गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में महज 1 दिन का समय शेष रह गया है। पहले चरण के चुनाव के लिए प्रचार थम चुके हैं। भाजपा, कांग्रेस समेत सभी सियासी दलों ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। मतदाताओं को रिझाने के लिए सभी सियासी दल अपनी-अपनी बाजी चल चुके हैं। गुजरात की सियासत का मिजाज इस बार कुछ अलग ही नजर आ रहा है। कांग्रेस के जातीय कार्ड के दांव के आगे सत्ताधारी दल भाजपा पस्त नजर आ रही है। पाटीदार, ओबीसी और दलित आन्दोलन के चलते बने त्रिशंकु जातीय समीकरण में भाजपा उलझ कर रह गई है। अगर बीते 3 विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस भाजपा के मुकाबले काफी मजबूत बनकर उभरी है। कांग्रेस दशकों बाद भाजपा को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है। भाजपा गुजरात बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है।
लेकिन बीते 3 दिनों में गुजरात की सियासत का रंग एक बार फिर बदलता नजर आ रहा है। कांग्रेस पीएम मोदी पर व्यक्तिगत टिप्पणी कर फंस गई है। बीते दिनों यूथ कांग्रेस ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए ‘चायवाला’ मेमे शेयर किया था। इससे पहले कि कांग्रेस मामले से पल्ला झाड़ पाती, भाजपा और पीएम मोदी ने इसे गरीबी से जोड़कर कांग्रेस को गरीब विरोधी दल साबित कर दिया। कांग्रेस अभी इस झटके से उबर नहीं पाई थी कि उसके वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी को ‘नीच’ कह दिया। पीएम मोदी ने ‘नीच’ शब्द को अपनी जाति से जोड़कर समुदाय विशेष की सहानुभूति प्राप्त करने की पूरी कोशिश की। रही-सही कसर पूरी कर दी सूरत में लगे अहमद पटेल के पोस्टरों ने। इन पोस्टरों में अहमद पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस को वोट देने की अपील की गई है।
सूरत में अहमद पटेल के मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी के समर्थन में लगे पोस्टरों पर गुजरात की सियासत तुरंत गर्मा गई। अहमद पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर तुरंत ही इन अफवाहों को नकार दिया और कहा कि गुजरात में हार पक्की देखकर भाजपा ने यह दांव चला है। अहमद पटेल गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठना आम बात है। पर गुजरात एक हिन्दू आबादी बाहुल्य राज्य है और ऐसे में अहमद पटेल को चेहरा बनाना कांग्रेस के लिए हितकर नहीं होगा। कांग्रेस 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों में इसका परिणाम भुगत चुकी है जब चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मियाँ’ अहमद पटेल को कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताकर हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण कर लिया था।
Putting up fake posters and orchestrating a rumour campaign shows the utter desperation of the BJP. Fearing defeat, do they have to rely on such dirty tricks? I have never ever been a candidate for CM and will never, ever be
— Ahmed Patel Memorial (@ahmedpatel) December 7, 2017
इस मसले पर सफाई देते हुए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और राज्यसभा सांसद अहमद पटेल ने कहा कि भाजपा ने गुजरात में पिछले 22 सालों से गुजरात की जनता के साथ छलावा करती आ रही है। विकास के नाम पर गुजरात को केवल ठगा गया है और राज्य कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। इस बार भाजपा को अपना सिंहासन डोलता हुआ नजर आ रहा है तो वह उल्टी-सीधी बातें बनाकर जनता को भ्रमित करना चाहती है। पटेल ने कहा कि मैं कभी गुजरात के मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं था, ना ही अब मैं इसका दावेदार हूँ और ना आगे रहूँगा। अहमद पटेल ने सूरत में लगे पोस्टरों को भाजपा की हरकत बताया और कहा कि हार तय देखकर भाजपा झूठी अफवाहें फैला रही है जिससे वह वोटों का ध्रुवीकरण कर सके।
अहमद पटेल ही वह शख्स हैं जिसे गुजरात कांग्रेस के इस सियासी कायापलट का श्रेय जाता है पर वह चुनावी प्रचार अभियान में कहीं नजर नहीं आए हैं। कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल ने शंकर सिंह वाघेला की बगावत से बिखरी गुजरात कांग्रेस को एकजुट किया था। अगस्त महीने में गुजरात में हुए राज्यसभा चुनावों में जीत दर्ज कर अहमद पटेल ने गुजरात में कांग्रेस को उम्मीद की नई राह दिखाई थी। भाजपा के साम, दाम, दण्ड और भेद अपनाने के बावजूद भी अहमद पटेल आधे मतों के अन्तर से जीत हासिल करने में सफल रहे थे। उस वक्त ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस अहमद पटेल को गुजरात में अपना चेहरा बनाकर विधानसभा चुनावों में उतरेगी। लेकिन अभी तक कांग्रेस का चाणक्य गुजरात के सियासी मैदान से दूरी बनाए हुए है। गुजरात के चुनावी प्रचार में अहमद पटेल की गैरमौजूदगी कुछ अलग ही कहानी बयान कर रही है।
