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    एक हो सकता है गाँधी परिवार

    बहुत दिनों से देश के सियासी महकमों में इस बात की चर्चा है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी शीघ्र ही पार्टी की कमान सँभाल सकते हैं। बीते दिनों कांग्रेस की कार्य समिति की बैठक में भी इस बात पर चर्चा हुई थी और यह तय किया गया था कि दिसंबर महीने में राहुल गाँधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद का पदभार सौंपा जाएगा। इससे एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि राहुल गाँधी की ताजपोशी के बाद कांग्रेस संगठन में कई बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। इन सबसे परे जिस बात की चर्चा सबसे अधिक हो रही है वह है वरुण गाँधी के कांग्रेस में शामिल होने की। खबर आ रही है कि भाजपा में सम्मानजनक पद ना मिलने की वजह से लोकसभा सांसद वरुण गाँधी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी अपनी ताजपोशी के बाद वरुण गाँधी के कांग्रेस में शामिल होने पर फैसला लेंगे। माना जा रहा है कि राहुल अध्यक्ष पद सँभालने के तुरंत बाद वरुण को सम्मानजनक पद देकर कांग्रेस में शामिल होने का न्यौता दे सकते हैं। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही वरुण गाँधी भाजपा में अलग-थलग पड़ गए हैं। स्थानीय नेता और प्रदेश में अच्छी पकड़ होने के बावजूद भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से वरुण गाँधी को दूर रखा था। लगातार दूसरी बार सांसद निर्वाचित होने पर भी वरुण गाँधी को मोदी मन्त्रिमण्डल में जगह नहीं मिली थी जबकि पहली बार चुने गए कई सांसदों को मंत्री पद से नवाजा गया था। वरुण गाँधी उत्तर प्रदेश में भी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे पर भाजपा ने उन्हें किनारे कर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया।

    प्रियंका कर रही मध्यस्थता

    कांग्रेस समेत देश के सभी सियासी दलों की नजर 2019 लोकसभा चुनावों पर हैं। कांग्रेस राहुल गाँधी की ताजपोशी कर उन्हें नरेंद्र मोदी के मुकाबले खड़ा करना चाहती है। कांग्रेस राहुल गाँधी के सियासी कद और पार्टी संगठन को मजबूत करने की पुरजोर कोशिश कर रही है। वरुण गाँधी के कांग्रेस में शामिल होने का असर निश्चित तौर पर पार्टी की लोकप्रियता पर पड़ेगा और पार्टी की हिंदुत्व विरोधी छवि भी सुधरेगी। वरुण गाँधी भाजपा में महत्वपूर्ण और सम्मानजनक भूमिका ना मिलने की वजह से खफा हैं और पार्टी से अलग-थलग चल रहे हैं। वरुण गाँधी भाजपा के उन चुनिंदा सांसदों में से हैं जो किसी भी मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखते हैं। उनकी इसी बेबाकी की वजह से भाजपा उन्हें लगातार दरकिनार कर रही है और भाजपा में उनकी भूमिका एक लोकसभा सांसद तक ही सीमित रह गई है।

    वरुण गाँधी और राहुल गाँधी ने कभी भी खुले तौर पर एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी नहीं की है। वरुण गाँधी ने 2014 लोकसभा चुनावों के वक्त राहुल गाँधी के खिलाफ चुनाव प्रचार करने से इंकार कर दिया था। राहुल गाँधी ने भी बीते दिनों रोहिंग्या मुसलामानों के मुद्दे पर वरुण गाँधी द्वारा लिखे लेख का समर्थन किया था। राहुल गाँधी कभी भी वरुण गाँधी या मेनका गाँधी के खिलाफ कोई बयानबाजी करते नजर नहीं आए हैं। वरुण गाँधी और राहुल गाँधी को एक साथ लाने का बीड़ा प्रियंका गाँधी ने उठाया है। प्रियंका गाँधी के वरुण गाँधी से रिश्ते बहुत अच्छे हैं। प्रियंका गाँधी वह कड़ी बन सकती हैं जो वरुण और राहुल को जोड़ने का काम करे। उम्मीद की जा रही है कि प्रियंका गाँधी स्वयं आगे बढ़कर वरुण को कांग्रेस में शामिल करने का प्रस्ताव रखेंगी और कांग्रेस में वरुण को सम्मानजनक पद की पेशकश करेंगी।

    35 सालों बाद एक होगा गाँधी परिवार

    अगर वरुण गाँधी कांग्रेस का दामन थाम लेते हैं तो बीते साढ़े तीन दशक में यह पहला मौका होगा जब गाँधी परिवार साथ होगा। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद मेनका गाँधी बेटे वरुण के साथ अलग रहने लगी थी। बाद में मेनका गाँधी एनडीए का हिस्सा बन गई। 2004 में मेनका गाँधी और वरुण गाँधी आधिकारिक तौर पर भाजपा में शामिल हो गए थे। मेनका गाँधी एनडीए की सरकार में 3 बार मंत्री भी रह चुकी हैं। हालाँकि केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भाजपा में वरुण गाँधी का कद घटा है और उनकी लगातार उपेक्षा की जा रही है। ऐसे में अगर वरुण गाँधी कांग्रेस में शामिल होते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वरुण के आने से कांग्रेस को मजबूती मिलेगी। मुमकिन है दशकों बाद गाँधी परिवार की एकजुटता भाजपा की सत्ता वापसी की राह मुश्किल कर दे।

    वरुण के पक्ष में उतरे वरिष्ठ मुस्लिम नेता

    वरुण गाँधी के भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल होने के कयासों को तब बल मिला जब इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी मुस्लिम नेता हाजी जमीलुद्दीन ने वरुण का पक्ष लिया। जमीलुद्दीन ने कहा कि उत्तर प्रदेश में वरुण गाँधी की अच्छी पकड़ थी और वह राज्य के मुख्यमंत्री बनने के सबसे योग्य और प्रबल उम्मीदवार थे। लेकिन भाजपा आलाकमान ने उनकी जगह योगी आदित्यनाथ को प्राथमिकता दी जो दूर-दूर तक वरुण के आस-पास नहीं थे। जमीलुद्दीन ने कहा कि मोदी सरकार में मान की बात कहने का हक सिर्फ पीएम मोदी को ही है। अन्य किसी भी नेता को अपना पक्ष और विचार नहीं रखने दिया जाता। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पूर्व इलाहबाद में हुई भाजपा कार्यकारिणी की बैठक के वक्त पूरा शहर वरुण गाँधी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग करने वाले बैनरों और पोस्टरों से पटा पड़ा था।

    हालाँकि उस वक्त भाजपा आलाकमान ने इस मांग पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री और वरुण गाँधी की माँ मेनका गाँधी ने भी वरुण को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते देखने की इच्छा जाहिर की थी। इसके बावजूद भी भाजपा ने वरुण गाँधी को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से दूर रखा था। बताया जाता है कि पीएम मोदी और अमित शाह को वरुण गाँधी की बढ़ती लोकप्रियता नागवार गुजरी थी और इसी वजह से उन्ही के सामान हिंदुत्ववादी छवि वाले योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई। एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हाजी मंजूर अहमद ने कहा है कि वरुण गाँधी को कांग्रेस में शामिल कर राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया जा सकता है और 2019 लोकसभा चुनावों में उनके लिए अहम भूमिका का निर्धारण किया जा सकता है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।