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    कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी को पार्टी का अगला अध्यक्ष बनाने का रास्ता साफ हो चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए तय समय सीमा में नामांकन करने वाले राहुल अकेले उम्मीदवार हैं। ऐसे में राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा महज औपचारिकता भर रह गई है। राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की औपचारिक घोषणा 14 दिसंबर को हो जाएगी। एक वक्त था जब कांग्रेस संगठन में राहुल गाँधी की नेतृत्व क्षमता को लेकर सवाल उठने लगे थे और आज उसी कांग्रेस पार्टी की कमान राहुल को सौंपने पर सब एकमत नजर आ रहे हैं। पिछले कुछ वक्त से राहुल गाँधी की सियासी समझ और तेवरों में जबरदस्त बदलाव देखने को मिला है और गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को इसका लाभ मिल रहा है। पर सवाल यह है कि क्या राहुल गाँधी आने वाले समय में कांग्रेस के तारणहार बनकर उभरेंगे।

    हाशिए पर जा चुकी है कांग्रेस

    बीते कुछ साल साल राजनीतिक दृष्टिकोण से कांग्रेस के लिए बिल्कुल भी अच्छे नहीं गुजरे हैं। 2014 लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद से कांग्रेस का बुरा दौर शुरू हुआ था जो आज तक थमा नहीं है। लोकसभा चुनावों के बाद से हुए हर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को शिकस्त ही मिली है। बिहार और पंजाब इसके अपवाद रहे। बिहार में जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन ने भाजपा का विजय रथ थाम लिया हालाँकि यह महागठबंधन सिर्फ 20 महीनों तक ही चला। पंजाब में अरसे बाद कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। आज कांग्रेस देश के 6 राज्यों तक सिमट कर रह गई है और राज्यसभा में भी कांग्रेस का संख्याबल कम हो चुका है। राहुल गाँधी ऐसे वक्त में कांग्रेस की कमान सँभाल रहे हैं जब वह हाशिए पर जा चुकी है। कांग्रेस को पुराना रुतबा दिलाना राहुल के लिए बड़ी चुनौती होगी।

    छवि सुधारने में जुटे राहुल

    राहुल गाँधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है स्वयं की छवि में सुधार करना। सत्ताधारी दल भाजपा आज भी राहुल गाँधी को गंभीर नेता नहीं मानती और अक्सर उन्हें मजाकिया नेता के तौर पर पेश करती है। खुद कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता राहुल गाँधी को गंभीर नेता नहीं मानते और उनकी सियासी समझ को खास तवज्जो नहीं देते हैं। ऐसे में राहुल गाँधी को अपनी छवि में सुधार के लिए आगामी चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन सुधारना होगा। राहुल गाँधी को अपनी इस छवि को तोड़कर एक मजबूत और गंभीर नेता बनना होगा जिससे ढ़लान पर खड़ी कांग्रेस को स्थायित्व मिल सके। राहुल गाँधी इसके लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं और गुजरात विधानसभा चुनावों में इसकी बानगी देखने को भी मिल रही है। बर्कले से लौटने के बाद राहुल गाँधी आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रहे हैं जो कांग्रेस के सियासी भविष्य के लिए हितकर है।

    युवाओं को मुख्य भूमिका में लाएंगे राहुल

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी युवाओं को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं और उनको आगे कर पार्टी को मजबूत करने में जुटे हैं। देश की 60 फीसदी आबादी युवा है और ऐसे में युवाओं से जुड़ना बहुत जरुरी है। कांग्रेस मीडिया में अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए “स्पोकपर्सन आर्मी” तैयार करने में जुटी है। यह आर्मी कांग्रेस में मौजूद मुट्ठीभर प्रवक्ताओं की जगह लेगी। कांग्रेस इसके लिए युवाओं को मौका दे रही है जो भाजपा को कड़ी टक्कर देंगे। युवा प्रवक्ताओं की यह नई फौज कांग्रेस पार्टी का अहम हिस्सा होगी और चुनावों के लिए पार्टी की सियासी पृष्ठभूमि तैयार करेगी। देशभर से कांग्रेस की राज्य इकाईयों ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को इस बाबत सूची भेजना शुरू कर दिया है। कांग्रेस राज्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा और बहस करने के लिए अपने क्षेत्रीय नेताओं को आगे करेगी।

