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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गए। चुनाव आयोग ने पहले चरण में शुरूआती तौर पर 67 फीसदी मतदान होने का अनुमान लगाया है। यह आंकड़ें 2012 में हुए 72 फीसदी मतदान से 5 फीसदी कम है। हालाँकि आखिरी आंकड़ों में बदलाव देखने को मिल सकता है। पहले चरण में सौराष्ट्र, कच्छ और दक्षिण गुजरात के 19 जिलों की 89 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए। पहले चरण में जिन दिग्गजों की किस्मत ईवीएम में बंद हो गई उनमें गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष जीतू वाघाणी, दिग्गज कांग्रेसी नेता शक्ति सिंह गोहिल के नाम शामिल हैं। पहले चरण में जिन क्षेत्रों में मतदान हुआ है वह गुजरात का पाटीदार बेल्ट कहा जाता है। हालाँकि इसके बावजूद भी सत्ता में बदलाव के आसार कम नजर आ रहे हैं।

    सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में राज्य के किंगमेकर कहे जाने पाटीदार समाज के मतदाताओं की बड़ी आबादी है। सौराष्ट्र में लेउवा समुदाय के पाटीदारों की बड़ी आबादी है। गुजरात की सत्ताधारी भाजपा के सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत पाटीदार आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे हार्दिक पटेल कड़वा पटेल हैं। उन्होंने लेउवा पटेलों से भी भाजपा के खिलाफ वोट देने की अपील की थी। हालाँकि लेउवा समाज को भाजपा से अलग कर पाना बड़ा मुश्किल है। गुजरात के सियासी इतिहास में सबसे बड़े पाटीदार नेता रहे केशुभाई पटेल भी 2012 में पाटीदारों को भाजपा से अलग नहीं कर पाए थे जबकि पाटीदारों को भाजपा की ओर लाने में सबसे बड़ा योगदान उन्हीं का रहा था। केशुभाई पटेल अब दोबारा भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में पाटीदार बेल्ट में सियासी कायापलट की आस लगाए बैठी कांग्रेस को झटका लग सकता है।

    2012 के विधानसभा चुनावों में सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के 19 जिलों की 89 विधानसभा सीटों में से 67 सीटों पर बाजी भाजपा के हाथ लगी थी। कांग्रेस के हाथ महज 16 सीटें आई थी। एक सीट एनसीपी और एक सीट जेडीयू के हाथ लगी थी। केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली थी वहीं अन्य 2 सीटें निर्दलीयों के हाथ लगी थी। गुजरात का सबसे बड़ा पाटीदार नेता होने के बावजूद भी केशुभाई पटेल पाटीदारों को अपनी ओर मिलाने में कामयाब नहीं हो सके थे। क्षेत्र की शहरी सीटों पर भाजपा का डंका बजा था वहीं ग्रामीण और आदिवासी बाहुल्य सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी। क्षेत्र के लेउवा पाटीदारों ने बीते दो दशकों से कभी भी भाजपा का साथ नहीं छोड़ा हैं। ऐसे में हार्दिक पटेल का कांग्रेस को समर्थन कितना कारगर साबित होता है, इस ओर सबकी निगाहें टिकी हैं।

    पहले चरण के चुनाव से पहले भाजपा ने पाटीदार समाज को साधने की हर मुमकिन कोशिश की। भाजपा इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि पाटीदार समाज गुजरात की सियासत में कितनी अहमियत रखता है। पाटीदार समाज की सर्वाधिक आबादी सौराष्ट्र क्षेत्र में निवास करती है जिस वजह से सौराष्ट्र क्षेत्र को गुजरात का पाटीदार बेल्ट भी कहा जाता है। सौराष्ट्र क्षेत्र में कुल 54 विधानसभा सीटें हैं। 2012 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सौराष्ट्र क्षेत्र की 38 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। हालाँकि पाटीदार आन्दोलन के बाद हुए पंचायत चुनावों में भाजपा को सौराष्ट्र की 11 में से 8 सीटों पर हार मिली थी। पाटीदारों में व्याप्त इस असंतोष से निपटने के लिए भाजपा ने नर्मदा के आशीर्वाद का भी सहारा लिया। सौराष्ट्र के सूखा प्रभावित जिलों की नहरों में सरदार सरोवर बाँध से पानी छोड़ा गया और किसानों को मनाने की पूरी कोशिश की गई।

