हिमाचल प्रदेश में बीते 9 नवंबर को शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए। हिमाचल प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने सत्ताधारी दल कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने की कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा के धुआँधार प्रचार अभियानों और चुनावी रैलियों का असर हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों पर स्पष्ट रूप से देखा गया। अब कमोबेश यही रणनीति कांग्रेस गुजरात में अपना रही है। गुजरात में सत्ताधारी दल भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस जातीय आन्दोलन कर रहे 3 युवा आन्दोलनकारियों हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी को अपने साथ मिलाने की कोशिश कर रही है। अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और हार्दिक, जिग्नेश ने भी पिछले दरवाजे से कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही है। अब हर कोई यह जानने को बेताब है कि क्या कांग्रेस भाजपा के अभेद्य दुर्ग गुजरात को भेद पाएगी?
लगातार घट रही है भाजपा की लोकप्रियता
पिछले 6 महीनों से गुजरात में सत्ताधारी दल भाजपा की लोकप्रियता में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है। अगस्त में हुए गुजरात राज्यसभा चुनावों में अहमद पटेल को मिली जीत ने बगावत का दंश झेल रही गुजरात कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया था और पार्टी को पुनर्गठित करने का प्रयास किया था। कांग्रेस उसी वक्त से विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुट गई थी और नतीजन आज अरसों बाद गुजरात में भाजपा को कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। गुजरात में भाजपा की लोकप्रियता घटने के प्रमुख कारणों में से एक है नेतृत्व की कमी। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की तरह गुजरात भाजपा भी किसी लोकप्रिय और सशक्त चेहरे की कमी से जूझ रही है। 6 महीने पहले कराए गए सर्वे के नतीजों और आज के सर्वे के नतीजों में यह स्पष्ट दिखाई देता है कि कांग्रेस धीरे-धीरे ही सही पर भाजपा के करीब पहुँचती जा रही है।
एबीपी न्यूज-लोकनीति-सीएसडीएस के द्वारा कराए गए ताजा सर्वे के नतीजे भाजपा के पक्ष में हैं और राज्य में भाजपा की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं। सर्वे के नतीजों में भाजपा को 113-121 सीटें मिलने का दावा किया गया है वहीं कांग्रेस को 58-64 सीटें मिलने की उम्मीद है। यह नतीजे इसी एजेंसी द्वारा अगस्त में गुजरात राज्यसभा चुनावों के वक्त कराए गए सर्वे के नतीजों से बिलकुल अलग है। उस वक्त में भाजपा को 144-152 सीटें मिलनी की बात कही गई थी वहीं कांग्रेस को 26-32 सीटों पर सिमटते दिखाया गया था। मौजूदा सर्वे में भाजपा को 47 फीसदी मत मिलने की बात कही गई है वहीं कांग्रेस को 41 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है। पिछले चुनावों में भाजपा-कांग्रेस के बीच 11 फीसदी रहा मतान्तर अब घटकर 6 फीसदी पर आ चुका है।
कांग्रेस के लिए संजीवनी बनी अहमद पटेल की जीत
अगस्त महीने में हुए गुजरात राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार और पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल ने जीत ने बगावत की आंच में झुलस रही गुजरात कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया था। इसके बाद से ही कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अपनी तैयारियों को असली जामा पहनाना शुरू किया था। सितम्बर महीने में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने अहमदाबाद में कार्यकर्ता संवाद कार्यक्रम से कांग्रेस के चुनावी अभियान की शुरुआत की थी। उसके बाद राहुल गाँधी लगातार गुजरात में साक्रिय रहे और कांग्रेस के लिए सियासी जमीन तैयार की। राहुल गाँधी के आक्रामक तेवरों और कार्यकर्ताओं की मेहनत से गुजरात कांग्रेस आज भाजपा के मुकाबले खड़ी हो गई है।
पाटीदारों ने छोड़ा भाजपा का साथ
2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर 9 फीसदी था। भाजपा को 47 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिले थे। 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का बड़ा आधार पाटीदारों का समर्थन था। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने लगातार चौथी बार गुजरात के सियासी दंगल में फतह हासिल की थी। पर मौजूदा परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। आज गुजरात भाजपा के पास नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय चेहरा नहीं है। पाटीदारों के कटने से भाजपा का परंपरागत वोटबैंक भी उससे खिसक चुका है। ऐसे में गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा की नैया मँझधार में अटकी नजर आ रही है। पाटीदारों को मनाने की भाजपा की हर कोशिश नाकाम होती नजर आ रही है।
