गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में अब 10 दिनों से भी कम का समय शेष रह गया है। भाजपा गुजरात में पिछले 2 दशक से सत्ताधारी दल है और इस वजह से ही गुजरात को भाजपा का गढ़ कहा जाता है। 207 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के गढ़ गुजरात की दीवार दरकती नजर आ रही है। जिस विकास को आधार बनाकर भाजपा ने गुजरात को अपना गढ़ बनाया था वह ‘विकास पागल हो गया’ है। अपने विकास मॉडल की वजह से देशभर में चर्चा में रहने वाला गुजरात आज जातीय आन्दोलनों की बेड़ियों में जकड़ कर रह गया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी गुजरात में कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। एक नजर डालते हैं भाजपा का गढ़ गुजरात फतह करने चली कांग्रेस के सियासी दांवों पर :
पाटीदारों का समर्थन
गुजरात राज्यसभा चुनावों में कांग्रेसी चाणक्य अहमद पटेल को मिली जीत के बाद से ही कांग्रेस राज्य में विधानसभा चुनावों की तयारी में जुट गई थी। अपना पक्ष मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने सबसे पहले सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत पाटीदारों को साधना शुरू किया। इसकी जिम्मेदारी गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत ने सँभाली और शक्ति सिंह गोहिल, भारत सिंह सोलंकी और अर्जुन मोडवाडिया सरीखे क्षेत्रीय नेताओं के साथ मिलकर पाटीदार आन्दोलन के नेताओं को मनाना शुरू किया। कांग्रेस की यह नीति काफी कारगर साबित हुई और वह पाटीदार नेताओं को मनाने में काफी हद तक सफल रही। हालाँकि इस मान-मनौव्वल में काफी समय लगा पर पाटीदारों का समर्थन कांग्रेस के लिए ‘देर आए पर दुरस्त आए’ की तरह रहा।
गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे अधिक नुकसान उसके परंपरागत वोटबैंक माने जाने वाले पाटीदार समाज के कटने से हुआ है। पाटीदार समाज गुजरात विधानसभा की एक तिहाई से अधिक सीटों पर अपना प्रभाव रखता है। पाटीदारों के समर्थन के बगैर गुजरात में सरकार बना पाना एक कोरी कल्पना है और इस वजह से ही पाटीदारों को गुजरात का किंग मेकर कहा जाता है। आरक्षण की मांग को लेकर 2015 में शुरू हुए पाटीदार आन्दोलन के कारण भाजपा गुजरात में बैकफुट पर नजर आ रही है। पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल खुले तौर पर कांग्रेस के समर्थन का ऐलान कर चुके हैं और गाँव-गाँव घूमकर जनता से भाजपा को वोट ना देने की अपील करते नजर आ रहे हैं। हार्दिक पटेल को अपनी ओर मिलकर कांग्रेस ने निश्चित तौर पर अपनी दावेदारी मजबूत कर ली है।
ओबीसी नेता अल्पेश का कांग्रेस में शमिल होना
जातीय आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे युवा नेताओं की तिकड़ी में से ओबीसी वर्ग के नेता अल्पेश ठाकोर ने सबसे पहले कांग्रेस का दामन थामा था। गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से कई मुलाकातों के बाद अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हुए थे। कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनावों में ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर की पसंद के 13 उम्मीदवारों को अपने टिकट पर उतार रही है। अल्पेश ठाकोर स्वयं पाटन जिले की राधनपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। अल्पेश ठाकोर को संगठन में काम करने का लम्बा अनुभव है और उनकी सियासी सूझबूझ शक योग्य नहीं है। गुजरात के मतदाता वर्ग में ओबीसी वर्ग की 54 फीसदी भागेदारी है। गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर ओबीसी वर्ग का स्पष्ट प्रभाव है।