    गुजरात की सत्ताधारी भाजपा सरकार सितम्बर महीने से सरदार सरोवर बाँध में एकत्र नर्मदा के अतिरिक्त पानी का उपयोग सौराष्ट्र के 11 सूखा प्रभावित जिलों की दशा सुधारने के लिए कर रही है। सरदार सरोवर बाँध के पानी से 115 छोटे बाँधों को भरा जाने का लक्ष्य है। इसके लिए पहले चरण का काम पूरा हो चुका है और 10 बाँधों में नर्मदा का पानी भरा जा चुका है। विधानसभा चुनावों से पहले पानी मिलने से खेतों में लगी धान की फसल लहलहा उठी थी और क्षेत्र के किसान इससे काफी खुश खुश हुए थे। इस क्षेत्र में छोटे किसानों की आबादी अधिक है जो लेउवा पाटीदार हैं। ये किसान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से काफी खुश हैं और ऐसे में इनसे भाजपा के खिलाफ जाने की अपेक्षा करना निरा मूर्खता होगी। सौराष्ट्र के किसान अब अपनी फसल काटने में व्यस्त हैं वहीं भाजपा सियासी फसल काट रही है।

    विपक्षी दलों द्वारा सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाने के फैसले का काफी विरोध हुआ था। भाजपा ने इसे जनहितकारी बताया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं इसकी वकालत की थी। बीते सितम्बर महीने में अपने जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बाँध देश को समर्पित किया था। इस अवसर पर उन्होंने कहा था कि यह बाँध गुजरात की काया पलट कर रख देगा। उनकी यह बातें सच साबित होती नजर आ रही हैं। पेयजल की किल्लत झेलने वाले जामनगर, राजकोट और मोरबी के जलाशयों में नर्मदा का पानी पहुँच चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले से स्थानीय जनता बहुत प्रसन्न नजर आ रही है। चुनावों से पहले इस परियोजना को मूर्त रूप देकर पीएम मोदी ने सौराष्ट्र में कांग्रेस की दावेदारी पहले ही कमजोर कर दी थी।

    सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाने का जितना फायदा पेयजल की समस्या से जूझ रहे स्थानीय नागरिकों को हुआ है उससे कहीं ज्यादा सूखे की मार झेल रहे किसानों को हुआ है। इस क्षेत्र में साधनहीन छोटे किसानों की बड़ी तादात है जो फसलों की सिंचाई के लिए पूरी तरह से नहरों पर आश्रित हैं। नहरों में पानी आने से उनके चेहरे खिल उठे हैं और उनका झुकाव भाजपा की तरफ हो गया है। सौराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक राज वसावड़ा के अनुसार, “इस क्षेत्र में छोटे किसानों की संख्या अधिक है, जिसमें ज्यादातर पाटीदार हैं। आन्दोलन की शुरुआत यहाँ से हुई थी, लेकिन गांव-गांव व खेत-खेत तक पानी पहुँच जाने से किसान बहुत खुश हैं। नरेंद्र भाई मोदी में उनका भरोसा और पक्का व मजबूत हुआ है, जिसका लाभ भाजपा को चुनाव में हो सकता है। मोदी की अपील से लोगों का मलाल खत्म हो सकता है।”

    ऐन मौके पर भाजपा सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम का असर गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों पर पड़ सकता है। पाटीदार बाहुल्य सौराष्ट्र में माहौल धीरे-धीरे भाजपा के पक्ष में बनगया था। 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सौराष्ट्र की 54 विधानसभा सीटों में से 38 सीटों पर जीत हासिल की थी। उम्मीद की जा रही है कि यह आँकड़ा इस बार 40+ का होगा। परियोजना की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, “एक समय कच्छ के लोगों को पीने का पानी मिलना भी मुश्किल हो रहा था, लेकिन अब नर्मदा परियोजना की वजह से उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी मिल सकेगा। देश के किसी भी हिस्से में अगर किसान को पानी मिल जाये तो वह बहुत कुछ करके दिखा सकता है।” क्षेत्रीय नेताओं का कहना था कि सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाकर नरेंद्र मोदी ने सौराष्ट्र क्षेत्र को ‘पानीदार’ बना दिया है और भाजपा को इसका फायदा मिलना तय है।

    गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की अहम सीढ़ी माना जाने वाला पाटीदार समाज 90 के दशक में भाजपा की ओर आना शुरू हुआ। इससे पूर्व पाटीदार कांग्रेस के समर्थक थे। पाटीदार समाज को भाजपा की तरफ मिलाने में वरिष्ठ भाजपा नेता और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने अहम भूमिका निभाई थी। 80 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के “गरीबी हटाओ” के नारे और गुजरात के जातिगत समीकरणों को को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने खाम गठजोड़ (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी, मुस्लिम) पर अपना ध्यान केन्द्रित कर लिया जिससे पाटीदार समाज नाराज हो गया। केशुभाई पटेल ने इन नाराज पाटीदारों को भाजपा की तरफ मिलाया। इसके बाद से पाटीदार समाज भाजपा का कोर वोटबैंक बन गया था और भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा था।

    गुजरात में दशकों से भाजपा का कोर वोटबैंक रहा पाटीदार समाज भाजपा से नाराज चल रहा है। भाजपा आरक्षण की मांग कर रहे पाटीदारों को मनाने में जुटी है पर पिछले 26 महीनों में उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी है। गुजरात में पाटीदार समाज आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली माना जाता है। गुजरात विधानसभा में करीब 40 विधायक पाटीदार समाज से हैं। सियासी रसूख की वजह से ही पाटीदारों को गुजरात का “किंग मेकर” भी कहा जाता है। 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का बड़ा आधार पाटीदारों का समर्थन था। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर 9 फीसदी था। भाजपा को 47 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिले थे। गुजरात की सियासत में अहम भूमिका निभाने वाले पाटीदार समाज के कटने से भाजपा की राह सियासी मुश्किल हो गई थी।

    अगर 2012 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो कड़वा बिरादरी के 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। लेउवा बिरादरी के 63 फीसदी वोटरों ने भाजपा को चुना था। 90 के दशक से ही पाटीदार समाज के 80 फीसदी वोटर भाजपा के पक्ष में मतदान करते आए हैं। इसी वजह से पाटीदार समाज को भाजपा का पारम्परिक वोटबैंक कहा जाता है। गुजरात के मतदाता वर्ग में पाटीदार समाज के मतदाताओं का मत प्रतिशत 13 है। पाटीदार मतदाता गुजरात की 66 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं। पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल के कई साथी भाजपा में आ चुके हैं पर हार्दिक को युवाओं का सहयोग मिल रहा है। पाटीदार बेल्ट सौराष्ट्र में हार्दिक भाजपा का सियासी गणित बिगाड़ने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। हालाँकि पाटीदार आन्दोलन में उनके साथ रहे कई नेता आज भाजपा के समर्थन में खड़े हैं। ऐसे में भाजपा को रोक पाना हार्दिक के लिए टेढ़ी खीर नजर आ रही है।

    सरदार सरोवर बाँध को देश को समर्पित करते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “देश में कई विरोधी ताकतें ऐसी थी जो नहीं चाहती थी कि यह बाँध बने लेकिन लोगों के सहयोग की वजह से ही यह संभव हो पाया है। यह इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट चमत्कार है। जितना विरोध इस प्रोजेक्ट का हुआ है उतना किसी और प्रोजेक्ट का नहीं हुआ। लेकिन आज यह नए भारत के निर्माण की मजबूत मिसाल बनकर आपके सामने खड़ा है।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सम्बोधन के दौरान सरदार पटेल और बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर को तो याद किया पर उन्होंने बाँध की आधारशिला रखने वाले पण्डित जवाहर लाल नेहरू का कहीं भी जिक्र नहीं किया। इसके बाद से ही उनके सम्बोधन को राजनीति से जोड़कर देखा जाने लगा। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि भाजपा इसका श्रेय अपने राजनीतिक फायदे के लिए ले रही है।

    इस बाँध की वजह से सबसे ज्यादा फायदा गुजरात के लोगों को ही होगा। ऐसे में भाजपा ने इसे प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया और कांग्रेस के खिलाफ प्रचारित किया। भाजपा ने सौराष्ट्र क्षेत्र में सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत पाटीदारों को मनाने के लिए नर्मदा का ‘पानीदार’ कार्ड चल दिया है। अब यह देखना है कि बाजी किसके हाथ लगती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाँध को देश को समर्पित करने के दौरान दिए गए सम्बोधन में इशारों-इशारों में ही कांग्रेस को इस प्रोजेक्ट में हुई देरी के लिए जिम्मेदार ठहराया था और कांग्रेस पर कई बार तंज कसे थे। एक बात तो तय है कि आगामी गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए पाटीदार बेल्ट सौराष्ट्र में भाजपा को नर्मदा का आशीर्वाद मिल चुका है पर यह कितना असरकारक साबित होगा यह 18 दिसंबर को ही पता चलेगा।