गुजरात विधानसभा चुनावों में बहुत कम वक्त बचा है। जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है सियासी सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं। चुनाव आयोग ने अभी तक गुजरात विधानसभा को लेकर कोई औपचारिक घोषणा तो नहीं की है लेकिन सभी दल अभी से अपनी सियासी जमीन बनाने में जुट गए हैं। कांग्रेस दो दशक के वनवास के बाद गुजरात में सत्ता वापसी के लिए कड़ी मेहनत कर रही है वहीं कई क्षेत्रीय पार्टियां भी अपने हाथ-पाँव मार रही हैं। अगर सभी क्षेत्रीय दल स्वतंत्र रुप से चुनाव लड़ते हैं तो वापसी की आस लिए कांग्रेस की उम्मीदों को बड़ा झटका लग सकता है। परोक्ष रूप से इन पार्टियों के चुनाव लड़ने का सीधा फायदा भाजपा को मिलना तय है।
गुजरात में पिछले 19 सालों से सत्ता पर काबिज भाजपा का परंपरागत वोटबैंक उससे कट गया है। हार्दिक पटेल के नेतृत्व में आरक्षण को लेकर हुए पाटीदार आन्दोलन के चलते भाजपा का जनाधार घटा है। वहीं गुजरात कांग्रेस राष्ट्रपति चुनावों के बाद मची बगावत के झटकों से अब तक उबर नहीं पाई है। शंकर सिंह वाघेला की बगावत के बाद गुजरात कांग्रेस नेतृत्वविहीन हो गई है। गुजरात में एनसीपी के साथ कांग्रेस का गठबंधन टूट चुका है और एनसीपी अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। आम आदमी पार्टी भी गुजरात के चुनावी दंगल में उतरने की घोषण कर चुकी है। गुजरात के विधानसभा चुनावों में बसपा भी अपनी किस्मत आजमा रही है और केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी भी ताल ठोंक रही है। ऐसे में भाजपा को इन छोटे दलों का फायदा मिलना तय है क्योंकि भाजपा से नाराज चल रहे मतदाता इन पार्टियों में बँटकर रह जाएंगे।
तीसरा मोर्चा बनाने में जुटे वाघेला
राष्ट्रपति चुनाव के दौरान गुजरात कांग्रेस के कई विधायकों के क्रॉस वोटिंग करने की बात सामने आई थी। कांग्रेस आलाकमान ने शंकर सिंह वाघेला को क्रॉस वोटिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया था। आरोप लगने से नाराज शंकर सिंह वाघेला ने बगावत छेड़ दी थी और गुजरात कांग्रेस के कई विधायक उनके समर्थन में खड़े हो गए थे। इसके बाद गुजरात कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे का दौर शुरू हुआ जो राज्यसभा चुनावों तक चला। कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल बड़ी ही मुश्किल से राज्यसभा में अपनी सीट बचाने में सफल रहे थे। शंकर सिंह वाघेला के जाने के बाद गुजरात कांग्रेस नेतृत्वविहीन हो गई और आज भी उसके पास भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने के लिए कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है।
पहले यह माना जा रहा था कि शंकर सिंह वाघेला भाजपा में वापस लौटेंगे पर उन्होंने यह कहकर इन अटकलों पर विराम लगा दिया कि गुजरात की जनता भाजपा और कांग्रेस से ऊब चुकी है। अब उसे किसी तीसरे मोर्चे की तलाश है। माना जा रहा है कि शंकर सिंह वाघेला गुजरात परिवर्तन पार्टी, एनसीपी, बसपा, शिवसेना और आप जैसे दलों को मिलकर तीसरे मोर्चे का आह्वान कर सकते हैं। शंकर सिंह वाघेला गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और गुजरात में उनकी लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और फिर अमित शाह के दिल्ली चले जाने से भाजपा की पकड़ गुजरात में कमजोर हुई है। बतौर मुख्यमंत्री आंनदीबेन पटेल और विजय रुपाणी कोई कास लोकप्रिय नहीं रहे हैं। ऐसे में मुमकिन है अन्य सभी क्षेत्रीय दल शंकर सिंह वाघेला के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे का गठन कर लें।