वर्ष के आखिर तक गुजरात में विधानसभा चुनाव होने है। भाजपा पिछले 2 दशकों से गुजरात की सत्ता पर काबिज है और इस वजह से गुजरात को भाजपा का गढ़ भी कहा जाता है। पिछले 2 दशकों से भाजपा के गुजरात जीतने की 3 मुख्य वजहें रही हैं। पहली और सबसे प्रमुख वजह हैं नरेंद्र मोदी जिन्होंने प्रधानमंत्री का पद सँभालने से पहले 3 विधानसभा चुनावों में गुजरात भाजपा का नेतृत्व किया और लगातार 4 बार गुजरात के मुख्यमंत्री भी रहे। दूसरी वजह रही है पाटीदार वोटरों का भाजपा को समर्थन और तीसरी वजह रही है भाजपा की हिंदुत्ववादी छवि। मौजूदा समय में शुरूआती दोनों बिंदु भाजपा के पक्ष में नहीं हैं।
नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं और गुजरात में उनके कद-काठी का कोई भी व्यक्तित्व अब भाजपा के पास नहीं है। ऐसे में भाजपा के लिए गुजरात बचाना मुश्किल नजर आ रहा है। इसके अतिरिक्त दशकों से भाजपा का कोर वोटबैंक रहा पाटीदार समाज भाजपा से नाराज चल रहा है। भाजपा आरक्षण की मांग कर रहे पाटीदारों को मनाने में जुटी है पर पिछले 26 महीनों में उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी है। गुजरात में पाटीदार समाज आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली माना जाता है। राज्य में करीब 20 फीसदी वोट पाटीदार समाज के पास हैं। इस वजह से पाटीदारों को गुजरात का “किंग मेकर” भी कहा जाता है। पाटीदार समाज का रुख गुजरात में सभी सियासी समीकरणों को गलत साबित कर सकता है।
अच्छा-खासा है पाटीदारों का राजनीतिक रसूख
पाटीदार समाज सिर्फ मतदाताओं के आधार पर गुजरात में निर्णायक की भूमिका निभाते हैं यह कहना गलत होगा। गुजरात की मौजूदा भाजपा सरकार के 120 विधायकों में से 40 विधायक पाटीदार समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अतिरिक्त गुजरात सरकार के 7 मंत्री, 6 सांसद भी पाटीदार समाज से हैं। 2015 में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में आरक्षण की मांग को लेकर हुए पाटीदार आन्दोलन के बाद पाटीदार समाज भाजपा से नाराज चल रहा है। भाजपा नाराज पाटीदारों को मनाने का हरसंभव प्रयास कर रही है पर अब तक इसमें सफल नहीं हो पाई है। नरेंद्र मोदी के 2014 में गुजरात छोड़ने के बाद से पाटीदार समाज पर भाजपा की पकड़ ढ़ीली हो गई है। भाजपा के लाख प्रयत्न करने के बावजूद भी पाटीदार समाज के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।
80 के दशक से भाजपा के साथ हैं पाटीदार
गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की अहम सीढ़ी माना जाने वाला पाटीदार समाज 80 के दशक में भाजपा के पक्ष में आना शुरू हुआ। इससे पूर्व पाटीदार कांग्रेस के समर्थक थे। पाटीदार समाज को भाजपा की तरफ मिलाने में वरिष्ठ भाजपा नेता और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने अहम भूमिका निभाई थी। 80 के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के “गरीबी हटाओ” के नारे और गुजरात के जातिगत समीकरणों को को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने खाम गठजोड़ (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी, मुस्लिम) पर अपना ध्यान केन्द्रित कर लिया जिससे पाटीदार समाज नाराज हो गया। केशुभाई पटेल ने इन नाराज पाटीदारों को भाजपा की तरफ मिलाया। इसके बाद से पाटीदार समाज भाजपा का कोर वोटबैंक बन गया था और भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा था।
पाटीदार आन्दोलन ने बोया विरोध का बीज
2015 में युवा पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार समाज के लाखों लोग आरक्षण की मांग करते हुए गुजरात की सड़कों पर उतर आए। पाटीदार आन्दोलन से राज्य के लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था और गुजरात की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली अहमदाबाद की रफ्तार थम सी गई थी। पाटीदार समाज की मांग थी कि उन्हें ओबीसी जाति का दर्जा दिया जाए जिससे उन्हें नौकरी और शिक्षा में आरक्षण का लाभ मिल सके। एक छोटी सी रैली से शुरू हुए इस आन्दोलन ने धीरे-धीरते उग्र रूप ले लिया। गुजरात का पाटीदार समाज हार्दिक पटेल को अपना नेता मान चुका है और हार्दिक पटेल लगातार रैलियों के माध्यम से भाजपा के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। अभी बीते दिनों ही हार्दिक पटेल ने भाजपा सरकार के खिलाफ संकल्प यात्रा निकाली थी।
