गुजरात विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आते जा रहे हैं सभी पार्टियों के स्टार प्रचारक राज्य में सक्रिय नजर आ रहे हैं। गुजरात के सत्ताधारी दल भाजपा के दोनों बड़े चेहरे पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पहले से ही चुनावी प्रचार अभियान में उतर चुके हैं और पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी भी आज चुनावी प्रचार में शामिल होने गुजरात पहुँचे हैं। अपने 2 दिवसीय दौरे पर राहुल गाँधी गुजरात के 3 जिलों गिर सोमनाथ, अमरेली एवं भावनगर का दौरा करेंगे। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपने दौरे की शुरुआत गिर सोमनाथ जिले से की और सियासी गर्मी के बीच भोले भण्डारी बाबा सोमनाथ का जलाभिषेक किया। इसके बाद राहुल गाँधी सोमनाथ मंदिर के बाहर ही जनसभा को सम्बोधित किया। वहाँ से राहुल अगले पड़ाव जूनागढ़ के लिए रवाना हो गए।
राहुल गाँधी गुजरात में कांग्रेस के चुनाव प्रचार में मंदिर-मंदिर जाकर मत्था टेक रहे हैं। राहुल गाँधी गुजरात में कांग्रेस का 22 सालों का सियासी वनवास खत्म करने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए वह राज्य का जातीय समीकरण साधने के साथ-साथ सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड भी खेल रहे हैं। राहुल गाँधी राज्य के हिन्दू मतदाताओं को लुभाने के लिए मंदिर-मंदिर घूमते नजर आ रहे हैं और जनता के बीच व्याप्त कांग्रेस की हिंदुत्व विरोधी छवि को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं। राहुल गाँधी गुजरात में अपनी जनसभाओं में माथे पर तिलक-त्रिपुण्ड लगाए नजर आ रहे हैं और अपने दौरों की शुरुआत मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ कर रहे हैं। भाजपा 2 दशक पहले हिंदुत्व के मुद्दे को ही आधार बनाकर गुजरात की सत्ता में आई थी और आज तक कांग्रेस इसकी काट नहीं ढूँढ़ सकी है।
2 दिवसीय दौरे पर आए राहुल
चुनावी तिथि नजदीक आने से गुजरात का सियासी माहौल गरमा चुका है। सभी सियासी दलों के बड़े नेता गुजरात में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के समर्थन में वोट अपील करते नजर आ रहे हैं। भाजपा की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री चुनावी प्रचार में नजर आ रहे हैं। कांग्रेस की ओर से पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गाँधी, वरिष्ठ नेता और गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत, सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांग्रेस विधायक रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता चुनाव प्रचार में नजर आए हैं। आने वाले समय में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी भी गुजरात के चुनाव प्रचार में नजर आ सकते हैं। राहुल गाँधी ने इससे पूर्व अपने धुआँधार चुनावी दौरों से गुजरात में भाजपा को बैकफुट पर धकेल दिया था।
पीएम मोदी और अमित शाह के दिल्ली जाने के बाद गुजरात में भाजपा एक सशक्त चेहरे की कमी से जूझ रही है और कांग्रेस इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है। इसी बात का फायदा उठाकर कांग्रेस ने गुजरात में सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत पाटीदार, ओबीसी और दलित नेताओं को अपनी ओर मिलाने की पुरजोर कोशिश की। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और पार्टी के स्टार प्रचारक बन चुके हैं वहीं पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने भी खुले तौर पर कांग्रेस को समर्थन देने की बात कह दी है। दलित नेता जिग्नेश मेवानी भी परोक्ष रूप से कांग्रेस का समर्थ करने की बात कह चुके हैं पर वह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी अपने 2 दिवसीय गुजरात दौरे पर गिर सोमनाथ, अमरेली और भावनगर जिले में जनसभाओं को सम्बोधित करेंगे।
सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेल रहे हैं राहुल
गुजरात के चुनावी दौरों के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का नया अंदाज देखने को मिल रहा है। राहुल गाँधी अपने गुजरात दौरों पर मंदिर-मंदिर घूमते नजर आ रहे हैं और जनसभाओं में माथे पर तिलक-त्रिपुण्ड लगाए फिर रहे हैं। भाजपा कांग्रेस पर ‘हिंदुत्व विरोधी’ और ‘अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण’ करने वाला दल होने का आरोप लगाती थी जिस पर जवाबी हमला करने के लिए राहुल गाँधी ने यह सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव खेला है। राहुल गाँधी की यात्राओं के दौरान कोई भी मुस्लिम नेता उनके आस-पास नजर नहीं आ रहा है और ना ही अहमद पटेल अब तक चुनाव प्रचार में दिखाई दिए हैं। इसका कारण यह है कि पिछले चुनावों में प्रचार के अंतिम चरण में नरेंद्र मोदी ने ‘मियाँ अहमद पटेल’ कह कर मतों का ध्रुवीकरण कर लिया था जो भाजपा की जीत का आधार बना था।
राहुल गाँधी की इस ‘हिंदुत्व हितैषी’ छवि के पीछे कांग्रेसी दिग्गज अशोक गहलोत का दिमाग है। 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने पूर्व रक्षामंत्री ए के एंटनी के नेतृत्व में हार के कारणों का पता लगाने के लिए कमेटी गठित की थी। एंटनी कमेटी द्वारा दी गई रिपोर्ट में कांग्रेस की ‘हिंदुत्व विरोधी’ छवि को हार के प्रमुख कारणों में से एक माना गया था। राहुल गाँधी पिछले कुछ समय से पार्टी की इस छवि को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए वह गुजरात में चुनावी दौरों पर मंदिरों में जा रहे हैं और मत्था टेकते हुए नजर आ रहे है। भाजपा ने दो दशक पहले इसी हिंदुत्व मुद्दे को आधार बनाकर कांग्रेस को गुजरात की सत्ता से बेदखल किया था और अब आज कांग्रेस इसी हिंदुत्व हितैषी छवि का सहारा लेकर गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की कोशिश में लगी है।
