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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में महज 2 दिन का समय शेष रह गया है। पहले चरण के चुनाव के लिए आज प्रचार का आखिरी दिन है। भाजपा, कांग्रेस समेत सभी सियासी दलों ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। मतदाताओं को रिझाने के लिए सभी सियासी दल अपनी-अपनी सियासी बाजी चल चुके हैं। गुजरात की सियासत का मिजाज इस बार कुछ अलग ही नजर आ रहा है। कांग्रेस के जातीय कार्ड के दांव के आगे सत्ताधारी दल भाजपा पस्त नजर आ रही है। पाटीदार, ओबीसी और दलित आन्दोलन के चलते बने त्रिशंकु जातीय समीकरण में भाजपा उलझ कर रह गई है। अगर बीते 3 विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस भाजपा के मुकाबले काफी मजबूत बनकर उभरी है। कांग्रेस दशकों बाद भाजपा को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है। भाजपा गुजरात बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करती नजर आ रही है।

    गुजरात में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान उसके परंपरागत वोटबैंक रहे पाटीदार समाज के कटने से हुआ है। गुजरात का पाटीदार समाज पिछले 2 दशकों से भाजपा का समर्थक था और भाजपा के सत्तासीन होने में पाटीदार समाज के मतदाताओं की अहम भूमिका थी। 2015 में आरक्षण की मांग को लेकर शुरू हुए पाटीदार आन्दोलन के बाद गुजरात में भाजपा के कोर वोटबैंक कहे जाने वाला पाटीदार समाज पर भाजपा की पकड़ कमजोर होने लगी। पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल ने गुजरात की सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और लोगों से भाजपा को वोट ना देने की अपील की। अब हार्दिक पटेल खुलकर कांग्रेस के साथ आ चुके हैं और भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा ने पाटीदारों को मनाने की जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल को दी है।

    दशकों से भाजपा का साथी है पाटीदार समाज

    गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की अहम सीढ़ी माना जाने वाला पाटीदार समाज 90 के दशक में भाजपा की ओर आना शुरू हुआ। इससे पूर्व पाटीदार कांग्रेस के समर्थक थे। पाटीदार समाज को भाजपा की तरफ मिलाने में वरिष्ठ भाजपा नेता और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने अहम भूमिका निभाई थी। 80 के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के “गरीबी हटाओ” के नारे और गुजरात के जातिगत समीकरणों को को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने खाम गठजोड़ (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी, मुस्लिम) पर अपना ध्यान केन्द्रित कर लिया जिससे पाटीदार समाज नाराज हो गया। केशुभाई पटेल ने इन नाराज पाटीदारों को भाजपा की तरफ मिलाया। इसके बाद से पाटीदार समाज भाजपा का कोर वोटबैंक बन गया था और भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा था।

    नितिन के हाथ में थी गुजरात गौरव यात्रा की कमान

    1 अक्टूबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सरदार पटेल की जन्भूमि करमसद से गुजरात गौरव यात्रा की शुरुआत की थी। वर्ष 2002 के बाद यह पहली बार था जब सूबे में गुजराती गौरव यात्रा का आयोजन हो रहा हो। गुजरात में भाजपा की घटती लोकप्रियता और पाटीदार समाज की नाराजगी को दूर करने के लिए अमित शाह ने यह यात्रा शुरू की थी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह गुजरात गौरव यात्रा के दौरान जिन दो चेहरों को आगे किया था वह दोनों ही पाटीदार समाज से ताल्लुक रखते हैं। गुजरात सरकार के दो पूर्व मंत्रियों कौशिक भाई पटेल और गोरधन झडफिया को इस यात्रा का प्रभारी बनाया गया था। गुजरात के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल के हाथों में यात्रा की कमान थी।

    पाटीदार समाज ने कई जगहों पर गुजरात गौरव यात्रा का विरोध किया। मंगलवार, 10 अक्टूबर को उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल के सम्बोधन के दौरान पाटीदारों ने कुर्सियां पहनकर अपना विरोध जताया था। गुजरात गौरव यात्रा की शुरुआत के दिन ही पाटीदार समाज के कुछ लोगों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के सामने नारेबाजी शुरू कर दी थी जिसके बाद पुलिस ने उन्हें वहाँ से हटा दिया था। हालाँकि भाजपा गुजरात गौरव यात्रा के माध्यम से पाटीदारों को साधने में विफल रही थी। आरक्षण की मांगे ना सुनी जाने की वजह से पाटीदार समाज में आक्रोश भरा हुआ है और वह अलग-अलग तरीकों से इसे व्यक्त कर रहे हैं। कांग्रेस को पाटीदार नेता हार्दिक पटेल का समर्थन मिल चुका है जिससे भाजपा की बेचैनी और भी बढ़ी है।