कभी गुजरात में शराबबंदी के लिए ‘जनता रेड’ डालने वाले अल्पेश ठाकोर आज सियासत के दांव-पेंच खेल रहे हैं। अल्पेश ठाकोर गुजरात क्षत्रिय-ठाकोर सेना के अध्यक्ष हैं और ओबीसी-एससी-एसटी एकता मंच के संयोजक की भूमिका में भी हैं। ओबीसी वर्ग में अल्पेश ठाकोर की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने राज्य में ओबीसी वर्ग की 146 जातियों को एकजुट किया है और उनका समर्थन हासिल किया है। चुनावों से पूर्व कांग्रेस में शामिल होकर अल्पेश ठाकोर ने भाजपा को करारा झटका दिया है और पाटीदारों के कटने से बैकफुट पर चल रही भाजपा की सियासी राह और मुश्किल कर दी है। अल्पेश ठाकोर के पिता खोड़ाजी ठाकोर कांग्रेस के पुराने शागिर्द रह चुके हैं। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को अपनी ओर मिलकर कांग्रेस ने गुजरात के सबसे बड़े मतदाता वर्ग को साधने का दांव चला है।
जिग्नेश का परोक्ष समर्थन
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाकात के बाद जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस में शामिल होने से इंकार कर दिया था। हालाँकि जिग्नेश ने कहा था कि वह सत्ताधारी भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ हैं और लोगों से भाजपा को वोट ना देने की अपील करेंगे। जिग्नेश मेवानी ने कहा था कि वह कांग्रेस का समर्थन करेंगे पर किसी पार्टी में शामिल नहो होंगे। उम्मीदवारों के चयन पर जिग्नेश ने कहा था कि कांग्रेस को ऐसे उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने चाहिए जिन्हे लेकर पाटीदार, ओबीसी और दलित समाज में सहमति हो। जिग्नेश ने जब बनासकांठा जिले की वडगाम विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की तो क्षेत्र के मौजूदा विधायक और कांग्रेस नेता मणिलाल वाघेला ने उनका समर्थन किया। दलित समाज में जिग्नेश की स्वीकार्यता देख कांग्रेस वडगाम में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उनका समर्थन कर रही है।
लगातार हो रही हिंसक घटनाओं के कारण गुजरात का दलित समुदाय भाजपा से रुष्ट है। बीते दिनों सौराष्ट्र के ऊना में कथित गौरक्षकों ने दलितों की पिटाई कर दी थी। इस मामले ने आग में घी का काम किया और गुजरात का दलित समाज भाजपा के खिलाफ हो गया। पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी ने गुजरात में दलितों के इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। उना में गौरक्षा के नाम पर हुई दलितों की पिटाई के खिलाफ जिग्नेश मेवानी ने आन्दोलन छेड़ा था। ‘आजादी कूच आन्दोलन’ के माध्यम से जिग्नेश मेवानी ने एक साथ 20,000 दलितों को मरे जानवर ना उठाने और मैला ना ढ़ोने की शपथ दिलाई। इस दलित आन्दोलन ने बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से गुजरात की भाजपा सरकार को करारा झटका दिया था। राज्य के 6 फीसदी मतदाता दलित हैं और 13 सीटों पर प्रभाव रखते हैं। इनकी नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है।
राहुल का मंदिर भ्रमण
गुजरात के चुनावी दौरों के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का नया अंदाज देखने को मिल रहा है। राहुल गाँधी अपने गुजरात दौरों पर मंदिर-मंदिर घूमते नजर आ रहे हैं और जनसभाओं में माथे पर तिलक-त्रिपुण्ड लगाए फिर रहे हैं। भाजपा कांग्रेस पर ‘हिंदुत्व विरोधी’ और ‘अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण’ करने वाला दल होने का आरोप लगाती थी जिस पर जवाबी हमला करने के लिए राहुल गाँधी ने यह सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव खेला है। राहुल गाँधी की यात्राओं के दौरान कोई भी मुस्लिम नेता उनके आस-पास नजर नहीं आ रहा है और ना ही अहमद पटेल अब तक चुनाव प्रचार में दिखाई दिए हैं। इसका कारण यह है कि पिछले चुनावों में प्रचार के अंतिम चरण में नरेंद्र मोदी ने ‘मियाँ अहमद पटेल’ कह कर मतों का ध्रुवीकरण कर लिया था जो भाजपा की जीत का आधार बना था।