असफल रही है पाटीदारों को मनाने की हर कवायद
गुजरात की सत्ताधारी भाजपा सरकार ने नाराज चल रहे पाटीदारों को मनाने की दिशा में काफी काम किए हैं। मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने पाटीदार समाज की आरक्षण की मांगों के अध्ययन के लिए आयोग को मंजूरी दे दी है। इसके अतिरिक्त पाटीदार समाज के जिन लोगों पर पाटीदार आन्दोलन के दौरान केस दर्ज हुआ था सरकार उसे भी वापस लेने पर विचार कर रही है। भाजपा ने पाटीदारों को साधने के लिए सरदार पटेल के जन्मस्थान करमसद से गुजरात गौरव यात्रा की शुरुआत की है। इस यात्रा के माध्यम से भाजपा गुजरात के पाटीदारों को अपनी ओर करने की जुगत में है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इसी वजह से यात्रा की कमान पाटीदार समाज का नेतृत्व करने वाले नेताओं को सौंपी है।
पाटीदारों से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं राहुल गाँधी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी 20 दिनों के भीतर दूसरी बार गुजरात दौरे पर हैं। राहुल गाँधी फिलहाल भाजपा के गढ़ माने जाने वाले मध्य गुजरात के दौरे पर हैं। इससे पूर्व नवरात्रि के दौरान उन्होंने सौराष्ट्र का दौरा किया था। सौराष्ट्र दौरे के दौरान पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल ने राहुल गाँधी का स्वागत किया था और कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही थी। पूरे दौरे के दौरान राहुल गाँधी ने पाटीदार समाज के कई बड़े नेताओं से मुलाकात की और पाटीदार आरक्षण की वकालत भी की। हार्दिक पटेल के भाजपा विरोधी रुख से यह आसार बनते नजर आ रहे हैं कि वह कांग्रेस के पक्ष में प्रचार कर सकते हैं। ऐसे में कुशल नेतृत्व की कमी से जूझ रही भाजपा की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
गुजरात गौरव यात्रा का विरोध कर रहा है पाटीदार समाज
1 अक्टूबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सरदार पटेल की जन्भूमि करमसद से गुजरात गौरव यात्रा की शुरुआत की थी। वर्ष 2002 के बाद यह पहली बार था जब सूबे में गुजराती गौरव यात्रा का आयोजन हो रहा हो। माना जा रहा है कि भाजपा की घटती लोकप्रियता और पाटीदार समाज की नाराजगी को दूर करने के लिए अमित शाह ने यह यात्रा शुरू की थी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह गुजरात गौरव यात्रा के दौरान जिन दो चेहरों को आगे किया हैं वह दोनों ही पाटीदार समाज से ताल्लुक रखते हैं। गुजरात सरकार के दो पूर्व मंत्रियों को इस यात्रा का प्रभारी बनाया गया है। इनके नाम कौशिक भाई पटेल और गोरधन झडफिया है। गुजरात के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल के हाथ में यात्रा की कमान है।
पाटीदार समाज ने कई जगहों पर गुजरात गौरव यात्रा का विरोध किया। मंगलवार, 10 अक्टूबर को उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल के सम्बोधन के दौरान पाटीदारों ने कुर्सियां पहनकर अपना विरोध जताया। गुजरात गौरव यात्रा की शुरुआत के दिन ही पाटीदार समाज के कुछ लोगों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के सामने नारेबाजी शुरू कर दी थी जिसके बाद पुलिस ने उन्हें वहाँ से हटा दिया था। आरक्षण की मांगे ना सुनी जाने की वजह से पाटीदार समाज में आक्रोश भरा हुआ है और वह अलग-अलग तरीकों से इसे व्यक्त कर रहे हैं। कांग्रेस लगातार पाटीदारों को रिझाने में लगी है जिससे भाजपा की बेचैनी और भी बढ़ी है।
2012 विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ था पाटीदार समाज
