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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    दिसंबर महीने में गुजरात में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव पूरे देश में चर्चा का विषय बने हुए हैं। कांग्रेस गुजरात की सत्ताधारी पार्टी भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है। कांग्रेस के चुनावी प्रचार अभियान की कमान स्वयं पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने सँभाल रखी है और राजनीतिक रूप से गुजरात में काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। राहुल गाँधी ने गुजरात में भाजपा से रुष्ट चल रही जातियों को कांग्रेस की तरफ मिला लिया है। राहुल गाँधी के धुआँधार चुनावी दौरों और उनको मिल रहे जनसमर्थन ने भाजपा नेताओं के माथे पर शिकन ला दी है।

    इन सबके बीच वह एक शख्सियत जिसे गुजरात कांग्रेस के इस सियासी कायापलट का श्रेय जाता है, चुनावी प्रचार अभियान में कहीं नजर नहीं आ रहा है। हम बात कर रहे हैं कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल की। अगस्त महीने में गुजरात में हुए राज्यसभा चुनावों में जीत दर्ज कर अहमद पटेल ने गुजरात में कांग्रेस को उम्मीद की नई राह दिखाई थी। भाजपा के साम, दाम, दण्ड और भेद अपनाने के बावजूद भी अहमद पटेल आधे मतों के अन्तर से जीत हासिल करने में सफल रहे थे। उस वक्त ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस अहमद पटेल को गुजरात में अपना चेहरा बनाकर विधानसभा चुनावों में उतरेगी। लेकिन अभी तक कांग्रेस का चाणक्य गुजरात के सियासी मैदान से दूरी बनाए हुए है। गुजरात के चुनावी प्रचार में अहमद पटेल की गैरमौजूदगी कुछ अलग ही कहानी बयान कर रही है।

    गुजरात कांग्रेस के लिए संजीवनी थी अहमद पटेल की जीत

    गुजरात राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल की जीत से कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा पर मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली थी। अहमद पटेल को हराने के लिए भाजपा ने हरसंभव कोशिश की थी। राज्यसभा चुनावों से ठीक पहले दिग्गज कांग्रेसी नेता शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी से बगावत कर दी थी। कांग्रेस के कई विधायक पार्टी छोड़ कर शंकर सिंह वाघेला के गुट में शामिल हो गए थे। बेंगलुरु के रेसॉर्ट में ठहराए गए 44 विधायकों में से भी दो विधायकों ने भाजपा उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी। कांग्रेस ने अपने विधायकों को अपनी तरफ मिलाकर रखने की हर मुमकिन कोशिश की थी और भाजपा पर उन्हें तोड़ने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।

    अपने दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला की बगावत का दंश झेल रही कांग्रेस के लिए अहमद पटेल की जीत ने मरहम का काम किया था। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार हुआ था और दशकों बाद कांग्रेस को गुजरात में उम्मीद की किरण दिखाई दी थी। अहमद पटेल की जीत के बाद गुजरात में बदल रहे सियासी माहौल को देखकर इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनावों में अहमद पटेल को आगे करेगी और उनको मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर दांव खेलेगी। शंकर सिंह वाघेला के जाने के बाद गुजरात कांग्रेस के पास के पास कोई सशक्त और लोकप्रिय चेहरा नहीं बचा था। ऐसे में अहमद पटेल की उम्मीदवारी के आसार नजर आ रहे थे। लेकिन इन सभी से उलट अहमद पटेल गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान में भी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।