    सोशल मीडिया पर छाए राहुल

    2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत में सोशल मीडिया का बड़ा योगदान रहा था। भाजपा नेताओं की सक्रियता और सोशल मीडिया पर चलाए गए “एंटी-कांग्रेस कैम्पेन” ने भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी। उस वक्त तक शशि थरूर ही एक मात्र ऐसे कांग्रेसी नेता थे जो सोशल मीडिया पर सक्रिय थे। पर आगामी चुनावों में मद्देनजर कांग्रेस सोशल मीडिया को अपना प्रमुख हथियार बनाने की पूरी तैयारी कर चुका है। अपने हालिया गुजरात दौरे के दौरान राहुल गाँधी ने अपने ट्विटर हैंडल पर “विकास पागल हो गया” कैम्पेन चलाया था और मोदी सरकार की नीतियों पर बने मेमे को भी प्रचारित किया था। कांग्रेस अब भाजपा के विरुद्ध वही रणनीति अपना रही है जो 2014 के लोकसभा चुनावों के वक्त भाजपा ने उसके विरुद्ध अपनाई थी।

    हाल ही में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे पर चुटकी लेते हुए राहुल गाँधी ने लिखा था कि “मोदीजी, जय शाह- ‘जादा’ खा गया, आप चौकीदार थे या भागीदार? कुछ तो बोलिए।” जीएसटी पर गब्बर सिंह टैक्स वाला ट्वीट भी चर्चित रहा था। राहुल गाँधी के अलावा कांग्रेस पार्टी के अन्य सभी नेता भी सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय नजर आ रहे हैं और पार्टी का सोशल मीडिया कैम्पेन पूरी तरह बदल सा गया है। कांग्रेस की डिजिटल टीम की कमान दक्षिण की अभिनेत्री दिव्या स्पंदना उर्फ राम्या संभाल रही हैं। कांग्रेस के सोशल मीडिया कैम्पेन को नै धार देने के लिए उन्होंने पेशेवरों को भर्ती की है। टीम में 85 फीसदी सदस्य युवा और पेशेवर हैं। इनकी वजह से राहुल गाँधी सोशल मीडिया पर सक्रिय नजर आ रहे हैं और उनकी लोकप्रियता भी लगातार बढ़ रही है।

    जनाधार का संकट

    90 के दशक तक कांग्रेस देश की प्रमुख पार्टी थी। जनता दल के टूटने के बाद कांग्रेस का कोई विकल्प नहीं था। भाजपा नई पार्टी बनी थी और वह अपना जनाधार तलाश रही थी। आजादी आन्दोलन में अपनी भूमिका और राष्ट्रव्यापी समर्थन की वजह से जनता में कांग्रेस की पकड़ मजबूत थी और अन्य कोई भी दल कांग्रेस के समक्ष चुनौती पेश करता नजर नहीं आ रहा था। राम मंदिर आन्दोलन के बाद देश का सवर्ण समुदाय भाजपा का कोर वोटबैंक बन गया और मुस्लिम समुदाय कांग्रेस के साथ हो लिया। यहीं से कांग्रेस का जनाधार खिसकना शुरू हुआ और देश की सबसे पुरानी पार्टी को भी सरकार बनाने के लिए गठबंधन का सहारा लेना पड़ा। आज कांग्रेस का वोट प्रतिशत बहुत घट गया है और ऐसे में नव निर्वाचित पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी के सामने जनाधार तलाशने का संकट खड़ा हो गया है।

    कभी देश की सियासत पर राज करने वाली कांग्रेस के सामने आज अस्तित्व बचाने का संकट आ गया है। अगर आज से 5 वर्ष पहले की भी बात करें तो कांग्रेस की स्थिति इतनी बुरी नहीं थी। दोनों सदनों में कांग्रेस सबसे बड़ा दल था। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दूसरे कार्यकाल में हुए घोटालों की वजह से जनता का कांग्रेस से मोहभंग हो गया था। 2014 लोकसभा चुनावों से कांग्रेस का जनाधार खिसकना शुरू हुआ जो लगातार खिसकता ही जा रहा है। पिछले कुछ वक्त से राहुल गाँधी राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय रहे हैं और जमीनी मुद्दों पर आधारित राजनीति कर रहे हैं। राहुल गाँधी मोदी सरकार के खिलाफ किसानों की दुर्दशा, युवाओं की बेरोजगारी जैसे मुद्दों को आधार बना रहे हैं। कांग्रेस के सियासी भविष्य के लिए यह काफी अच्छा है। कांग्रेस के खिसकते जनाधार को साधना राहुल गाँधी के लिए बड़ी चुनौती होगी।

    जनता से जुड़ रही है कांग्रेस

    देश में कांग्रेस की गिरती लोकप्रियता का मुख्य कारण है पार्टी नेताओं की जनता से बढ़ती दूरी। कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनावों में राहुल गाँधी को नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खड़ा करने की तैयारी में है और इस वजह से लगातार उनकी छवि चमकाने पर काम चल रहा है। अपने हालिया विदेश दौरों से लौटने के बाद राहुल गाँधी लगातार जमीनी मुद्दों को आधार बनाकर भाजपा के खिलाफ सियासी जमीन तलाशने में जुटे हुए हैं। राहुल गाँधी लगातार किसानों की दुर्दशा, बेरोजगारी और आर्थिक मोर्चे पर सरकार की विफलता जैसे मुद्दों को आधार बना रहे हैं और गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक में इसके खिलाफ रैलियां कर चुके हैं। अपनी गुजरात यात्रा के दौरान राहुल गाँधी ने नर्मदा विस्थापितों, आदिवासियों और बाढ़ प्रभावित किसानों से भी मुलाकात की थी और उन्हें हरसंभव मदद देने का वायदा किया था।

