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    असदुद्दीन ओवैसी

    एआईएमआईएम के प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी अपने विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं। अक्सर अपने भड़काऊ बयानों की वजह से वह सुर्ख़ियों में रहते हैं। अपने हालिया बयान में एआईएमआईएम प्रमुख ओवैसी ने कहा है कि मस्जिदें किसी मौलवी की जागीर नहीं हैं। अल्लाह मस्जिदों का मालिक है और किसी मौलवी के कहने भर से हम मस्जिदों को किसी के हवाले नहीं कर सकते। उनका यह बयान शिया धर्मगुरु सादिक कल्बे के उस बयान के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों के हक़ में भी फैसला सुनाता है तो उन्हें यह जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे देनी चाहिए। बता दें कि कल्बे सादिक ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वाइस प्रेसीडेंट भी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर फैसला मुस्लिमों के पक्ष में ना आये तो उसे शांति से मंजूर कर लेना चाहिए।

    ओवैसी ने ट्वीट के जरिये कहा कि मस्जिदों की देखरेख शिया, सुन्नी, बरेलवी, सूफी, देवबंदी, सलाफी, बोहरी कोई भी कर सकते हैं, लेकिन वह मालिक नहीं हैं। मस्जिदों का मालिक सिर्फ अल्लाह होता है। किसी मौलवी के कहने से हम मस्जिदें किसी के हवाले नहीं कर सकते। एक बार बनी मस्जिद, हमेशा मस्जिद ही रहती है और उसे बनाने वाले लोग क़यामत के दिन में यकीन रखते है। वे अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि मस्जिद में नमाज पढ़ना हर मुसलमान का कर्तव्य है और यह इस्लाम की हिफाजत है।

    राम जन्मभूमि

     

    बता दें कि राम जन्मभूमि मामले को लेकर शिया वक़्फ़ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था। दायर हलफनामे में शिया वक़्फ़ बोर्ड ने कहा था कि अयोध्या में विवादित जगह पर राम मंदिर का ही निर्माण होना चाहिए। मस्जिद का निर्माण राम जन्मभूमि के पास स्थित मुस्लिम बाहुल्य इलाके में कराया जाये। लेकिन शिया वक़्फ़ बोर्ड की इस राय पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की सहमति नहीं है। अयोध्या में विवादित जगह पर राम मंदिर के निर्माण की बात शिया वक़्फ़ बोर्ड शुरू से खुले तौर पर कहता रहा है। लेकिन अगर शिया वक़्फ़ बोर्ड की बात पर कोर्ट अमल करे तो कांग्रेस और सपा जैसी मुस्लिम ‘हितैषी’ पार्टियों का उत्तर प्रदेश से जनाधार ही ख़त्म हो जायेगा। अब तक यह दोनों पार्टियां इस मुद्दे को बार-बार ‘राम’ और ‘हिंदुत्व’ से जोड़कर अपना उल्लू सीधा करती रही हैं और साम्प्रदायिकता की आग में अपनी सियासी रोटी सेंकती रही है।

    शिया वक़्फ़ बोर्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर किये गए हलफनामे में बोर्ड अध्यक्ष वसीम रिज़वी ने कहा है कि अगर विवादित जगह पर मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण कराया जाता है तो दोनों समुदायों में संघर्ष की आशंका बनी रहेगी। हमें ऐसी स्थिति से बचना चाहिए। यह माकूल रहेगा कि विवादित जगह पर राम मंदिर का निर्माण कराया जाये और विवादित जगह से थोड़ी दूर स्थित मुस्लिम बाहुल्य इलाके में मस्जिद का निर्माण हो। रिज़वी ने हलफनामे में स्पष्ट किया है कि 1946 तक इस जमीन पर शिया वक़्फ़ बोर्ड का कब्जा था लेकिन ब्रिटिश सरकार ने 1946 में इस जमीन को सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को ट्रांसफर कर दिया था। शिया वक़्फ़ बोर्ड हमेशा से ही इस विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में हैं। इस मस्जिद को बनवाने वाला मीर बकी भी शिया ही था। इसे आधार बनाकर शिया वक़्फ़ बोर्ड ने कहा है कि इस जमीन पर पहला हक़ शिया वक़्फ़ बोर्ड का ही बनता है।

    अयोध्या में राम मंदिर
    अयोध्या में राम मंदिर

     

    इस मांमले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में शिया वक़्फ़ बोर्ड भी पक्षकार था। वहाँ पर शुरूआती दौर में उसने जमीन पर अपना दावा ठोंका था। पर बाद में विस्तृत दलील के दौरान उसकी तरफ से कोई पेश नहीं हुआ था। अब पुनः शिया वक़्फ़ बोर्ड ने इस मामले में हलफनामा दायर कर अपना दावा पेश किया है। शिया वक़्फ़ बोर्ड ने कहा है कि वैकल्पिक जगह मिलने की सूरत में हम विवादित जगह छोड़ने को तैयार हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 12 सप्ताह के लिए टाल दी है। सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय पीठ ने मामले में प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुवाद के 12 सप्ताह का समय दिया है और अगली सुनवाई के लिए 5 दिसंबर की तारीख मुक़र्रर की है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।