गुजरात में राहुल के मार्गदर्शक बने गहलोत
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को कांग्रेस का चाणक्य कहा जाता है पर गुजरात विधानसभा चुनावों में गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत यह भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। 80 के दशक से गाँधी परिवार के भरोसेमंद रहे अशोक गहलोत को केंद्र की राजनीति में लाने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को जाता है। अशोक गहलोत इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और पी वी नरसिम्हा राव की सरकार में केंद्रीय मंत्री के पद पर रहे। गाँधी परिवार से नजदीकियों के चलते अशोक गहलोत 2 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री भी बने। अशोक गहलोत अब गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का मार्गदर्शन करते नजर आ रहे हैं। सियासत के दिग्गज खिलाड़ी अशोक गहलोत के पास तकरीबन 4 दशकों का सियासी तजुर्बा है और गुजरात में इसकी बानगी देखने को मिल रही है।
गुजरात में शंकर सिंह वाघेला की बगावत की वजह से राज्यसभा चुनावों के वक्त कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल की दावेदारी खतरे में पड़ गई थी। तमाम दुश्वारियों के बावजूद भी कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल भाजपा का सियासी चक्रव्यूह भेदने में सफल रहे। अहमद पटेल की जीत में अशोक गहलोत की बड़ी भूमिका रही थी। कांग्रेस अहमद पटेल को इस बार गुजरात विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान में नजर नहीं आए हैं पर गुजरात की सियासत में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। शंकर सिंह वाघेला की बगावत के बाद गुजरात कांग्रेस में शक्ति सिंह गोहिल, भरत सिंह सोलंकी और अर्जुन मोडवाड़िया जैसे नेता बचे हैं। ये सभी क्षेत्रीय नेता हैं और इनमें से किसी का कद अकेले दम पर पार्टी की जिम्मेदारी उठा लेने लायक नहीं है। ऐसी नाजुक परिस्थितियों में अशोक गहलोत गुजरात में कांग्रेस और राहुल गाँधी का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
कांग्रेस के ‘जातीय कार्ड’ में उलझा भाजपा का सियासी गणित
कुछ वक्त पहले तक गुजरात देश का एकलौता ऐसा राज्य था जहाँ पिछले कई चुनावों से भाजपा विकास को मुख्या मुद्दा बनाकर चुनाव जीतती आ रही थी। बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में गुजरात में भाजपा की लोकप्रियता चरम पर थी और गुजरात देश के सबसे समृद्ध राज्यों की सूची में अग्रणी स्थान पर था। मगर देशभर में विकास का ढिंढोरा पीटने वाला गुजरात आज जातीय गणित की सियासत में उलझ कर रह गया है। भाजपा का परम्परागत वोटबैंक माना जाने वाला पाटीदार समाज भाजपा से कट चुका है और राज्य के दो अन्य मुख्य मतदाता वर्ग ओबीसी व दलित भी भाजपा के खिलाफ खड़े हो चुके हैं। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर तो कांग्रेस में शामिल भी हो चुके हैं और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने भी खुले तौर पर कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही है। दलित नेता जिग्नेश मेवानी भी परोक्ष रूप से कांग्रेस के साथ हैं।
इस बात को ध्यान में रखते हुए गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत ने भाजपा के हिंदुत्व और विकास कार्ड के सामने कांग्रेस का जातीय कार्ड खेला है। आन्दोलनरत जातीय आन्दोलन के अगुवाओं की त्रिमूर्ति गुजरात में भाजपा के गले का फांस बनती जा रही है। अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी की यह तिकड़ी कांग्रेस के लिए उतनी ही फायदेमंद है जितनी की भाजपा के लिए नुकसानदेह। अशोक गहलोत ने इस तिकड़ी को राहुल गाँधी से मिलाने से लेकर उनकी मांगों पर सहमति तक की कहानी लिखी है और हर जगह सक्रिय दिखे हैं। अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और पार्टी के स्टार प्रचारक बन चुके है। कांग्रेस के इस जातीय कार्ड से बैकफुट पर आए पीएम मोदी को बीते दिनों अपनी चुनावी यात्रा के दौरान यह तक कहना पड़ा था कि गुजरात के लोग विकास की राह छोड़कर जातीय राजनीति के बहकावे में ना आए।
अभी तक देश में कांग्रेस की छवि ‘मुस्लिम हितैषी’ दल की रही थी और हर चुनाव में मुस्लिम समाज के वोटर खुल कर कांग्रेस का साथ देते थे। लेकिन भाजपा के हिंदुत्व कार्ड की काट के लिए कांग्रेस ने इस बार जातीय वोटरों को साधने का दांव खेला। गुजरात की सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत पाटीदार, ओबीसी और दलित समाज के नेताओं को अपनी ओर मिलाकर कांग्रेस ने गुजरात का सियासी कायापलट कर दिया है। अब तक एकतरफा रहने वाला गुजरात चुनाव इस बार सभी पूर्वानुमानों और आंकलनों से परे जाता दिख रहा है। इतिहास इस बात का गवाह है कि भाजपा हमेशा से ही जातिगत राजनीति के दांव में उलझ कर रह जाती है और उसकी नैया पार नहीं लग पाती। बिहार विधानसभा चुनाव इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जब ओबीसी-यादव-मुस्लिम समीकरण में उलझकर भाजपा को मुँह की खानी पड़ी थी।