गुजरात राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल की जीत से कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा पर मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली थी। अहमद पटेल को हराने के लिए भाजपा ने हरसंभव कोशिश की थी। राज्यसभा चुनावों से ठीक पहले दिग्गज कांग्रेसी नेता शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी से बगावत कर दी थी। कांग्रेस के कई विधायक पार्टी छोड़ कर शंकर सिंह वाघेला के गुट में शामिल हो गए थे। बेंगलुरु के रेसॉर्ट में ठहराए गए 44 विधायकों में से भी दो विधायकों ने भाजपा उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी। कांग्रेस ने अपने विधायकों को अपनी तरफ मिलाकर रखने की हर मुमकिन कोशिश की थी और भाजपा पर उन्हें तोड़ने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।
अपने दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला की बगावत का दंश झेल रही कांग्रेस के लिए अहमद पटेल की जीत ने मरहम का काम किया था। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार हुआ था और दशकों बाद कांग्रेस को गुजरात में उम्मीद की किरण दिखाई दी थी। अहमद पटेल की जीत के बाद गुजरात में बदल रहे सियासी माहौल को देखकर इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनावों में अहमद पटेल को आगे करेगी और उनको मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर दांव खेलेगी। शंकर सिंह वाघेला के जाने के बाद गुजरात कांग्रेस के पास के पास कोई सशक्त और लोकप्रिय चेहरा नहीं बचा था। ऐसे में अहमद पटेल की उम्मीदवारी के आसार नजर आ रहे थे। लेकिन इन सभी से उलट अहमद पटेल गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान में भी कहीं नजर नहीं आए।
अहमद पटेल कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार भी हैं। बीते अगस्त महीने में हुए गुजरात राज्यसभा चुनावों में वह लगातार 6वीं बार राज्यसभा सांसद चुने गए थे। अहमद पटेल राजीव गाँधी के विश्वासपात्र रहे हैं और उन्हें गुजरात से उठाकर केंद्र की राजनीति में लाने वाले राजीव गाँधी ही थे। गाँधी परिवार से नजदीकी और अपने सियासी रुतबे के चलते चाहे-अनचाहे अहमद पटेल का नाम गुजरात के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल हो ही जाता है। इस वजह से कांग्रेस को 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों में नुकसान उठाना पड़ा था। 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रचार के आखिरी चरण में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अहमद पटेल को “मियाँ” अहमद पटेल कहकर सम्बोधित किया था जिस वजह से कांग्रेस के खिलाफ मतों का ध्रुवीकरण हो गया था।
कांग्रेस 2017 विधानसभा चुनावों में वही गलती दोहराना नहीं चाहती है। इसी वजह से अहमद पटेल अब तक कांग्रेस के चुनावी प्रचार अभियान में नजर नहीं आए हैं। अहमद पटेल दिल्ली में बैठकर गुजरात की सियासत में कांग्रेस का पक्ष मजबूत करने में जुटे हुए हैं। अहमद पटेल गुजरात की सियासत के रग-रग से वाकिफ हैं। ऐसे में उनका सियासी अनुभव कांग्रेस के लिए काफी अहम हो सकता है। कांग्रेस गुजरात में अहमद पटेल की लोकप्रियता और स्वीकार्यता से अच्छी तरह वाकिफ है। इसके बावजूद कांग्रेस उन्हें चुनाव प्रचार में नहीं उतार रही है इसका एक ही कारण है और वह है मतों के ध्रुवीकरण का डर। कांग्रेस ऐसे किसी भी हालत से निपटने की तैयारी कर चुकी है और इस वजह से ही अहमद पटेल की भूमिका परदे के पीछे की हो गई है।
बीते दिनों गुजरात के अंकलेवश्वर में स्थित एक अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारी के तार प्रतिबंधित आतंकी संगठन आईएसआई से जुड़े पाए गए थे। कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल की इस अस्पताल में हिस्सेदारी थी। भाजपा ने इस मुद्दे को लेकर बड़ा बवाल मचाया था। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने तो सीधे-सीधे अहमद पटेल पर आरोप लगा दिया था। अहमद पटेल ने सभी आरोपों से पल्ला झाड़ते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह को खत लिखकर मामले की जाँच कराने की मांग की थी। भाजपा समझ चुकी है कि अहमद पटेल गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कमजोर कड़ी साबित हो सकते हैं। कांग्रेस को भी इस बात का अंदाजा है और इस वजह से वह अहमद पटेल को आगे नहीं कर रही है।
अहमद पटेल को यूँ ही कांग्रेस का चाणक्य नहीं कहा जाता। अहमद पटेल के पास 4 दशकों से अधिक का सियासी अनुभव है और वह कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं। अहमद पटेल आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनावों में गुजरात के भरुच से जीतने में कामयाब रहे थे। यह वो दौर था जब देश में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी भी चुनाव हार गई थी। बीते अगस्त महीने में हुए गुजरात राज्यसभा चुनाव में एक वक्त पर अहमद पटेल की उम्मीदवारी खतरे में आ गई थी। तमाम दुश्वारियों से निकलते हुए अहमद पटेल भाजपा का सियासी चक्रव्यूह भेदने में सफल रहे थे और लगातार 6वीं बार राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुए थे। उनकी इस जीत से कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा पर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल हुई थी।