2012 के विधानसभा चुनावों में कड़वा बिरादरी के 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। लेउवा बिरादरी के 63 फीसदी वोटरों ने भाजपा को चुना था। 80 के दशक से ही पाटीदार समाज के 80 फीसदी वोटर भाजपा के पक्ष में मतदान करते आए हैं। इसी वजह से पाटीदार समाज को भाजपा का पारम्परिक वोटबैंक कहा जाता रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को 50 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को तकरीबन 40 फीसदी मत मिले थे। पाटीदार समाज के वोटरों के मत प्रतिशत 20 है। इस लिहाजन अगर 80 फीसदी पाटीदार कांग्रेस के साथ हो जाए और मुस्लिम दलित एक होकर कांग्रेस का साथ दे दें तो भाजपा के लिए गुजरात बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
अहम भूमिका निभा सकते हैं केशुभाई पटेल
पाटीदार समाज को भाजपा से जोड़ने में सबसे बड़ी भूमिका केशुभाई पटेल की रही थी। कभी कांग्रेस के समर्थक रहे पाटीदार उस दौर में कांग्रेस से नाराज चल रहे थे और केशुभाई पटेल ने अपनी मेहनत से पाटीदार समाज को भाजपा का कोर वोटबैंक बनाया था। केशुभाई पटेल पाटीदारों की लेउवा बिरादरी से आते हैं वहीं पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल कड़वा बिरादरी से। पाटीदार समाज में लेउवा बिरादरी की आबादी 60 फीसदी है वहीं कड़वा बिरादरी की आबादी 40 फीसदी है। 2012 में केशुभाई पटेल ने भाजपा से अलग होकर गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई थी जिसका 2014 में पुनः भाजपा में विलय हो गया। केशुभाई पटेल फिलहाल खराब स्वास्थ्य की वजह से सक्रिय राजनीति से दूर हैं पर उनकी लोकप्रियता और उनका व्यक्तित्व पाटीदारों को रिझाने में भाजपा के काम आ सकता है।
कितनी कारगर साबित होगी गुजरात गौरव यात्रा?
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा शुरू की गई गुजरात गौरव यात्रा की सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है। हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर भाजपा का चाणक्य अब कौन सा सियासी चक्रव्यूह रचने जा रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात से दिल्ली जाने के बाद गुजरात भाजपा को अभी तक कोई सशक्त चेहरा नहीं मिल सका है जिसे आगे रखकर भाजपा चुनावी दंगल में उतर सके। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाकर चुनाव लड़ेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुजरात में चुनाव प्रचार कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को गुजरात के सियासत की गहरी समझ है और पिछले 4 विधानससभा चुनावों से उनकी और नरेंद्र मोदी की जोड़ी भाजपा की जीत की कहानी लिखती आई है। उम्मीद है वह इसे एक बार फिर दोहराने में कामयाब होंगे।
व्यापारी वर्ग को लुभाने के लिए जीएसटी सुधार
गुजरात की शहरी आबादी में भाजपा की अच्छी पकड़ है। गुजरात के लोगों का मुख्य व्यवसाय व्यापर है और भाजपा की पूर्ववर्ती सकारें व्यापारी वर्ग की हितैषी रही हैं। ऐसे में भाजपा को इस वर्ग का समर्थन मिलना तय है। हालिया सुधारों के बाद जीएसटी भी अब भाजपा का पक्ष मजबूत कर रहा है। मोदी सरकार ने जीएसटी में सुधारों के तहत जिन-जिन क्षेत्रों में छूट दी है उनमें से अधिकतर क्षेत्रों में गुजरात के व्यापारी वर्ग का दबदबा है। कपड़ा उद्योग, जवाहरात उद्योग इनमें से प्रमुख हैं। ऐसा करके भाजपा ने जीएसटी की वजह से व्यापारी वर्ग में व्याप्त रोष को काफी हद तक मिटा दिया है और आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अपना पक्ष मजबूत कर लिया है। गुजरात का व्यापारी वर्ग भी भाजपा का कोर वोटबैंक बन चुका है और उम्मीद है इस बार भी वह भाजपा का साथ देगा।
ग्रामीण वोटरों को साधने की कवायद