राहुल गाँधी की इस ‘हिंदुत्व हितैषी’ छवि के पीछे कांग्रेसी दिग्गज अशोक गहलोत का दिमाग है। 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने पूर्व रक्षामंत्री ए के एंटनी के नेतृत्व में हार के कारणों का पता लगाने के लिए कमेटी गठित की थी। एंटनी कमेटी द्वारा दी गई रिपोर्ट में कांग्रेस की ‘हिंदुत्व विरोधी’ छवि को हार के प्रमुख कारणों में से एक माना गया था। राहुल गाँधी पिछले कुछ समय से पार्टी की इस छवि को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए वह गुजरात में चुनावी दौरों पर मंदिरों में जा रहे हैं और मत्था टेकते हुए नजर आ रहे है। भाजपा ने दो दशक पहले इसी हिंदुत्व मुद्दे को आधार बनाकर कांग्रेस को गुजरात की सत्ता से बेदखल किया था और अब आज कांग्रेस इसी हिंदुत्व हितैषी छवि का सहारा लेकर गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की कोशिश में लगी है।
सोशल मीडिया पर सक्रियता
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत में सोशल मीडिया का बड़ा योगदान रहा था। भाजपा नेताओं की सक्रियता और सोशल मीडिया पर चलाए गए “एंटी-कांग्रेस कैम्पेन” ने भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी। उस वक्त तक शशि थरूर ही एक मात्र ऐसे कांग्रेसी नेता थे जो सोशल मीडिया पर सक्रिय थे। पर आगामी चुनावों में मद्देनजर कांग्रेस सोशल मीडिया को अपना प्रमुख हथियार बनाने की पूरी तैयारी कर चुका है। अपने हालिया गुजरात दौरे के दौरान राहुल गाँधी ने अपने ट्विटर हैंडल पर “विकास पागल हो गया” कैम्पेन चलाया था और मोदी सरकार की नीतियों पर बने मेमे को भी प्रचारित किया था। कांग्रेस अब भाजपा के विरुद्ध वही रणनीति अपना रही है जो 2014 के लोकसभा चुनावों के वक्त भाजपा ने उसके विरुद्ध अपनाई थी। कांग्रेस की डिजिटल टीम की कमान दक्षिण की अभिनेत्री दिव्या स्पंदना उर्फ राम्या संभाल रही हैं।
मोदीजी, जय शाह- 'जादा' खा गया|
आप चौकीदार थे या भागीदार? कुछ तो बोलिए— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 9, 2017
जीएसटी और नोटबंदी अहम चुनावी मुद्दा
कांग्रेस अबतक गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान में पीएम मोदी या अन्य किसी भाजपा नेता पर व्यक्तिगत हमलों से बचती रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी इससे परहेज किया है। राहुल गाँधी अपनी चुनावी रैलियों में केंद्र की सत्ताधारी भाजपा सरकार की नीतियों की आलोचना करते आए हैं और खासकर आर्थिक मोर्चे पर उन्होंने मोदी सरकार की जमकर खिंचाई की है। गुजरात में व्यापारी वर्ग की बड़ी आबादी है और इस वजह से चुनावों के वक्त यह मुद्दे काफी कारगर साबित हो सकते हैं। राहुल गाँधी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि नोटबंदी और जीएसटी को लागू करने जैसे फैसले पीएम मोदी ने बिना किसी सलाह-मशविरे के लिए थे। प्रधानमंत्री के इन फैसलों का खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है और देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह हिल गई है।
मोदी सरकार के साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था की सुस्ती सरकार का कमजोर पक्ष बनकर उभरी है। मोदी सरकार द्वारा लागू की गई जीएसटी से छोटे व्यवसायियों और व्यापारियों की कमर टूट गई थी। इससे पूर्व हुई नोटबंदी की वजह से व्यापारी वर्ग के साथ-साथ आम जनता को भी काफी परेशानियां उठानी पड़ी थी। भाजपा के कई नेताओं ने आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार की विफलता को लेकर बयान दिए थे। भाजपा की समर्थक आरएसएस से जुड़े कई संगठन भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से खुश नहीं है। ऐसे में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी इस मौके को भुनाने में लगे हैं और लगातार इन मुद्दों को आधार बनाकर मोदी सरकार पर हमले करते रहे हैं। कांग्रेस राष्ट्रीय मुद्दों को आधार बनाकर गुजरात की सियासत साध रही है जिसे पूरा देश 2019 लोकसभा चुनावों के आगाज के तौर पर देख रहा है।
जमीनी मुद्दों की सियासत