कांग्रेस पर हमेशा आरोप लगता रहा है कि वह एक ‘हिंदुत्व विरोधी’ दल है और अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करती आई है। 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने पूर्व रक्षामंत्री ए के एंटनी के नेतृत्व में हार के कारणों का पता लगाने के लिए कमेटी गठित की थी। एंटनी कमेटी द्वारा दी गई रिपोर्ट में कांग्रेस की ‘हिंदुत्व विरोधी’ छवि को भी हार के प्रमुख कारणों में से एक माना गया था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी पिछले कुछ समय से पार्टी की इस छवि को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। राहुल गुजरात में अपने चुनावी दौरों पर मंदिर-मंदिर जा रहे हैं और माथे पर त्रिपुण्ड-तिलक लगाए नजर आ रहे है। 90 के दशक से भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को कांग्रेस के खिलाफ ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल कर रही है।
भाजपा के 2 दशक से गुजरात की सत्ता पर काबिज होने की एक बड़ी वजह है उसकी हिंदुत्ववादी छवि। 90 के दशक में हुए राम मंदिर आन्दोलन के बाद देशभर में भाजपा की छवि हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाले दल की बन गई थी। भाजपा की इस छवि का उसे बराबर लाभ भी मिलता रहा है और देश का सवर्ण समुदाय आज भाजपा का कोर वोटबैंक बन चुका है। गुजरात में भाजपा के सामने मजबूत चुनौती पेश करने के लिए कांग्रेस ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ के दांव का सहारा ले रही है। अपने चुनावी दौरों पर राहुल गाँधी हिन्दू नेताओं से घिरे नजर आ रहे हैं और हिन्दुओं के धर्मस्थलों पर जा रहे हैं। कांग्रेस 2012 विधानसभा चुनावों की तरह इस बार मतों का ध्रुवीकरण नहीं होने देना चाहती है और इस वजह से वह अपने दिग्गज नेता अहमद पटेल को परदे के पीछे की भूमिका में रख रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल कांग्रेस के चाणक्य कहे जाते है पर गुजरात विधानसभा चुनावों में गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत यह भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। 80 के दशक से गाँधी परिवार के भरोसेमंद रहे अशोक गहलोत को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी राजस्थान की राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति में लाए थे। अशोक गहलोत इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और पी वी नरसिम्हा राव की सरकार में केंद्रीय मंत्री के पद पर रहे थे। गाँधी परिवार से अपनी नजदीकियों के चलते अशोक गहलोत 2 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री भी बने थे। अब अशोक गहलोत गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का मार्गदर्शन करते नजर आ रहे हैं। सियासत के दिग्गज खिलाड़ी अशोक गहलोत के पास तकरीबन 4 दशकों का सियासी तजुर्बा है और गुजरात विधानसभा चुनाव में इसकी बानगी देखने को मिल रही है।
गुजरात के जातीय समीकरण इस बार विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभा रहे हैं। कभी विकास का दम्भ भरने वाल गुजरात आज जातीय राजनीति की बेड़ियों में जकड़ कर रह गया है। गुजरात कांग्रेस प्रभारी जातीय आन्दोलन के नेताओं को कांग्रेस के साथ लाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। कांग्रेस इस बार गुजरात विधानसभा चुनावों में अहमद पटेल को प्रचार अभियान में नहीं उतार रही फिर भी गुजरात की सियासत में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। शंकर सिंह वाघेला की बगावत के बाद गुजरात कांग्रेस में शक्ति सिंह गोहिल, भरत सिंह सोलंकी और अर्जुन मोडवाड़िया जैसे नेता बचे हैं। ये सभी क्षेत्रीय नेता हैं और इनमें से किसी का कद अकेले दम पर पार्टी की जिम्मेदारी उठा लेने लायक नहीं है। ऐसी नाजुक परिस्थितियों में अशोक गहलोत महीनों से गुजरात में कांग्रेस और राहुल गाँधी का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
सूरत में लगे अहमद पटेल के पोस्टरों को भाजपा कार्यकर्ताओं की करतूत बताकर कांग्रेस अपना पल्ला झाड़ने की फिराक में है और स्वयं अहमद पटेल इस बात पर सफाई दे चुके है। इन सबके बावजूद भाजपा इस मसले को आधार बनाकर लगातार कांग्रेस पर हमले कर रही है। गुजरात में जातीय समीकरण साध कांग्रेस आज भले ही मजबूत दिख रही हो पर हिंदुत्व और क्षेत्रीयता के मुद्दे पर पर जनता आज भी भाजपा की समर्थक है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर लगा अहमद पटेल का यह पोस्टर गुजरात में कांग्रेस का बना-बनाया खेल बिगाड़ सकता है। अब सबकी नजरें इस पर टिकी हैं कि क्या अहमद पटेल का यह पोस्टर कांग्रेस के गले की फांस बनेगा या सिर्फ एक मामूली सी घटना बनकर रह जाएगा।