अगर 2012 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो कड़वा बिरादरी के 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। लेउवा बिरादरी के 63 फीसदी वोटरों ने भाजपा को चुना था। 80 के दशक से ही पाटीदार समाज के 80 फीसदी वोटर भाजपा के पक्ष में मतदान करते आए हैं। इसी वजह से पाटीदार समाज को भाजपा का पारम्परिक वोटबैंक कहा जाता रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को 50 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को तकरीबन 40 फीसदी मत मिले थे। पाटीदार समाज के वोटरों के मत प्रतिशत 20 है। इस लिहाजन अगर 80 फीसदी पाटीदार भी कांग्रेस के साथ हो जाए और मुस्लिम दलित एक होकर कांग्रेस का साथ दे दें तो भाजपा के लिए गुजरात बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। भाजपा को गुजरात की सत्ता से बेदखल करने के लिए पाटीदारों ने नया नारा दिया है :
“सरदार ने भगाया गोरों को, हम भगाएंगे चोरों को”
घटता जा रहा है भाजपा-कांग्रेस का मतान्तर
गुजरात भाजपा के सामने मुश्किलों का अम्बार लगा हुआ है। भाजपा के सत्ता तक पहुँचने की राह में कई मुश्किलें खड़ी नजर आ रही हैं। इनमें सबसे अहम है पाटीदारों का भाजपा के खिलाफ जाना। 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का बड़ा कारण पाटीदारों का समर्थन था। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर महज 9 फीसदी था। भाजपा को 47 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिले थे। पर मौजूदा परिस्थितियां बिल्कुल उलट हैं। पाटीदारों के कटने से भाजपा का परम्परागत वोटबैंक भी उससे खिसक चुका है। ऐसे में गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा अधर में लटकी नजर आ रही है। गुजरात का ‘किंग मेकर’ होने का दावा करने वाले ओबीसी वर्ग ने कांग्रेस के साथ आने की बात कर भाजपा नेतृत्व के माथे पर शिकन जरूर ला दी है।
गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर ओबीसी वर्ग का स्पष्ट प्रभाव है। ओबीसी आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे अल्पेश ठाकोर ने ओबीसी वर्ग के अंतर्गत आने वाली गुजरात की 146 जातियों को एकजुट किया है। कभी शराबबंदी के लिए ‘जनता रेड’ डालने वाले अल्पेश ठाकोर आज सियासत के दांव-पेंच खेल रहे हैं। गुजरात की आबादी का 54 फीसदी हिस्सा ओबीसी वर्ग से आता है। अल्पेश ठाकोर को संगठन में काम करने का लम्बा अनुभव है और उनके पिता खोड़ाजी ठाकोर भाजपा संगठन के लिए दशकों काम कर चुके हैं। खोड़ाजी ठाकोर ने नरेंद्र मोदी, शंकर सिंह वाघेला, आंनदीबेन पटेल के साथ संगठन के दिनों में काम किया है। ऐसे में ओबीसी वर्ग के गुजरात का ‘किंग मेकर’ होने के उनके दावों में थोड़ी सच्चाई तो है पर यह जमीनी रूप से कितनी कारगर होगी, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
भाजपा के मारे, कर रहे कांग्रेस के वारे-न्यारे
एक ओर जहाँ भाजपा गुजरात में जातीय आन्दोलन से मुश्किल में पड़ती दिख रही है वहीं कांग्रेस के वारे-न्यारे हो रहे हैं। कांग्रेस जेडीयू (वासवा गुट), पाटीदार, ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदाय के साथ मिलकर महागठबंधन करने की फिराक में है। गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर पाटीदारों का प्रभाव है। तकरीबन 70 सीटों पर ही ओबीसी समुदाय का प्रभाव है। मुस्लिम, दलित और आदिवासी समाज तकरीबन 30 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं। ऐसे में यह सियासी गठजोड़ कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगा और उसकी सत्ता तक पहुँचने की राह को आसान करेगा। पर इस महागठबंधन का होना इतना आसान नहीं दिख रहा। ओबीसी वर्ग के नेता अल्पेश ठाकोर कांग्रेस के साथ आ चुके हैं और समर्थन देने की औपचारिक घोषणा भी कर चुके हैं। ऐसे में ओबीसी समुदाय और पाटीदार एक वक्त में एक खेमे में आ जाए यह असंभव सा लगता है।
अहमद पटेल की जीत में अहम भूमिका निभाने के बाद छोटुभाई वासवा का कद गुजरात में बढ़ा है और वह सीटों के बँटवारे को लेकर कांग्रेस नेताओं से बातचीत में जुटे हुए हैं। गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत और पार्टी प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी महागठबंधन को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं और उम्मीद है कि राहुल गाँधी के साथ मिलकर चुनाव पूर्व इसकी घोषणा कर सकते हैं।ओबीसी समुदाय का समर्थन हासिल करने के बाद कांग्रेस की नजर अब पाटीदारों की ओर टिकी हुई है। पाटीदारों का कांग्रेस को समर्थन भाजपा के लिए और मुश्किलें खड़ी कर सकती है। जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस को परोक्ष रूप से समर्थन देने की बात कही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस का यह महत्वाकांक्षी महागठबंधन भाजपा के अभेद्य दुर्ग गुजरात की दीवार गिराने के लिए पर्याप्त साबित होगा?