    राहुल गाँधी ने अपने रवैये से स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वातानुकूलित कमरों में बैठकर राजनीति करने वाले नेताओं के दिन अब लद चुके हैं। राहुल गाँधी के साथ-साथ कई राज्यों के कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जमीनी मुद्दों पर आधारित राजनीति कर रहे हैं। बीते दिनों उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर किसानों की बदहाली के मुद्दे पर प्रदेश की सत्ताधारी योगी सरकार के खिलाफ खुद धरने पर बैठे नजर आए थे। राजस्थान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने राजस्थान में किसान यात्रा निकाली थी। वहीं हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह हुड्डा यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर गाँवों में किसान पंचायत लगा रहे हैं और प्रदेश की सत्ताधारी भाजपा सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। जनता में दोबारा कांग्रेस की पैठ बना के लिए राहुल गाँधी जमीनी स्तर पर कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

    मुद्दा आधारित राजनीति

    मोदी सरकार के पिछले 3 वर्षों के कार्यकाल पर नजर डालें तो यह स्पष्ट दिखता है कि देश के युवा लगातार बेरोजगार होते जा रहे हैं। पूंजीपतियों का विकास हुआ है और अमीर-गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। मोदी सरकार द्वारा लागू की गई जीएसटी से छोटे व्यवसायियों और व्यापारियों की कमर टूट गई है। इससे पूर्व हुई नोटबंदी की वजह से व्यापारी वर्ग के साथ-साथ आम जनता को भी काफी परेशानियां उठानी पड़ी थी। भाजपा के कई नेताओं ने आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार की विफलता को लेकर बयान दिए थे। भाजपा की संगठन इकाई आरएसएस से जुड़े कई संगठन भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से खुश नहीं है। ऐसे में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी इस मौके को भुनाने में लगे हैं और इन मुद्दों को आधार बनाकर लगातार मोदी सरकार पर हमलावर रहे हैं।

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार को घेरने के लिए ताजातरीन मुद्दों की सूची बना चुके हैं। उनके द्वारा चिन्हित प्रमुख मुद्दों में बेरोजगारी, किसानों की बदहाली, छोटे और मझोले उद्योगों की सुस्त पड़ती रफ्तार और कश्मीर में बेकाबू होते हालात हैं। अपने अमेरिका दौरे के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने इन सभी मुद्दों का जिक्र किया था। अपने हालिया अमेठी और गुजरात दौरों पर भी उन्होंने सत्ताधारी भाजपा सरकार को इन्ही मुद्दों के आधार पर घेरा था। राहुल गाँधी और कांग्रेस वह मुद्दे पहचान चुके हैं जो उनको सत्ता तक पहुँचा सकते है और इसी वजह से वह लगातार मोदी सरकार को घेरने में सफल रहे हैं। पीएम मोदी पर व्यक्तिगत हमलों से इतर कांग्रेस को मुद्दा आधारित राजनीति की राह पर लौटाना राहुल गाँधी के लिए बड़ी चुनौती है और वह इसके लिए लगतार प्रयासरत दिखे हैं।

    कांग्रेस को संगठित कर मजबूत विपक्ष बनना

    संगठन की मजबूती वह बिंदु है जिसपर भाजपा कांग्रेस से मीलों आगे चल रही है। कांग्रेस जमीनी हकीकत को जांचे-परखे बगैर अकेले दम पर भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने का दम्भ भरती है। अगर 2014 लोकसभा चुनावों के बाद देश में हुए विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो हकीकत खुलकर सामने आती है। कांग्रेस को तकरीबन हर चुनाव में शिकस्त ही हाथ लगी है। अपवाद रहे बिहार और पंजाब में कांग्रेस के सत्ता में आने का कारण कुछ और था। बिहार में महागठबंधन का जातीय समीकरण भाजपा पर भारी पड़ गया था वहीं पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के प्रति जनता में व्याप्त रोष भाजपा-अकाली दल गठबंधन पर कहर बनकर टूटा था। बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश समेत कांग्रेस की कई राज्य इकाईयों में बगावती सुर उठे थे जो किसी लिहाज से पार्टी हित में नहीं थे। कांग्रेस को संगठित करने का जिम्मा राहुल को अपने कन्धों पर उठाना होगा।