अमित शाह द्वारा शुरू की गई गुजरात गौरव यात्रा से भाजपा ग्रामीण वोटरों को लुभाने में जुटी है। इन 15 दिनों के दौरान यह यात्रा 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा के 149 ग्रामीण सीटों से गुजरेगी। देश को एकता के सूत्र में बाँधने वाले सरदार पटेल के पैतृक गृह से यात्रा की शुरुआत कर अमित शाह ने विरोधियों को यह सन्देश दे दिया है कि गुजरात को एक सूत्र में बाँधकर वह भाजपा के पक्ष में लाएंगे। इस यात्रा के माध्यम से भाजपा कांग्रेस सरकार द्वारा शासन के 60 सालों में गुजरात के साथ किए गए सौतेले व्यवहार को गुजरात की जनता के सामने लाएगी। इनमें सरदार पटेल की उपेक्षा और उन्हें भारत रत्न ना देना, मोरारजी देसाई की इंदिरा गाँधी द्वारा उपेक्षा जैसे मुद्दे शामिल हैं। ग्रामीण क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर शुरू की गई यह यात्रा निश्चित रूप से भाजपा को लाभ पहुँचाएगी।
अन्य जातीय समीकरणों को भी साध रही है भाजपा
भाजपा आलाकमान आजकल गुजरात में सरकार से नाराज चल रहे पाटीदार समाज के परंपरागत वोटबैंक के खिसकने की वजह से हुए नुकसान की भरपाई को लेकर चिंतित है। पाटीदार समाज के मतदाताओं की संख्या कुल मतदाताओं की संख्या का 20 फीसदी है और राज्य की कई सीटों पर इनका सीधा हस्तक्षेप है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनावी गणित को ध्यान में रखकर जातीय समीकरणों को साधना शुरू कर दिया है। गुजरात हिन्दू बाहुल्य राज्य है और यहाँ की 88 फीसदी आबादी हिन्दू है। 9 फीसदी आबादी मुसलमानों की है और शेष 3 फीसदी आबादी में अन्य धर्मों के लोग है। इससे एक बात स्पष्ट है कि हमेशा की तरह हिंदुत्व का असर इस बार भी चुनावों पर रहेगा।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ अहमदाबाद की सिदी सैयद मस्जिद गए थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहली बार था जब मोदी किसी मस्जिद गए हो। उनके इस कदम की कई हिन्दू संगठनों ने आलोचना की थी। कांग्रेस ने इसे भाजपा की तुष्टिकरण की राजनीति करार दिया था और कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण करना चाहते है। हालाँकि ट्रिपल तलाक मुद्दे पर भी प्रधानमंत्री मोदी मुस्लिम महिलाओं का पक्ष ले चुके हैं और हर मंच पर उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के हक की बात को आगे रखा है। वजह चाहे जो भी हो पर मुस्लिम बिरादरी में नरेंद्र मोदी और भाजपा की छवि सुधर रही है और भाजपा इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी।
अहम मुद्दा रहेगा हिंदुत्व
भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों में विकास को मुख्य मुद्दा बनाएगी। गुजरात एक हिन्दू बाहुल्य आबादी वाला राज्य है और यहाँ की 89 फीसदी आबादी हिन्दू है। ऐसे में भाजपा अपने कोर वोटबैंक माने जाने वाले हिन्दुओं को साधने के लिए हिंदुत्व कार्ड भी खेल सकती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुजरात गौरव यात्रा में शामिल होने की बात कर भाजपा इसकी शुरुआत कर चुकी है। योगी आदित्यनाथ की छवि कट्टर हिंदूवादी नेता की रही है और योगी राज में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लिए गए फैसलों पर इसका स्पष्ट असर दिखता है। योगी आदित्यनाथ हाल ही में भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं की हत्या के विरोध में केरल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा शुरू की गई जनसुरक्षा यात्रा में शामिल हुए थे। उन्हें वहाँ पर भारी जनसमर्थन मिला था।
महती भूमिका निभाएगा ओबीसी वर्ग
गुजरात विधानसभा में कुल 182 सीटें हैं। इन 182 सीटों में से 70 सीटों पर ओबीसी वर्ग के मतदाताओं का बड़ा जनाधार है। मुस्लिम मतदाता 35 सीटों पर बाहुल्य में हैं वहीं 26 सीटें आदिवासी बाहुल्य मतदाता क्षेत्र की हैं। 13 सीटों पर दलित वर्ग बाहुल्य मतदाता हैं और 13 सीटों पर ही सवर्ण मतदाताओं का जनाधार है। हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाले पाटीदार आन्दोलन के बाद भाजपा गुजरात में थोड़ा असहज महसूस कर रही है। निश्चित तौर पर पाटीदार आन्दोलन को मिले जनसमर्थन ने भाजपा के माथे पर शिकन ला दी है। भाजपा अपने परंपरागत वोटबैंक कहे जाने वाले पाटीदार समाज के खिसकने के बाद अब ओबीसी वर्ग को साध रही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी रूपरेखा तैयार करने में जुटे हुए हैं।