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी अपने गुजरात दौरों पर लगातार जमीनी मुद्दों को आधार बना रहे हैं। युवाओं की बेरोजगारी, किसानों की बदहाली और महँगाई जैसे मुद्दे इनमें शामिल हैं। अपने गुजरात दौरों पर राहुल गाँधी युवाओं के बीच जाकर उनसे गुफ्तगू कर रहे हैं और सत्ताधारी भाजपा सरकार के शासनकाल में रोजगार सृजन ना होने का आरोप लगा रहे हैं। अपने मध्य गुजरात दौरे के दौरान राहुल गाँधी सूखा प्रभावित जिलों में भी गए थे और किसानों से बात की थी। राहुल गाँधी ने क्षेत्र की खस्ताहाल सिंचाई व्यवस्था के लिए सत्ताधारी भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो किसानों को बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। कांग्रेस समाज के हर तबके को साध रही है और किसानों का समर्थन पाकर वह गुजरात में सियासी कायापलट की जुगत में लगी है।
राहुल गाँधी का बदला अंदाज
गुजरात विधानसभा चुनाव में सबसे अचंभित करने वाली बात है कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का बदला अंदाज। राहुल सियासी दांव-पेंच में धीरे-धीरे माहिर हो रहे हैं और गुजरात में उनके चुनावी दौरों पर यह देखने को मिल रहा है। बात जीएसटी को ‘गब्बर सिंह टैक्स’ बताने की हो या ‘विकास पागल हो गया’ कैम्पेन की, हर जगह राहुल गाँधी छाए हुए हैं। राहुल गाँधी के रवैये से कई बार उनकी सुरक्षा में चल रहे पुलिसकर्मी भी भौचक्के हो जा रहे हैं। राहुल गाँधी की भरुच रैली के दौरान एक लड़की उनके पास आई तो राहुल ने उसे ऊपर गाड़ी में आने दिया। राहुल ने उसका दिया बुके भी लिया और उसके संग सेल्फी भी खिंचाई। राहुल गाँधी राफेल विमान सौदा, शीतकालीन सत्र में देरी जैसे वाजिब मुद्दे भी गुजरात में उठा रहे हैं और भाजपा को बैकफुट पर भेजने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
गहलोत को सियासी मार्गदर्शक बनाना
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को कांग्रेस का चाणक्य कहा जाता है पर गुजरात विधानसभा चुनावों में गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत यह भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। 80 के दशक से गाँधी परिवार के भरोसेमंद रहे अशोक गहलोत को केंद्र की राजनीति में लाने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को जाता है। अशोक गहलोत इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और पी वी नरसिम्हा राव की सरकार में केंद्रीय मंत्री के पद पर रहे। गाँधी परिवार से नजदीकियों के चलते अशोक गहलोत 2 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री भी बने। अशोक गहलोत अब गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का मार्गदर्शन करते नजर आ रहे हैं। सियासत के दिग्गज खिलाड़ी अशोक गहलोत के पास तकरीबन 4 दशकों का सियासी तजुर्बा है और गुजरात में इसकी बानगी देखने को मिल रही है।
गुजरात में शंकर सिंह वाघेला की बगावत की वजह से राज्यसभा चुनावों के वक्त कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल की दावेदारी खतरे में पड़ गई थी। तमाम दुश्वारियों के बावजूद भी कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल भाजपा का सियासी चक्रव्यूह भेदने में सफल रहे। अहमद पटेल की जीत में अशोक गहलोत की बड़ी भूमिका रही थी। कांग्रेस अहमद पटेल को इस बार गुजरात विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान में नजर नहीं आए हैं पर गुजरात की सियासत में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। शंकर सिंह वाघेला की बगावत के बाद गुजरात कांग्रेस में शक्ति सिंह गोहिल, भरत सिंह सोलंकी और अर्जुन मोडवाड़िया जैसे नेता बचे हैं। ये सभी क्षेत्रीय नेता हैं और इनमें से किसी का कद अकेले दम पर पार्टी की जिम्मेदारी उठा लेने लायक नहीं है। ऐसे में अशोक गहलोत गुजरात में कांग्रेस और राहुल गाँधी का मार्गदर्शन कर रहे हैं।