    मतों का ध्रुवीकरण रोकना चाहती है कांग्रेस

    अहमद पटेल कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार भी हैं। बीते अगस्त महीने में हुए गुजरात राजयसभा चुनावों में वह लगातार 6वीं बार राज्यसभा सांसद चुने गए। अहमद पटेल राजीव गाँधी के विश्वासपात्र रहे हैं और उन्हें गुजरात से उठाकर केंद्र की राजनीति में लाने वाले राजीव ही थे। गाँधी परिवार से नजदीकी और सियासी अनुभव के चलते चाहे-अनचाहे अहमद पटेल का नाम गुजरात के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल हो ही जाता है। इस वजह से कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनावों में नुकसान उठाना पड़ा था। 2012 गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रचार के आखिरी चरण में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमद पटेल को “मियाँ” अहमद पटेल कहकर सम्बोधित किया था जिस वजह से कांग्रेस के खिलाफ मतों का ध्रुवीकरण हो गया था।

    कांग्रेस 2017 विधानसभा चुनावों में वही गलती दोहराना नहीं चाहती है। इसी वजह से अहमद पटेल अब तक कांग्रेस के चुनावी प्रचार अभियान में नजर नहीं आए हैं। अहमद पटेल दिल्ली में बैठकर गुजरात की सियासत में कांग्रेस का पक्ष मजबूत करने में जुटे हुए हैं। अहमद पटेल गुजरात की सियासत के रग-रग से वाकिफ हैं। ऐसे में उनका सियासी अनुभव कांग्रेस के लिए काफी अहम हो सकता है। कांग्रेस गुजरात में अहमद पटेल की लोकप्रियता और स्वीकार्यता से अच्छी तरह वाकिफ है। इसके बावजूद कांग्रेस उन्हें चुनाव प्रचार में नहीं उतार रही है इसका एक ही कारण है और वह है मतों के ध्रुवीकरण का डर। कांग्रेस ऐसे किसी भी हालत से निपटने की तैयारी कर चुकी है और इस वजह से ही अहमद पटेल की भूमिका परदे के पीछे की हो गई है।

    बड़ा मुद्दा बन सकता है आईएसआई कार्यकर्ता की गिरफ्तारी

    बीते दिनों गुजरात के अंकलेवश्वर में स्थित एक अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारी के तार प्रतिबंधित आतंकी संगठन आईएसआई से जुड़े पाए गए थे। कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल की इस अस्पताल में हिस्सेदारी थी। भाजपा ने इस मुद्दे को लेकर बड़ा बवाल मचाया था। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने तो सीधे-सीधे अहमद पटेल पर आरोप लगा दिया था। अहमद पटेल ने सभी आरोपों से पल्ला झाड़ते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह को खत लिखकर मामले की जाँच कराने की मांग की थी। भाजपा समझ चुकी है कि अहमद पटेल गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कमजोर कड़ी साबित हो सकते हैं। कांग्रेस को भी इस बात का अंदाजा है और इस वजह से वह अहमद पटेल को आगे नहीं कर रही है।

    राजनीतिक जीवन में अजेय रहे हैं अहमद पटेल

    अहमद पटेल को यूँ ही कांग्रेस का चाणक्य नहीं कहा जाता। अहमद पटेल के पास 4 दशकों से अधिक का सियासी अनुभव है और वह कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं। अहमद पटेल आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनावों में गुजरात के भरुच से जीतने में कामयाब रहे थे। यह वो दौर था जब देश में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी भी चुनाव हार गई थी। बीते अगस्त महीने में हुए गुजरात राज्यसभा चुनाव में एक वक्त पर अहमद पटेल की उम्मीदवारी खतरे में आ गई थी। तमाम दुश्वारियों से निकलते हुए अहमद पटेल भाजपा का सियासी चक्रव्यूह भेदने में सफल रहे थे और लगातार 6वीं बार राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुए थे। उनकी इस जीत से कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा पर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल हुई थी।