राज्यभर में ओबीसी वर्ग के मतदाताओं तक पहुँचने के लिए भाजपा ने राज्य में गुजरात गौरव यात्रा के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने का प्रयास कर रही है। गुजरात सरकार के योजनाओं की जानकारी राज्य के लोगों तक पहुँचाने के लिए मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने राज्यभर में 12 दिनों तक चलने वाले नर्मदा महोत्सव यात्रा का आयोजन किया था । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लगातार गुजरात में सक्रिय दिख रहे हैं और 17 सितम्बर को अपने जन्मदिन पर उन्होंने नर्मदा नदी पर बने बांध के नवनिर्मित गेट का उद्घाटन किया। भाजपा राज्यभर में लोगों को यह बता रही है कि ओबीसी आरक्षण में सुधारों की उसकी संतुस्तियों का कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विरोध किया था जिस वजह से ओबीसी कोटे के अंतर्गत आने वाली सभी जातियों को जातिगत आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
कुर्मी वोटरों को लुभाएंगे स्वतंत्र देव
गुजरात में भाजपा ओबीसी और दलित वर्ग पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। गुजरात में कुर्मी वोटरों का बड़ा तबका मौजूद है और उसे साधने के लिए भाजपा योगी सरकार के मंत्री स्वतंत्र देव को गुजरात बुला सकती है। स्वतंत्र देव को संगठन में काम करने का लम्बा अनुभव है और योगी सरकार में शामिल होने से पूर्व उनके कन्धों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों और सभाओं की जिम्मेदारी थी। गुजरात भाजपा विधानसभा चुनावों में स्वतंत्र देव की संगठन क्षमता का लाभ उठाएगी। इसके अतिरिक्त भाजपा उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टी अपना दल की प्रमुख अनुप्रिया पटेल को भी गुजरात में प्रचार कार्यक्रम में उतार सकता है। अनुप्रिया पटेल मोदी मन्त्रिमण्डल में मंत्री हैं। गुजरात में कुर्मी वोटरों को लुभाने के लिए वह भाजपा का हथियार बन सकती हैं।
लोकप्रिय नहीं रहे हैं मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी के बाद अमित शाह ही ऐसे नेता थे जो गुजरात भाजपा में दमखम रखते थे। राजनाथ सिंह ने गृह मंत्री के बाद भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष चुने गए। गुजरात को आनंदीबेन पटेल के हाथों में सौंपकर भाजपा ने महिला सशक्तीकरण के नारे को बुलंद करने की कोशिश की। आनंदीबेन पटेल गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। भाजपा ने उनको कमान सौंपकर अपने परंपरागत पाटीदार मतदाता वर्ग को साधने का प्रयास भी किया। आंनदीबेन पटेल ने 75 वर्ष की आयु पूरी होने के पश्चात मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और उनकी जगह विजय रुपाणी को गुजरात का नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनाकर भी भाजपा ने वोटबैंक साधने की ही कोशिश की थी।
दरअसल नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद गुजरात भाजपा के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था जो पार्टी को अपने कन्धों पर आगे ले जा सके। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में किसी भी अन्य भाजपा नेता को इतनी लोकप्रियता ही नहीं मिली कि वह पुरे सूबे का प्रतिनिधित्व कर सके। गुजरात के नाम पर लोगों के जेहन में सिर्फ एक ही नाम आता था और वह था नरेंद्र मोदी। अमित शाह के राज्यसभा जाने के बाद अब गुजरात भाजपा की स्थिति भी गुजरात कांग्रेस जैसी हो गई है। भाजपा को नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चेहरे पर वोट तो मिल जाएंगे पर सवाल यह है कि क्या राज्य को फिर एक बार नरेंद्र मोदी जैसा करिश्माई नेतृत्व मिल सकेगा?