    मोदी सरकार के कार्यकाल में देश को एक मजबूत विपक्ष की कमी अखर रही है। कांग्रेस लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है पर उसके पास 10 फीसदी सांसद बल भी नहीं है। कांग्रेस की इस कमजोरी का मोदी सरकार फायदा उठा रही है और बहुत बेफिक्री से देश चला रही है। जबकि कांग्रेस सरकार के दौर में ऐसा कुछ नहीं था। तब भाजपा ने एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाई थी और सरकार चलाने में कांग्रेस के पसीने छूट गए थे। अब कांग्रेस को भी कुछ ऐसा ही करने की जरुरत है। मायावती के राज्यसभा इस्तीफे और लालू की रैली के अवसर पर विपक्ष की एकजुटता नजर आई थी पर यह क्षणिक खुशी थी। बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को विपक्ष को एकजुट कर संसद से सड़क तक मोदी सरकार के खिलाफ संघर्ष करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।

    कितना कारगर रहेगा राहुल का ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ व ‘जातीय कार्ड’?

    कांग्रेस पर हमेशा आरोप लगता रहा है कि वह एक हिंदुत्व विरोधी दल है और अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करती आई है। 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने पूर्व रक्षामंत्री ए के एंटनी के नेतृत्व में हार के कारणों का पता लगाने के लिए कमेटी गठित की थी। इस रिपोर्ट में कांग्रेस की हिंदुत्व विरोधी छवि को भी हार के प्रमुख कारणों में से एक माना गया था। राहुल गाँधी पिछले कुछ समय से पार्टी की इस छवि को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। राहुल गुजरात में अपने चुनावी दौरों पर मंदिर-मंदिर फिर रहे हैं और माथे पर त्रिपुण्ड-तिलक लगाए नजर आ रहे है। राम मंदिर आन्दोलन के वक्त से भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को कांग्रेस के खिलाफ ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल करती आई है। अब देखना है कि बतौर पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी का यह ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ कार्ड कितना कारगर साबित होता है।

    अध्यक्ष पद सँभालने के बाद राहुल गाँधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन। गुजरात में पिछले 22 सालों से कांग्रेस सियासी वनवास काट रही है और भाजपा सत्ताधारी दल है। राहुल गाँधी गुजरात में कांग्रेस की सत्ता वापसी के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं और जातीय समीकरण साधकर भाजपा को घेरने में लगे हुए हैं। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस के साथ आ चुके हैं जबकि दलित नेता जिग्नेश मेवानी परोक्ष रूप से कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं। बीते 2 दशक में पहली बार कांग्रेस गुजरात में भाजपा को टक्कर देती नजर आ रही है। गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन राहुल गाँधी का सियासी भविष्य तय करेगा। गुजरात में राहुल के जातीय कार्ड की सफलता कांग्रेस के लिए नई संभावनाएं तलाश सकती है।

    क्या सबको साथ लेकर चलेंगे राहुल?

    यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि राहुल गाँधी की आज कांग्रेस में जो भी जगह है उसके पीछे उनके उपनाम का बड़ा हाथ है। राहुल गाँधी अगर नेहरू-गाँधी परिवार से नहीं आते तो शायद भारतीय राजनीति में पहचान बना पाना उनके लिए असंभव था। राहुल गाँधी भी इस बात को भली-भाँति जानते हैं और इसी वजह से अपनी राजनीतिक स्वीकार्यता के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। राहुल गाँधी को इसका एहसास है कि अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में उनके कद और भूमिका की तुलना सोनिया गाँधी, राजीव गाँधी, इंदिरा गाँधी सरीखे दिग्गजों से की जाएगी। वीरभद्र सिंह, मणिशंकर अय्यर, जयराम रमेश सरीखे कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता आज भी राहुल गाँधी की सियासी समझ को कुछ खास तवज्जो नहीं देते हैं हालाँकि खुले तौर पर कोई उनका विरोध नहीं करता। बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सबको साथ लेकर चलना राहुल गाँधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।

    राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने के बाद एक बात तो तय है कि वह सियासत के पुराने दिग्गजों की जगह नए मोहरों संग आगे की बाजी खेलेंगे। उन्होंने 2014 लोकसभा चुनावों के पहले सचिन पायलट को अशोक गहलोत पर तरजीह देकर राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर इसके संकेत दे दिए थे। आगामी वर्ष मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस दिग्विजय सिंह को दरकिनार कर ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। दिल्ली में भी कांग्रेसी दिग्गज शीला दीक्षित और अजय माकन के बीच के रिश्ते जगजाहिर हैं। कांग्रेस के सियासी दिग्गज एक पुराने वृक्ष की तरह हैं जिनके कटने का असर आस-पास के छोटे पेड़-पौधों पर भी होगा। नव निर्वाचित अध्यक्ष राहुल गाँधी पर इन सियासी दिग्गजों के साये से निकलकर कांग्रेस को नया रंग देने की जिम्मेदारी है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।