    पाटीदारों को मनाने में जुटी है भाजपा

    गुजरात में दशकों से भाजपा का कोर वोटबैंक रहा पाटीदार समाज भाजपा से नाराज चल रहा है। भाजपा आरक्षण की मांग कर रहे पाटीदारों को मनाने में जुटी है पर पिछले 26 महीनों में उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी है। गुजरात में पाटीदार समाज आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली माना जाता है। गुजरात विधानसभा में करीब 40 विधायक पाटीदार समाज से हैं। सियासी रसूख की वजह से ही पाटीदारों को गुजरात का “किंग मेकर” भी कहा जाता है। 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का बड़ा आधार पाटीदारों का समर्थन था। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर 9 फीसदी था। भाजपा को 47 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिले थे। गुजरात की सियासत में अहम भूमिका निभाने वाले पाटीदार समाज के कटने से भाजपा की राह सियासी मुश्किल हो गई है।

    अगर 2012 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो कड़वा बिरादरी के 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। लेउवा बिरादरी के 63 फीसदी वोटरों ने भाजपा को चुना था। 90 के दशक से ही पाटीदार समाज के 80 फीसदी वोटर भाजपा के पक्ष में मतदान करते आए हैं। इसी वजह से पाटीदार समाज को भाजपा का पारम्परिक वोटबैंक कहा जाता है। गुजरात के मतदाता वर्ग में पाटीदार समाज के मतदाताओं का मत प्रतिशत 13 है। पाटीदार मतदाता गुजरात की 66 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं। पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल के कई साथी भाजपा में आ चुके हैं पर हार्दिक को युवाओं का सहयोग मिल रहा है। पाटीदार बेल्ट सौराष्ट्र में हार्दिक भाजपा का सियासी गणित बिगाड़ सकते हैं। नितिन पटेल क्षेत्रीय पाटीदार नेताओं से मिलकर सियासी माहौल भाजपा के पक्ष में करने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं।

    नितिन पटेल पर दांव खेल सकती थी भाजपा

    अब तक भाजपा को यह पता लग चुका है कि गुजरात जीतने के लिए पाटीदारों का समर्थन कितना जरूरी है। भाजपा द्वारा पाटीदारों को मनाने के लिए किए जा रहे सारे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। भाजपा शुरुआती दौर में विजय रुपाणी को अपना मुख्यमंत्री नहीं प्रोजेक्ट कर रही थी। माना जा रहा था कि भाजपा अंत समय में नितिन पटेल को मुख्यमंत्री का चेहरा बना सकती है। विजय रुपाणी अपने कार्यकाल में बहुत लोकप्रिय नहीं रहे थे। ऐसे में उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल भाजपा के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते थे। आनंदीबेन पटेल के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में उनका भी नाम शामिल था। संगठन में उनकी अच्छी पकड़ है और वह लोकप्रिय भी हैं। नितिन पटेल पाटीदार समाज से आते हैं और उनकी उम्मीदवारी निश्चित रूप से पाटीदार वोटरों को भाजपा के पक्ष में करती पर भाजपा ने विजय रुपाणी पर दोबारा भरोसा जताया है।

    क्या पाटीदारों को मना पाएंगे नितिन पटेल?

    भाजपा आलाकमान ने गुजरात में पाटीदार समाज की नाराजगी को दूर करने का जिम्मा राज्य के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल को सौंपा है। नितिन पटेल स्वयं पाटीदार समाज से आते हैं और आज गुजरात भाजपा के सबसे बड़े पाटीदार नेता हैं। नितिन पटेल पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के भी करीबी माने जाते हैं। उपमुख्यमंत्री बनने से पहले नितिन पटेल गुजरात सरकार में कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। गुजरात सरकार ने पाटीदार आन्दोलन के बाद सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में पाटीदारों को आरक्षण देने सम्बन्धी विषय पर आन्दोलनरत नेताओं से बातचीत करने के लिए जो समिति गठित की थी उसकी कमान नितिन पटेल को सौंपी गई थी। उत्तर गुजरात से आने वाले नितिन पटेल जमीन से जुड़े नेता हैं और और वह लगातार गुजरात सरकार में मंत्री रहे हैं।

    नितिन पटेल छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़े हुए हैं और अभी तक सिर्फ एक बार चुनाव (2002) हारे हैं। हालाँकि हार के बावजूद भी नरेन्द्र मोदी ने नितिन पटेल को अपने मन्त्रिमण्डल में शामिल किया था। केशुभाई पटेल के अस्वस्थ होने के बाद गुजरात भाजपा के पास पाटीदार नेता के रूप में सबसे बड़ा चेहरा नितिन पटेल है। नितिन पटेल साफ-सुथरी छवि वाले नेता हैं और पाटीदार समाज में उनका अच्छ-खासा रसूख है। नितिन पटेल को उपमुख्यमंत्री भी इसीलिए बनाया गया था ताकि पाटीदार समाज में भाजपा की पकड़ बरकरार रहे। नितिन पटेल पाटीदारों को मनाने के लिए जमीनी स्तर पर कड़ी मेहनत कर रहे हैं और नतीजन हार्दिक पटेल के कई साथी आज भाजपा के साथ आ चुके हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नितिन पटेल पाटीदारों को मनाकर गुजरात में ‘भाजपाराज’ कायम रख पाते हैं?

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।