विजय रुपाणी नहीं है प्रोजेक्टेड मुख्यमंत्री
गुजरात में भाजपा एक कुशल नेतृत्वकर्ता की कमी से जूझ रही है। बतौर मुख्यमंत्री विजय रुपाणी अपने कार्यकाल में बहुत प्रभावी नहीं रहे हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात भाजपा नेतृत्व की कमी से जूझ रही है और वर्तमान मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के कंधे इतने मजबूत नहीं हैं कि वह गुजरात में भाजपा की जिम्मेदारी उठा सकें। ऐसे में भाजपा के सामने यह मुश्किल आ रही है कि वह किसे मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करे। फिलहाल भाजपा ने स्पष्ट किया है कि नरेंद्र मोदी ही गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा का चेहरा होंगे। चुनाव परिणाम आने के बाद विधायकों से राय-मशविरे के बाद मुख्यमंत्री चुना जाएगा। भाजपा गुजरात में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों वाली रणनीति अपना रही है और उम्मीद कर रही है कि वह अपनी सफलता दोहरा सके।
नितिन पटेल पर दांव खेल सकती है भाजपा
अबतक भाजपा को यह पता लग चुका है कि गुजरात जीतने के लिए पाटीदारों का समर्थन कितना जरूरी है। भाजपा द्वारा पाटीदारों को मनाने के लिए किए जा रहे सारे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। भाजपा वर्तमान मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को अपना मुख्यमंत्री नहीं प्रोजेक्ट कर रही है। माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान अंत समय में मुख्यमंत्री के चेहरे को आगे कर सकती है। विजय रुपाणी अपने कार्यकाल में बहुत लोकप्रिय नहीं रहे हैं। ऐसे में उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल भाजपा के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं। आनंदीबेन पटेल के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में उनका भी नाम शामिल था। संगठन में उनकी अच्छी पकड़ है और वह लोकप्रिय भी हैं। नितिन पटेल पाटीदार समाज से आते हैं और उनकी उम्मीदवारी निश्चित रूप से भाजपा के पक्ष में पाटीदार वोटों का ध्रुवीकरण करेगी।
मोदी सरकार को लोकप्रियता का आईना दिखाएगी जनता
गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनावों की रिहर्सल माना जा रहा है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दिल्ली जाने के बाद गुजरात में भाजपा के पास कोई सशक्त चेहरा नहीं बचा है। शंकर सिंह वाघेला की बगावत के बाद कमजोर पड़ी कांग्रेस को राज्यसभा चुनावों में अहमद पटेल की जीत से संजीवनी मिली थी। पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के सौराष्ट्र दौरे पर उनका स्वागत किया था और विधानसभा चुनावों में समर्थन देने को कहा था। गुजरात विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई है वहीं भाजपा के लिए यह बादशाहत साबित करने की लड़ाई है। गुजरात विधानसभा चुनावों के परिणाम वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों की दिशा तय करेंगे और मोदी सरकार की लोकप्रियता का आईना दिखाएंगे।