंदी के लिए ‘जनता रेड’ डालने वाले अल्पेश ठाकोर आज सियासत के दांव-पेंच खेल रहे हैं। गुजरात के मतदाता वर्ग का 54 फीसदी हिस्सा ओबीसी वर्ग से आता है। अल्पेश ठाकोर गुजरात क्षत्रिय-ठाकोर सेना के अध्यक्ष हैं और ओबीसी एकता मंच के संयोजक की भूमिका में भी हैं। ओबीसी वर्ग में अल्पेश ठाकोर की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने राज्य में ओबीसी वर्ग की 146 जातियों को एकजुट किया है और उनका समर्थन हासिल किया है। चुनावों से पूर्व कांग्रेस में शामिल होकर अल्पेश ठाकोर ने भाजपा को करारा झटका दिया है और पाटीदारों के कटने से बैकफुट पर चल रही भाजपा की सियासी राह और मुश्किल कर दी है। अब यह देखना है कि अल्पेश ठाकोर का साथ कांग्रेस को कितना रास आता है और वह भाजपा को कितना नुकसान पहुँचा पाते है।