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    Right to Safe Abortion

    सुरक्षित गर्भपात का अधिकार (Right to Safe Abortion) : एक तरफ़ जहाँ आधुनिकता के मॉडल देश के तौर पर माना जाना वाला अमेरिका में अभी कुछ महीने पहले ही महिलाओं के गर्भपात (Related to Safe Abortion & Reproductive Rights) से जुड़े अधिकार सीमित किये जा रहे हैं, वहीं विकासशील भारत मे सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दुनिया भर के आगे अपने फैसले से एक नजीर पेश की है।

    सुप्रीम कोर्ट के ताजे फैसले के अनुसार अब भारत मे वैवाहिक स्थिति से इतर हर महिला- विवाहित और अविवाहित दोनों को गर्भपात (Abortion) का अधिकार समान रूप से दे दिया। साथ ही कोर्ट ने महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित व कानूनी दायरे में गर्भपात से जुड़े हर तरह के बाधाओं को दूर करने की कोशिश की है।

    सुरक्षित गर्भपात का अधिकार और उस से आगे…

    सुरक्षित गर्भपात का अधिकार : एक मानवाधिकार
    लिव-इन-रिलेशन आदि का प्रचलन आज के समाज की एक हक़ीक़त है। ऐसे में विवाहित हो या अविवहित, सभी महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात आदि का अधिकार मिलना ही चाहिए। (तस्वीर साभार: European Parliament)

    दरअसल अभी तक सिर्फ विवाहित महिलाओं को ही 20 सप्ताह से अधिक और 24 हफ्ते से कम समय तक ही गर्भपात के अधिकार था। लेकिन अब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने अपने फैसले से यह समान अधिकार इसी समय सीमा के लिए अविवाहित महिलाओं या लड़कियों को भी दे दिया है।

    यद्यपि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सबसे प्रमुख बिंदु गर्भपात के अधिकार से संबंधित था, पर सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं को उनके शरीर से जुड़े कई अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अपने फैसले में चर्चा की।

    अदालत ने कहा कि इस अधिकार (सुरक्षित गर्भपात का अधिकार) को सिर्फ शादी-शुदा महिलाओं तक ही सीमित रखने से अविवाहित महिलाओं के लिये संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के ख़िलाफ़ होगा। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP Act) 2021 का संशोधन विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नही करता।

    जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस केस की सुनवाई के दौरान एक और महत्वपूर्ण बात कही कि पति द्वारा जबर्दस्ती शारीरिक सबंध भी बलात्कर की श्रेणी में माना जाना चाहिए और इस से जुड़े मामले भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 2021 के नियम 3 बी (ए) यौन उत्पीड़न या बलात्कर की श्रेणी में आयेगा।

    कोर्ट के इस व्यक्तव्य को बड़े ध्यान से पढ़ने की आवश्यकता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप का मामला भी लंबित है और पहली दफा है कि कोर्ट ने इस विषय पर इतना स्पष्ट बातें रखी है। इसलिए इस मामले (सुरक्षित गर्भपात के अधिकार) और आगामी मैरिटल रेप, जब भी फैसला आये, दोनों को जोड़कर देखने की जरूरत है।

    हालांकि अभी तक मैरिटल रेप को भारतीय दंड विधान के अंदर आपराधिक माना जायेगा या नहीं, यह स्पष्ट नही है लेकिन सुरक्षित गर्भपात वाले सुनवाई में कोर्ट ने इस आगामी मामले के तरफ इंगित जरूर किया है कि जल्दी ही उसे भी अपराध के दायरे में लाया जा सकता है।

    महिला अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण फैसला

    कुल मिलाकर कोर्ट ने महिलाओं को उनके अपने शरीर से जुड़े अधिकारों को दिलाने में यह एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है जिसकी मांग सिविल सोसाइटी और यदा-कदा अदालतों में भी होती रही हैं।

    भारत पिछले दो दशक में भ्रूण हत्या वाले मानसिकता से लगभग उबर चुका है। निःसंदेह अब इन मामलों में भारी कमी आयी है। पिछले 2 बार के जनगणना ने इस बात के पूरे संकेत दिए हैं और आने वाले जनगणना के आंकड़े (Sex Ratio) शायद और भी सुखद तस्वीर पेश करें।

    दूसरा अब बड़े शहरों से उठकर साधारण और छोटे शहरों में भी सेक्स-सम्बंधों को लेकर समाज थोड़ा खुला है। आज के युवा बिना शादी के भी लिव-इन-रिलेशन जैसे सम्बंधो में रह रहे हैं जहां आपसी सहमति से सेक्स-सम्बंध बनते ही हैं। यह उम्र के इस पड़ाव पर स्वाभाविक भी है और एक सच्चाई भी है जिस से मुँह नहीं फेरा जा सकता है।

    अविवाहित महिलाओं को भी सुरक्षित गर्भपात के अधिकार मिलना ही चाहिए क्योंकि भारतीय समाज आज भी एक अविवाहित लड़की को माँ बनने को स्वीकार नहीं करता है। ऐसे में ये लड़कियां एक मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न की शिकार बन जाती हैं।

    इसलिए एक मुक्त विचारधारा वाले समाज को कोर्ट के इस फैसले को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए; क्योंकि यह न सिर्फ महिलाओं के शारीरिक हक़ से जुड़ी बातें हैं बल्कि यह उनके संदर्भ में मानवाधिकार का भी मामला है।

     

    यह भी पढ़े: मैरिटल रेप को क्या अपराध की श्रेणी में लाना चाहिए?

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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