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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में 2 दिन का समय शेष रह गया है। पहले चरण के मतदान के लिए आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है। भाजपा, कांग्रेस समेत सभी सियासी दलों ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। मतदाताओं को रिझाने के लिए सभी सियासी दल अपनी-अपनी सियासी बाजी चल चुके हैं। अगर बीते 3 विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस भाजपा के मुकाबले काफी मजबूत बनकर उभरी है। कांग्रेस दशकों बाद भाजपा को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है। शंकर सिंह वाघेला की बगावत के बाद गुजरात कांग्रेस की सियासी जमीन मजबूत करने में जिस नेता का अहम योगदान रहा है वो हैं भरत सिंह सोलंकी। भरत सिंह सोलंकी गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के पुत्र हैं और वर्ष 2015 से गुजरात कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

    भरत सिंह सोलंकी के पिता माधव सिंह सोलंकी को गुजरात में ‘खाम’ गठजोड़ का पितामह माना जाता है। आपातकाल के दौर के बाद गुजरात में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने का श्रेय माधव सिंह सोलंकी को ही जाता है। क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए सोलंकी ने ‘खाम’ गठजोड़ का फार्मूला बनाया था। खाम गठजोड़ की वजह से कांग्रेस गुजरात में विधानसभा चुनावों में तीन चौथाई से भी अधिक सीटें जीतने में सफल रही थी। 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से 149 सीटों पर विजयी रही थी। सीटों के लिहाज से यह आज भी गुजरात का रिकॉर्ड है। इस लिहाजन कहा जा सकता है कि भरत सिंह सोलंकी को राजनीति विरासत में मिली है और वह इस विरासत की जिम्मेदारी बखूबी उठा रहे हैं।

    सोलंकी के साथ है दशकों का सियासी अनुभव

    गुजरात कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी तकरीबन 3 दशक से राजनीति में सक्रिय हैं। 1992 में सोलंकी को गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महासचिव बनाया गया था। वर्ष 1995 से 2004 तक सोलंकी लगातार 3 बार गुजरात विधानसभा के सदस्य रहे। 2004 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद सोलंकी ने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। वर्ष 2006 में सोलंकी को गुजरात कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष भी चुना गया था। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दूसरे कार्यकाल में सोलंकी केंद्रीय मंत्री बने और अलग-अलग मंत्रालयों का काम सँभाला। 2014 लोकसभा चुनावों में आनंद लोकसभा सीट पर सोलंकी को भाजपा के दिलीपभाई दिलीपभाई पटेल ने शिकस्त दी थी। गुजरात कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अर्जुन मोडवाडिया के इस्तीफे के बाद सोलंकी ने दिसंबर 2015 में गुजरात कांग्रेस की कमान दोबारा सँभाली थी।

    गठबंधन की राजनीति में माहिर

    भरत सिंह सोलंकी को सियासत की अच्छी-खासी समझ है और गठबंधन की राजनीति पर उनकी अच्छी पकड़ है। गुजरात में आज भाजपा जिस जातीय गठजोड़ की वजह से बैकफुट पर नजर आ रही है उसे असली जामा पहनाने में सोलंकी की अहम भूमिका रही है। निश्चित तौर पर उन्हें अशोक गहलोत जैसे अनुभवी सियासी दिग्गज का साथ भी मिला था पर उनकी भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं थी। अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में शामिल करने से लेकर हार्दिक पटेल का समर्थन हासिल करने तक में सोलंकी ने कड़ी मेहनत की है। शंकर सिंह वाघेला के जाने के बाद सोलंकी गुजरात कांग्रेस का सबसे मजबूत चेहरा बनकर उभरे हैं। विधानसभा चुनाव परिणाम पक्ष में आने बाद कांग्रेस मुख्यमंत्री पद के लिए भरत सिंह सोलंकी का नाम आगे कर सकती है। सोलंकी की साफ-सुथरी छवि और सियासी समझ का लाभ कांग्रेस को गुजरात में मिल रहा है।

    क्या कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म कर सकेंगे सोलंकी?

    भरत सिंह सोलंकी 2 दशक पहले गुजरात कांग्रेस के प्रमुख नेता थे। शंकर सिंह वाघेला के भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आ जाने के बाद सोलंकी की गुजरात की राजनीति में सक्रियता कम हो गई और 2004 में वह लोकसभा सांसद बन गए। हालाँकि 2006 में उन्हें गुजरात कांग्रेस की कमान मिली पर उनका रुझान केंद्र की राजनीति में ही रहा। अब जब वाघेला कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं, सोलंकी फिर से मजबूत होकर उभर रहे हैं। गुजरात कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद से सोलंकी कांग्रेस को मजबूत करने में जुटे हुए थे और अब उसका असर भी दिख रहा है। भरत सिंह सोलंकी के पिता माधव सिंह सोलंकी ने ‘खाम’ जातीय समीकरण साध गुजरात में कांग्रेस को रिकॉर्ड जीत दिलाई थी। अब सबको इंतजार है कि क्या भरत सिंह सोलंकी का ‘हज’ समीकरण गुजरात में कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म कर सकेगा?

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।