    ‘हिंदुत्व हितैषी’ छवि बना रही है कांग्रेस

    कांग्रेस पर हमेशा आरोप लगता रहा है कि वह एक हिंदुत्व विरोधी दल है और अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करती आई है। 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने पूर्व रक्षामंत्री ए के एंटनी के नेतृत्व में हार के कारणों का पता लगाने के लिए कमेटी गठित की थी। एंटनी कमेटी द्वारा दी गई रिपोर्ट में कांग्रेस की हिंदुत्व विरोधी छवि को भी हार के प्रमुख कारणों में से एक माना गया था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी पिछले कुछ समय से पार्टी की इस छवि को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। राहुल गुजरात में अपने चुनावी दौरों पर मंदिर-मंदिर जा रहे हैं और माथे पर त्रिपुण्ड-तिलक लगाए नजर आ रहे है। 90 के दशक से भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को कांग्रेस के खिलाफ ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल कर रही है।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    हिंदुत्व के सहारे सियासी जमीन तलाश रहे हैं राहुल गाँधी

    भाजपा के 2 दशक से गुजरात की सत्ता पर काबिज होने की एक बड़ी वजह है उसकी हिंदुत्ववादी छवि। 90 के दशक में हुए राम मंदिर आन्दोलन के बाद देशभर में भाजपा की छवि हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाले दल की बन गई थी। भाजपा की इस छवि का उसे बराबर लाभ भी मिलता रहा है और देश का सवर्ण समुदाय आज भाजपा का कोर वोटबैंक बन चुका है। गुजरात में भाजपा के सामने मजबूत चुनौती पेश करने के लिए कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के दांव का सहारा ले रही है। अपने चुनावी दौरों पर राहुल गाँधी हिन्दू नेताओं से घिरे नजर आ रहे हैं और हिन्दुओं के धर्मस्थलों पर जा रहे हैं। कांग्रेस 2012 विधानसभा चुनावों की तरह इस बार मतों का ध्रुवीकरण नहीं होने देना चाहती है और इस वजह से वह अपने दिग्गज नेता अहमद पटेल को परदे के पीछे की भूमिका में रख रही है।

    गुजरात में चाणक्य की भूमिका निभा रहे हैं गहलोत

    यूँ तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को कांग्रेस का चाणक्य कहा जाता है पर गुजरात विधानसभा चुनावों में गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत यह भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। 80 के दशक से गाँधी परिवार के भरोसेमंद रहे अशोक गहलोत को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी राजस्थान की राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति में लाए थे। अशोक गहलोत इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और पी वी नरसिम्हा राव की सरकार में केंद्रीय मंत्री के पद पर रहे थे। गाँधी परिवार से अपनी नजदीकियों के चलते अशोक गहलोत 2 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री भी बने थे। अब अशोक गहलोत गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का मार्गदर्शन करते नजर आ रहे हैं। सियासत के पुराने दिग्गज अशोक गहलोत के पास तकरीबन 4 दशकों का सियासी तजुर्बा है और गुजरात विधानसभा चुनाव में इसकी बानगी देखने को मिल रही है।

    गुजरात के जातीय समीकरण इस बार विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभा रहे हैं। कभी विकास का दम्भ भरने वाल गुजरात आज जातीय राजनीति की बेड़ियों में जकड़ कर रह गया है। गुजरात कांग्रेस प्रभारी जातीय आन्दोलन के नेताओं को कांग्रेस के साथ लाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। कांग्रेस इस बार गुजरात विधानसभा चुनावों में अहमद पटेल को प्रचार अभियान में नहीं उतार रही फिर भी गुजरात की सियासत में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। शंकर सिंह वाघेला की बगावत के बाद गुजरात कांग्रेस में शक्ति सिंह गोहिल, भरत सिंह सोलंकी और अर्जुन मोडवाड़िया जैसे नेता बचे हैं। ये सभी क्षेत्रीय नेता हैं और इनमें से किसी का कद अकेले दम पर पार्टी की जिम्मेदारी उठा लेने लायक नहीं है। ऐसी नाजुक परिस्थितियों में अशोक गहलोत महीनों से गुजरात में कांग्रेस और राहुल गाँधी का मार्गदर्शन कर रहे हैं।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।