चुनौती है सत्ता विरोधी लहर
पिछले 2 सालों से गुजरात में सरकार विरोधी लहर दिखाई दे रही है। समाज का हर वर्ग किसी ना किसी मुद्दे को आधार बनाकर सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर चुका है। भाजपा पिछले 2 दशकों से गुजरात की सत्ता पर काबिज है। इतने लम्बे समय से सत्तासीन रहने की वजह से गुजरात के लोगों में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ी है। हालाँकि भाजपा के शासनकाल में गुजरात ने बहुत तरक्की की है और वह आज देश के समृद्ध राज्यों की सूची में अग्रणी स्थान पर काबिज है। 2014 लोकसभा चुनावों के वक्त ऐसा ही कुछ हुआ था जब पूरे देश में सत्ता विरोधी लहर चल रही थी। तब भाजपा प्रचण्ड बहुमत से सत्ता में आई थी। परिवर्तन समय की मांग है और शायद अब गुजरात की जनता भी परिवर्तन चाहती है।
राहुल ने खेला था सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड
नवरात्रि में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का सौराष्ट्र दौरा महज एक इत्तेफाक नहीं वरन सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था। राहुल गाँधी ने अपनी सौराष्ट्र यात्रा के दौरान कई जगहों पर मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना की और माथे पर त्रिपुण्ड और तिलक लगाए नजर आए। उन्होंने जनता को सम्बोधित करने के दौरान भी ऐसी वेशभूषा बनाए रखी जो उनके हिंदूवादी होने की गवाही दे। राहुल गाँधी ने सौराष्ट्र दौरे के दौरान माँ दुर्गा की पूजा की, द्वारकाधीश श्रीकृष्ण की अर्चना की। कांग्रेस की छवि शुरू से ही मुस्लिम हितैषी दल की रही है और इस वजह से उसे हिन्दू जनसंख्या बाहुल्य राज्यों में हाशिए पर रहना पड़ा है। हालाँकि इस छवि का लाभ भी कांग्रेस को बराबर मिलता रहा है और मुस्लिम समाज हमेशा कांग्रेस का साथ देता आया है।
भाजपा ने 90 के दौर में हिंदुत्व के मुद्दे के आधार बनाकर देश की राजनीति की दिशा बदली थी। राहुल गाँधी ने गुजरात के चुनावी अभियान के आगाज से ही यह स्पष्ट कर दिया था कि अब कांग्रेस भी गुजरात के हिन्दुओं को साधने के लिए भाजपा का परंपरागत हिंदुत्व कार्ड खेलेगी। अपनी दौरों के दौरान राहुल गाँधी ने हिंदुत्ववादी राजनीति के इर्द-गिर्द ही ताना-बाना बुना। राहुल गाँधी ने अपनी सौराष्ट्र यात्रा की शुरुआत द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना से की थी। पूर्व निर्धारित रणनीति के तहत राहुल गाँधी अपने गुजरात दौरे के दौरान हर वक्त हिन्दू नेताओं से ही घिरे नजर आए थे। उनके गुजरात पहुँचने से पहले ही यह तय हो गया था कि कोई भी मुस्लिम नेता उनके आस-पास नहीं दिखेगा। कांग्रेस ने गुजरात में सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेला था जिसकी काट ढूँढने के लिए भाजपा को योगी को गुजरात भेजना पड़ा।
योगी की आड़ में क्षेत्रवाद व हिंदुत्व कार्ड
देशभर में योगी आदित्यनाथ की छवि कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की है। गुजरात एक हिन्दू बाहुल्य राज्य है और राज्य की 89 फीसदी आबादी हिन्दू है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी अपने गुजरात दौरों पर सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव खेल रहे हैं और कांग्रेस की हिंदुत्व विरोधी छवि बदलने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा ने हिंदुत्व छवि के फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ को मैदान में उतारकर कांग्रेस की काट खोज ली है। उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के बाद 6 महीनों के भीतर योगी आदित्यनाथ ने अवैध बूचड़खानों पर रोक, गौरक्षा कानून समेत कई ऐसे फैसले लिए हैं जिससे उनकी कट्टा हिंदुत्ववादी छवि में इजाफा हुआ है। भाजपा गुजरात में उनकी इसी छवि को भुनाना चाहती है।
गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनाव प्रचार अभियान में शामिल कर रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है सूबे में उत्तर प्रदेश वासियों की आबादी। गुजरात के दो प्रमुख औद्योगिक नगरों अहमदाबाद और सूरत में बड़ी संख्या में मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग रहते हैं। मजदूर वर्ग में बिहार निवासियों की भी बड़ी आबादी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वांचल की वाराणसी सीट से सांसद हैं। वह मध्य-पूर्व उत्तर प्रदेश के साथ बिहार के सीमावर्ती जिलों में भी प्रभाव रखते हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद दोनों राज्यों के सम्बन्ध भी सुधरे हैं। ऐसे में भाजपा क्षेत्रवाद के आधार पर वोटरों को साधने के लिए उत्तर प्रदेश के नेताओं को चुनाव प्रचार में उतार रही है।
भाजपा के पास नहीं है लोकप्रिय चेहरा
पिछले 3 सालों में गुजरात को 3 मुख्यमंत्री मिले हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आंनदीबेन पटेल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी सँभाली थी और उनके बाद विजय रुपाणी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। नरेंद्र मोदी के बाद अमित शाह ही ऐसे नेता थे जो गुजरात भाजपा में दमखम रखते थे। राजनाथ सिंह ने गृह मंत्री बनने पर भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष चुने गए। गुजरात को आनंदीबेन पटेल के हाथों में सौंपकर भाजपा ने महिला सशक्तीकरण के नारे को बुलंद करने की कोशिश की। आनंदीबेन पटेल गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। भाजपा ने उनको कमान सौंपकर अपने परंपरागत वोटर पाटीदार समाज को साधने का प्रयास भी किया। आंनदीबेन पटेल बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल में लोकप्रिय नहीं रही थी। सरकार की गिरती लोकप्रियता के मद्देनजर विजय रुपाणी को गुजरात की कमान सौंपी गई।
दरअसल नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद गुजरात भाजपा के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था जो पार्टी को अपने कन्धों पर आगे ले जा सके। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में किसी भी अन्य भाजपा नेता को इतनी लोकप्रियता ही नहीं मिली कि वह पुरे सूबे का प्रतिनिधित्व कर सके। गुजरात के नाम पर लोगों के जेहन में सिर्फ नरेंद्र मोदी का नाम आता था। अमित शाह के राज्यसभा जाने के बाद अब गुजरात भाजपा की स्थिति भी गुजरात कांग्रेस जैसी हो गई है। गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने का फैसला भाजपा को बैकफुट पर ले गया था। विजय रुपाणी भी अपने कार्यकाल में जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके हैं। ऐसे में भाजपा को नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चेहरे पर वोट तो मिल जाएंगे पर सवाल यह है कि क्या राज्य को फिर एक बार नरेंद्र मोदी जैसा करिश्माई नेतृत्व मिल सकेगा?
अस्तित्व बनाम बादशाहत की जंग
गुजरात विधानसभा चुनाव अब भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका है। एक ओर जहाँ जातीय आन्दोलनों और कांग्रेस के आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान से भाजपा गुजरात में बैकफुट पर है वहीं जीएसटी सुधार, पाटीदार आरक्षण के लिए आयोग गठन जैसे कदमों को उठाकर सत्ताधारी भाजपा सरकार ने बैकअप प्लान भी तैयार कर लिया है। गुजरात विधानसभा चुनाव आगामी लोकसभा चुनावों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे है। जातीय समीकरणों को साधकर कांग्रेस भाजपा को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है। भाजपा के लिए गुजरात विधानसभा चुनाव प्रतिष्ठा और बादशाहत की लड़ाई है वहीं कांग्रेस के लिए यह वजूद बचाने की लड़ाई है। गुजरात के नतीजे आने वाले समय में देश के राजनीति की दिशा तय करेंगे।